New
IAS Foundation Course (Prelims + Mains): Delhi & Prayagraj | Call: 9555124124

भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ

बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (International Crimes Tribunal : ICT) के मुख्य अभियोजक (Chief Prosecutor) के अनुसार, भारत से अपदस्थ पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण की योजना बनाई जा रही है। 

हालिया घटनाक्रम 

  • अगस्त की शुरुआत में बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर विद्रोह के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत में शरण ली है।
  • बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार ने पहले ही शेख हसीना का राजनयिक पासपोर्ट रद्द कर दिया है।
  • भारत एवं बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि है, जिसके तहत पूर्व प्रधानमंत्री को  अभियोजन का सामना करने के लिए वापस बांग्लादेश जाना पड़ सकता है।

ICT के बारे में 

  • बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री ने ICT की स्थापना वर्ष 2010 में की थी। इसका उद्देश्य वर्ष 1971 के बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पाकिस्तान से किए गए अपराधों की जांच करना था।
  • अंतर्राष्ट्रीय अपराध (न्यायाधिकरण) अधिनियम, 1973 के तहत बांग्लादेश की अदालतें पूर्व प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में भी उनके विरुद्ध आपराधिक मुकदमे चला सकती हैं।
    • हालाँकि, इससे कार्यवाही की निष्पक्षता और उचित प्रक्रिया के पालन को लेकर चिंताएँ उत्पन्न होने के साथ ही न्यायिक आदेशों का प्रवर्तन भी जटिल होगा। ऐसी स्थिति में पूर्व प्रधानमंत्री का प्रत्यर्पण महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि 

  • वर्ष 2013 में भारत एवं बांग्लादेश ने अपनी साझा सीमाओं पर उग्रवाद व आतंकवाद से निपटने के लिए एक रणनीतिक उपाय के रूप में प्रत्यर्पण संधि को लागू किया था। 
  • वर्ष 2016 में दोनों देशों द्वारा वांछित भगोड़ों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए इसमें संशोधन किया गया। 
  • इस संधि से कई उल्लेखनीय राजनीतिक कैदियों का स्थानांतरण किया गया है। 
    • वर्ष 1975 में शेख मुजीबुर रहमान की हत्या में शामिल दो दोषियों को फांसी की सज़ा के लिए वर्ष 2020 में बांग्लादेश प्रत्यर्पित किया गया था। 
    • प्रतिबंधित यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के महासचिव अनूप चेतिया का प्रत्यर्पण भी सफलतापूर्वक भारत को किया गया था।
  • इस संधि में ऐसे व्यक्तियों के प्रत्यर्पण का प्रावधान है, जिन पर ऐसे अपराधों के आरोप हैं या जो ऐसे अपराधों के लिए दोषी हैं, जिनके लिए कम-से-कम एक वर्ष की सजा हो सकती है।
  • प्रत्यर्पण के लिए एक प्रमुख आवश्यकता दोहरी आपराधिकता का सिद्धांत है जिसका अर्थ है कि अपराध दोनों देशों में दंडनीय होना चाहिए। 
    • चूँकि पूर्व प्रधानमंत्रियों के खिलाफ आरोप भारत में भी अभियोजन योग्य होने के साथ ही उनके कथित अपराधों के लिए दंड भी अधिक हैं। 
    • इसलिए वे इन आधारों पर प्रत्यर्पण के लिए योग्य हैं। 
  • इस संधि के दायरे में अपराधों के प्रयासों के साथ-साथ उसके लिए सहायता करना, उकसाना या सहयोगी के रूप में कार्य करना भी शामिल है।
  • वर्ष 2016 के संशोधन में इस संधि में अपराधी के खिलाफ ठोस सबूत प्रस्तुत करने की आवश्यकता को समाप्त कर प्रत्यर्पण की चुनौतियों को काफी कम कर दिया गया है। 
  • इस संधि के अनुच्छेद 10 के तहत प्रत्यर्पण प्रक्रिया शुरू करने के लिए अब केवल अनुरोध करने वाले देश में एक सक्षम न्यायालय द्वारा जारी गिरफ्तारी वारंट ही पर्याप्त है।

क्या भारत प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है 

  • संधि के अनुच्छेद 6 के अनुसार यदि अपराध ‘राजनीतिक प्रकृति’ का है तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है।
    • हालाँकि, इस विशेष छूट पर कठोर सीमाएँ हैं। 
    • हत्या, आतंकवाद से संबंधित अपराध और अपहरण जैसे कई अपराधों को वस्तुत: राजनीतिक प्रकृति के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है। 
  • पूर्व प्रधानमंत्री हसीना के खिलाफ कई आरोप (जैसे- हत्या, किसी को जबरन गायब करना और यातना) इस छूट के दायरे से बाहर हैं। 
    • ऐसे में संभव है कि प्रत्यर्पण से इनकार करने के लिए भारत इन आरोपों को राजनीतिक प्रकृति के रूप में उचित ठहराने में सक्षम नहीं होगा। 
  • इस संधि के अनुच्छेद 7 के अनुसार ‘शरण देने वाले राज्य द्वारा प्रत्यर्पण के अनुरोध को अस्वीकार किया जा सकता है, यदि जिस व्यक्ति के प्रत्यर्पण की मांग की गयी है, उस पर उसी राज्य (भारत) की अदालतों में प्रत्यर्पण अपराध के लिए मुकदमा चल रहा हो। शेख हसीना के मामले में ऐसा नहीं है।
  • भारत द्वारा प्रत्यर्पण से इनकार करने का एक अन्य आधार अनुच्छेद 8 में उल्लिखित है। 
    • अनुच्छेद 8 उस स्थिति में प्रत्यर्पण अनुरोध को अस्वीकार करने की अनुमति देता है : 
      • यदि आरोप न्याय के हित में सद्भावनापूर्वक नहीं लगाया गया है।
      •  यदि इसमें सैन्य अपराध शामिल हैं जिन्हें ‘सामान्य आपराधिक कानून के तहत अपराध’ नहीं माना जाता है। 
  • भारत संभावित रूप से इस आधार पर बांग्लादेश के पूर्व प्रधानमंत्री के प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है कि उनके खिलाफ आरोप सद्भावनापूर्वक नहीं लगाए गए हैं और बांग्लादेश लौटने पर उनको राजनीतिक उत्पीड़न या अनुचित मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है।

भारत द्वारा प्रत्यर्पण से इनकार का प्रभाव 

  • पूर्व प्रधानमंत्री के प्रत्यर्पण के संबंध में अंतिम निर्णय कूटनीतिक वार्ता और राजनीतिक विचारों पर अधिक निर्भर करेगा। 
  • विशेषज्ञों के अनुसार भारत द्वारा प्रत्यर्पण अनुरोध को अस्वीकार करने से यह संभवतः एक मामूली रणनीतिक समस्या के रूप में काम करेगा। 
    • हालाँकि, इससे द्विपक्षीय संबंधों, विशेष रूप से दोनों देशों के बीच सहयोग के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में पर अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है।
  • बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2022-23 में 15.9 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है।
  • हालिया मामले से पहले दोनों देश आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (Comprehensive Economic Partnership Agreement : CEPA) पर बातचीत शुरू करने के लिए तैयार थे। 

निष्कर्ष 

बांग्लादेश में शासन परिवर्तन के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस से चल रही विकास परियोजनाओं के लिए निरंतर समर्थन का वादा किया है। भारत को दक्षिण एशिया में बिग ब्रदर सिंड्रोम को कम करने और चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए एक बहुआयामी रणनीतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।  

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR