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संयुक्त राष्ट्र में भारत

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : वैश्विक समूह और भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ व मंच)

संदर्भ

हाल ही में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यू.एन.एस.सी.) में अस्थायी सदस्य के रूप में प्रवेश किया है। भारत अगले दो वर्ष तक इसका सदस्य रहेगा। ऐसे समय में जब अमेरिकी नेतृत्व एक अराजक परिवर्तन से गुजर रहा है और चीन वैश्विक शक्ति बनने के लिये प्रयासरत है तथा पाकिस्तान, कश्मीर व भारत में मानवाधिकार के मुद्दे को उठाने के लिये प्रयत्नशील है, भारत का अस्थायी सदस्य बनना कई मायनों में महत्त्वपूर्ण है।

यू.एन.एस.सी. में भारत

  • भारत अब तक सात बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य रह चुका है। वर्ष 1950-51 में भारत ने यू.एन.एस.सी. के अध्यक्ष के रूप में कोरियाई युद्ध को समाप्त करने और कोरिया गणराज्य की सहायता के लिये प्रस्तावों को अपनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • वर्ष 1967-68 में भारत ने साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र मिशन के शासनाधिकारों में वृद्धि के लिये संकल्प 238 को संयुक्त रूप से प्रस्तावित किया था।
  • वर्ष 1972-73 में भारत ने बांग्लादेश को संयुक्त राष्ट्र में प्रवेश दिलाने के लिये मज़बूत प्रयास किया था। हालाँकि, एक स्थायी सदस्य द्वारा वीटो के कारण इस संकल्प को नहीं अपनाया गया था।
  • वर्ष 1977-78 में भारत ने यू.एन.एस.सी. में अफ्रीका के प्रवेश व प्रतिनिधित्त्व के साथ-साथ रंगभेद (Apartheid) के खिलाफ तीखी आवाज उठाई थी। तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी ने वर्ष 1978 में नामीबिया की स्वतंत्रता की बात यू.एन.एस.सी. में कही थी।
  • वर्ष 1984-85 में भारत ने मध्य पूर्व में, विशेषकर फिलिस्तीन और लेबनान में, संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान के लिये यू.एन.एस.सी. में अग्रणी आवाज थी।
  • वर्ष 1991-92 में प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव ने पहली बार यू.एन.एस.सी. की शिखर-स्तरीय बैठक में भाग लिया तथा शांति व सुरक्षा बनाए रखने में भारत की भूमिका पर बात की थी।
  • वर्ष 2011-2012 में भारत ने शांति की स्थापना एवं आतंकवाद रोकने के प्रयासों के साथ-साथ विकासशील देशों और अफ्रीका के लिये अपना स्वर मुखर किया था। यू.एन.एस.सी. में भारत की अध्यक्षता में ही सीरिया पर पहला बयान दिया गया था।
  • वर्ष 2011-12 के कार्यकाल के दौरान भारत ने आतंकवाद के रोकथाम से संबंधित ‘यू.एन.एस.सी. 1373 समिति’, आतंकवादी गतिविधियों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा के लिये खतरे से संबंधित ‘1566 कार्य दल’ और सोमालिया व इरिट्रिया से संबंधित ‘सुरक्षा परिषद 751/1907 समिति’ की अध्यक्षता की।

अन्य गतिविधियों में भारत की भूमिका

  • भारत ने अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा से जुड़े सभी मुद्दों पर सक्रिय भूमिका निभाई है। इनमें कई नई चुनौतियों सहित यू.एन.एस.सी. द्वारा अफ़गानिस्तान, आइवरी कोस्ट, इराक, लीबिया, दक्षिण सूडान, सीरिया और यमन के लिये किये गए प्रयास शामिल हैं।
  • साथ ही, भारत ने सोमालियाई तट पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व सुरक्षा के लिये समुद्री डाकुओं के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया है। भारत की पहल पर सुरक्षा परिषद ने समुद्री लुटेरों द्वारा बंधक बनाए गए लोगों को रिहा करने और इन कृत्यों को करने वालों के साथ-साथ इसका समर्थन करने वालों पर मुकदमा चलाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को अनिवार्य कर दिया है।
  • भारत ने आतंकवाद के रोकथाम में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने, नॉन-स्टेट एक्टर्स तक सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार को रोकने और संयुक्त राष्ट्र के शांति स्थापना व शांति निर्माण के प्रयासों को मजबूत करने के लिये भी काम किया है।

