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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत द्वारा अस्थाई सदस्यता हेतु अभियान

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत)

पृष्ठभूमि

भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाँच अस्थाई सदस्यों के लिये चुनाव से पहले अभियान विवरणिका (Campaign Brochure) लॉन्च किया है। भारत यू.एन.एस.सी. सहित कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में आवश्यकतानुसार बदलाव और सुधार की माँग करता रहा है। एशिया महाद्वीप के सबसे बड़े होने तथा अन्य महाद्वीपों की अपेक्षा सर्वाधिक जनसंख्या निवास करने के बावजूद यू.एन.एस.सी. में इस महाद्वीप से केवल एक स्थाई सदस्य है। भारत ने अस्थाई सदस्यता के लिये एक अभियान विवरणिका लॉन्च की है जोकि उसके एजेंडें और स्थाई सदस्यता के लिये मार्गदर्शक के रूप में है। विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने संयम की आवाज, सम्वाद के पैरोकार और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के समर्थक के रूप में भारत की दीर्घकालिक भूमिका पर जोर दिया है।

यू.एन.एस.सी. के लिये भारत का एजेंडा

  • अंतर्राष्ट्रीय शासन की सामान्य प्रक्रिया में टकराहट के कारण तनाव बढ़ रहा है। पारम्परिक और गैर- पारम्परिक सुरक्षा चुनौतियाँ अनियंत्रित रूप से बढ़ रही हैं। आतंकवाद इस तरह के उदाहरणों में सबसे प्रबल है।
  • वैश्विक संस्थानों में सुधारों के आभाव तथा कमज़ोर प्रतिनिधित्त्व के साथ-साथ कोविड-19 महामारी व इसके आर्थिक प्रभाव के कारण यू.एन.एस.सी. के लिये चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं।
  • भारत ने अभियान विवरणिका में प्राथमिकताओं को सूचीबद्ध किया है। ये प्राथमिकताएँ निम्न है:
    • प्रगति और विकास के नए अवसर
    • अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के प्रति एक प्रभावी प्रतिक्रिया
    • वैश्विक निकाय द्वारा शांति अभियानों को सुव्यवस्थित करना
    • अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण
    • संयुक्त राष्ट्र में सुधार व सुरक्षा परिषद का विस्तार, और
    • विभिन्न तकनीकी पहल के साथ प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना।
  • भारत ने कहा है कि वह वर्ष 2021-22 की समयावधि के दौरान यू.एन.एस.सी. में अस्थाई सदस्य के तौर पर उपरोक्त मुद्दों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये कार्य करेगा।
  • इसके अलावा, इस अभियान के लिये भारत का दृष्टिकोण प्रधानमंत्री द्वारा निर्धारित पाँच ‘एस’ के नेतृत्व के अंतर्गत है। ये पाँच ‘एस’ इस प्रकार हैं:

(i) सम्मान (ii) सम्वाद (iii) सहयोग (iv) शांति (v) समृद्धि

नए एन.ओ.आर.एम.एस. (NORMS) को युक्तिसंगत बनाना

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उक्त कार्यकाल के दौरान भारत का समग्र उद्देश्य एन.ओ.आर.एम.एस. (N.O.R.M.S) को सफल बनाना है। एन.ओ.आर.एम.एस. का अर्थ है: ‘एक सुधरी हुई बहुपक्षीय प्रणाली के लिये एक नई दिशा’ (N.O.R.M.S.- New Orientation for a Reformed Multilateral System)।
  • यह आठवाँ मौका होगा जब भारत यू.एन.एस.सी. का अस्थाई सदस्य बनेगा। इससे पूर्व भारत वर्ष 2011-2012 में इसका सदस्य बना था। भारत सर्वप्रथम आज़ादी के बाद वर्ष 1950-1951 में अस्थाई सदस्य बना था।
  • इसके बाद भारत-पाक युद्ध के बाद वर्ष 1967-1968 और 1972-1973 में भारत इसका सदस्य बना। आपातकाल के बाद वर्ष 1977-1978 में तथा वर्ष 1984-1985 में भारत इसका सदस्य बना था। आर्थिक सुधारों के दौरान वर्ष 1991-1992 के लिये भी भारत अस्थाई सदस्य बना था।

भारत और यू.एन.एस.सी.

  • भारत का यू.एन.एस.सी. में अस्थाई सदस्य के रूप में एक स्थान निश्चित है क्योंकि भारत ‘एशिया-प्रशांत समूह’ से एकमात्र उम्मीदवार है। हालाँकि न्यूयॉर्क में जून के तीसरे सप्ताह में होने वाले गुप्त मतदान में भारत को अपने पक्ष में 193 सदस्यीय महासभा में से दो-तिहाई सदस्यों के समर्थन की ज़रूरत होगी।
  • इसके अलावा, मेक्सिको को भी लैटिन-अमेरिका और कैरिबियाई समूह के लिये निर्विरोध चुने जाने की उम्मीद है।
  • पश्चिम यूरोपीय व अन्य समूह (WEOG) की 2 सीटों के लिये कनाडा, आयरलैंड और नॉर्वे के मध्य प्रतिद्वंदिता है। साथ ही, अफ्रीका समूह के लिये केन्या और जिबूती के मध्य टक्कर है।
  • हालाँकि भारत इस सीट के लिये आवश्यक 129 सदस्यों के समर्थन के लिये पूरी तरह से आशावादी है फिर भी सरकार चुनाव से पूर्व और अधिक संख्या में समर्थन के लिये प्रयासरत है।
  • वर्ष 2011-2012 के लिये जब भारत ने वर्ष 2010 में यू.एन.एस.सी. सीट के लिये उम्मीदवारी पेश की तो उसे कुल पड़े 190 मतों में से 187 मत प्राप्त हुए थे।
  • भारत के दृष्टिकोण से कोविड-19 के कारण मतदान पद्धति में किसी भी प्रकार का परिवर्तन भारतीय उम्मीदवारी को प्रभावित नहीं करेगा। नये सदस्यों का कार्यकाल जनवरी 2021 से शुरू होना है। परम्परागत रूप से, यू.एन.एस.सी. चुनाव महासभा हॉल में आयोजित किए जाते हैं, जिसमें प्रत्येक सदस्य गुप्त मतदान करता है।
  • नये नियमों के अनुसार, केवल निर्दिष्ट स्थानों पर मतपेटियों में डाले गए मतपत्रों को ही स्वीकार किया जाएगा और निर्धारित समय के स्लॉट समाप्त होने के बाद किसी मतपत्र को स्वीकार नहीं किया जाएगा।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council)