यू.एन.एस.सी. के भीतर की राजनीति

  • पिछले सात कार्यकालों से भारतीय राजनयिकों को यह अनुभव हो गया है कि बहुपक्षीय स्थिति में कूटनीति का संचालन कैसे किया जाता है।
  • वर्ष 1991-1992 में यू.एन.एस.सी. के कार्यकाल के दौरान भारत के स्थाई प्रतिनिधि रहे चिन्मय आर. के अनुसार, स्थायी सदस्य यह चाहते है कि अस्थायी सदस्य उनके सहयोगी की भूमिका में रहे और प्रमुख प्रस्तावों के मामले में उनका अपना कोई मत न हो।
  • अधिकांश अस्थायी सदस्य P-5 सदस्यों से प्रभावित होते हैं और उनके निर्णयों के विरुद्ध नहीं जाना चाहते हैं तथा उनके सहयोगी बने रहना चाहते हैं। इस प्रकार, अस्थायी सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित किया जाता हैं।
  • इससे संबंधित मामलों में भारत ने अपने कार्य को अधिक गंभीरता से लिया है, जिसके फलस्वरूप भारत को अपनी लड़ाई अकेले लड़नी पड़ी है। उस समय खाड़ी युद्ध भड़क गया था और भारत ने अप्रैल 1991 में अमेरिका द्वारा प्रायोजित प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था।
  • भारत के इस मत का निर्धारण व्यावहारिक विचारों द्वारा किया गया था। अमेरिका ने स्पष्ट कर दिया था कि इस प्रस्ताव का समर्थन न करने से अमेरिका के लिये विश्व बैंक और आई.एम.एफ. में भारत की मदद करना बहुत मुश्किल होगा।
  • विदित है कि भारत उस समय भुगतान संतुलन के गंभीर संकट का सामना कर रहा था और भारत को इन संगठनों से धन की आवश्यकता थी। साथ ही, भारत को कश्मीर मुद्दे पर भी अमेरिका की जरूरत थी।

भारत के समक्ष प्रमुख मुद्दे

संयुक्त राष्ट्र में सुधार (U.N. REFORMS) :

  • भारत ने कहा है कि स्थायी और अस्थायी दोनों श्रेणियों में सुरक्षा परिषद का विस्तार आवश्यक है। साथ ही, भारत सभी प्रकार के मानदंडों के अनुसार भी यू.एन.एस.सी. की स्थायी सदस्यता के लिये उपयुक्त है।
  • इन मानदंडों में जनसंख्या, प्रादेशिक आकार, जी.डी.पी, आर्थिक क्षमता, सभ्यता की विरासत, सांस्कृतिक विविधता, राजनीतिक प्रणाली के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों में अतीत एवं वर्तमान योगदान (विशेषकर संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों के लिये) शामिल हैं।

आतंकवाद :

  • आतंकवाद के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय प्रयास संयुक्त राष्ट्र में भारत की एक प्रमुख प्राथमिकता है। आतंकवाद से निपटने के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करने के उद्देश्य से भारत ने वर्ष 1996 में ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक अभिसमय’ (CCIT) का मसौदा तैयार करने की पहल की थी।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा की 6वीं समिति में इस अभिसमय के एक विषय पर बातचीत जारी है।

चीन की चुनौती

  • भारत ऐसे समय में यू.एन.एस.सी. में प्रवेश कर रहा है जब चीन वैश्विक स्तर पर पहले से कहीं अधिक आक्रामक है और स्वयं को वैश्विक शक्ति साबित करने में संलग्न है। वर्तमान में चीन कम से कम छह संयुक्त राष्ट्र संगठनों का प्रमुख है और कई बार वैश्विक नियमों को चुनौती भी दे चुका है।
  • चीन ने यू.एन.एस.सी. में कश्मीर का भी मुद्दा उठाने की कोशिश की है, जिसके जवाब में भारत के रणनीतिक समुदायों के बीच यू.एन.एस.सी. में ताइवान, हांगकांग और तिब्बत के मुद्दों को उठाने पर कुछ चर्चाएँ हुईं हैं।

निष्कर्ष

हिंद-प्रशांत के साथ-साथ भारत-चीन सीमा पर पूरे वर्ष चीन का आक्रामक व्यवहार देखा गया है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसका मुकाबला करने के लिये भारत को स्वतंत्र तरीके से सोचने की आवश्यकता है। साथ ही, भारत के अंदर ध्रुवीकरण की राजनीति उसके प्रतिद्वंद्वियों को मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर आलोचना का अवसर प्रदान करती है। विदेश और सुरक्षा नीति की वास्तविक दुनिया में निर्णयकर्ताओं को कई ऐसे विकल्पों का सामना करना पड़ता है, जो समस्याग्रस्त होने के साथ-साथ जोखिम से भरे होते हैं।

प्रिलिम्स फैक्ट्स :

  • यू.एन.एस.सी. में भारत के दो-वर्षीय कार्यकाल की शुरुआत 01 जनवरी को हुई। इस प्रकार भारत वर्ष 2021-22 के लिये 15 (5+10) सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में आठवीं बार अस्थायी सदस्य बना।
  • भारत अगस्त 2021 में यू.एन.एस.सी. की अध्यक्षता करेगा और वर्ष 2022 में एक महीने के लिये पुन: परिषद की अध्यक्षता करेगा। ध्यातव्य है कि परिषद की अध्यक्षता अंग्रेजी वर्णक्रम के अनुसार प्रत्येक सदस्य द्वारा एक महीने के लिये की जाती है।
  • वर्ष 2021 में भारत के साथ-साथ नॉर्वे, केन्या, आयरलैंड और मेक्सिको भी अस्थायी सदस्य बने हैं, जबकि एस्टोनिया, नाइजर, सेंट विंसेंट एवं ग्रेनेडाइंस, ट्यूनीशिया और वियतनाम पहले से इसके अस्थाई सदस्य हैं।
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