a. यू.एन.एस.सी. संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है। यह अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने के लिये ज़िम्मेदार है।

b. इसकी शक्तियों में शांति अभियानों (Peace-keeping) की स्थापना, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का आरोपण और सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के माध्यम से सैन्य कार्रवाई का आधिकार शामिल है।

c. यह सदस्य देशों के लिये बाध्यकारी संकल्प जारी करने का अधिकार रखने वाला संयुक्त राष्ट्र का एकमात्र निकाय है।

d. सुरक्षा परिषद एक ’15 सदस्यीय’ निकाय हैं। रूस, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका इसके पाँच स्थाई सदस्य हैं। ये स्थाई सदस्य नए सदस्य राज्यों के प्रवेश या महासचिव की उम्मीदवारी सहित सुरक्षा परिषद के किसी भी प्रस्ताव पर वीटो कर सकते हैं।

e. इस 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में 10 अस्थाई सदस्य होते हैं। प्रत्येक वर्ष महासभा दो वर्ष के कार्यकाल के लिये पाँच अस्थाई सदस्यों (कुल 10 में से) का चुनाव क्षेत्रीय आधार पर करती है। सुरक्षा परिषद् की अध्यक्षता मासिक आधार पर सदस्यों के बीच रोटेट होती है।

f. इन 10 अस्थाई सीटों का आवंटन क्षेत्रीय आधार पर किया जाता हैं। इनमें से पाँच सीट अफ्रीकी व एशियाई राज्यों के लिये हैं। पूर्वी यूरोपीय राज्यों के लिये एक सीट के अलावा लैटिन अमेरिकी व कैरेबियन राज्यों के लिये दो तथा पश्चिमी यूरोपीय व अन्य राज्यों के लिये दो सीटें निर्धारित हैं।

योजना की शुरुआत

  • सरकार ने यू.एन.एस.सी. की अस्थाई सीट के लिये अपनी योजना की शुरूआत वर्ष 2013 में की थी। भारत वर्ष 2021 की अस्थाई सीट की सदस्यता का इच्छुक है क्योंकी यह स्वतंत्रता का 75 वाँ वर्ष है।
  • भारत यह चाहता था की अस्थाई सीट के लिये उसका चुनाव निर्विरोध तरीके से हो परंतु समस्या यह थी कि इस तरह का पहला स्लॉट वर्ष 2026 में उपलब्ध होता।
  • सौभाग्यवश ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान’ मित्रता का संकेत देने के लिये वर्ष 2021-22 की सीट के लिये अपने कदम पीछे खीचनें पर सहमत हो गया। इसके लिये, अफगान मंत्रिमंडल द्वारा इस निर्णय को मंजूरी प्रदान की गई और फिर संयुक्त रूप से महासभा को इसकी जानकारी दी गई।
  • इसके बाद, अगली बड़ी चुनौती एशिया-प्रशांत समूह से अंतिम क्षण तक भारत के खिलाफ बिना किसी दावेदारी के नामांकन को आगे बढ़ाना था।
  • देशों के बीच कूटनीति ने निश्चित रूप से मदद किया और मतों को ज़मीनी स्तर पर बातचीत से अपने पक्ष में करना पड़ा। नई दिल्ली की उम्मीदवारी का समर्थन चीन और पाकिस्तान सहित एशिया-प्रशांत समूह के 55 सदस्यीय देशों द्वारा पिछले वर्ष जून में सर्वसम्मति से किया गया था।
  • सी.ए.ए. और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों पर भारत और पाकिस्तान व चीन के मध्य तनाव में वृद्धि हुई है। साथ ही, तुर्की और मलेशिया जैसे देशों व ओ.आई.सी. (OIC) जैसे समूहों से आलोचना के कारण महासभा में अधिकतम मत प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

आगे की राह

भारत को प्राप्त मतों की अधिक से अधिक संख्या उसकी स्थाई सदस्यता के अभियान को मज़बूती और गति प्रदान करेगी। राजनयिकों ने चीन पर गुपचुप तरीके से सुधारों को गति प्राप्त करने के लिये मसौदा प्रस्ताव को रोकने हेतु अभियान चलाने का आरोप लगाया है। भारत यू.एन.एस.सी. की स्थाई सीट का हकदार होने के लिये जनसंख्या, आर्थिक कद में वृद्धि और शांति स्थापना आदि वैश्विक जिम्मेदारियों जैसे तर्क पर निर्भर हो गया है, जबकि राजनयिकों का सुझाव है कि संयुक्त राष्ट्र के निकायों के भीतर सुरक्षा परिषद के विस्तार के लिये संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर ज़ोर देने हेतु अधिक आक्रामक अभियान की आवश्यकता है।

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