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भारत-चीन सीमा विवाद और महामारी

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : भारत एवं इसके पड़ोसी-संबंध, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह और भारत से संबंधित व भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ

उपग्रहों से प्राप्त तस्वीरों, कुछ आधिकारिक बयानों आदि से स्पष्ट है कि पिछले वर्ष का लद्दाख संकट सात भौगोलिक अवस्थितियों पर था। इनमें देपसांग मैदान, गलवान घाटी, गोगरा, हॉट स्प्रिंग्स, पैंगोंग-सो झील का उत्तरी भाग, कैलाश श्रेणी और डेमचोक शामिल हैं। अतः वर्तमान परिस्थितियों में सीमा-विवाद का विश्लेषण आवश्यक है।

पृष्ठभूमि

  • गलवान क्षेत्र में झड़प के कुछ सप्ताह बाद गलवान मुद्दे को सुलझा लिया गया था और दोनों पक्ष संघर्ष वाले क्षेत्र (Face-off Site) से हट गए थे।भारतीय सेना ने अगस्त 2020 में कैलाश श्रेणी के कुछ ऊँचे क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था। इस वर्ष फरवरी में दोनों पक्ष पैंगोंग-सो झील क्षेत्र से हटने पर सहमत भी हुए थे।
  • भारतीय रक्षा मंत्री ने कहा था कि दोनों देशों की सेनाएँ पीछे हटने के बाद ‘शेष सभी मुद्दों के समाधान के लिये’ 48 घंटों के भीतर वरिष्ठ कमांडरों की बैठक बुलाएगी, किंतु चीन ने शेष मुद्दों पर चर्चा से इनकार कर दिया है।
  • भारत ने पैंगोंग-सो झील से डिसइंगेजमेंट के लिये कैलाश श्रेणी पर अपनी एकमात्र मज़बूत स्थिति को भी कमज़ोर कर लिया था क्योंकि भारत लद्दाख के सभी विवादित बिंदुओं (Flash Point) को क्रमिक रूप से हल करने की अपेक्षा एक साथ सुलझाना चाहता था। वस्तुतः इस समय दोनों पक्षों के सैनिकों और टैंकों के बीच दूरी अत्यल्प थी और छोटी-सी चूक बड़े संकट को जन्म दे सकती थी। इसके अलावा, भारत सरकार भी शांतिपूर्ण तरीके से सीमा-विवाद सुलझाकर विश्व में शांति का संदेश देना चाहती थी।
  • भारत सरकार ने घोषित किया था कि अप्रैल 2020 तकयथास्थिति बहाल कर दी जाएगी और भारत पूर्व की भाँति अपेक्षित क्षेत्रों में गश्त करने लगेगा, लेकिन 3 माह के बाद भी ऐसा नहीं हो सका है। दोनों देशों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति स्थापना की बात पुनः दोहराई। यद्यपि सितंबर 2020 के बाद से गोलीबारी की कोई घटना नहीं हुई, तथापि चीन सीमा अभी भी अस्थिर है और दोनों तरफ सैन्य साजो-सामान भारी मात्रा में तैनात है।

कोविड-19 और भू-राजनीति

  • सीमा पर मुश्किल स्थिति के बीच कोविड-19 कुप्रबंधन के कारण भारत की भू-राजनीतिक चिंताएँ बढ़ गई हैं।भारत, विशेषकर दक्षिण एशिया में 'वैक्सीन मैत्री कार्यक्रम’ के माध्यम से स्वयं को चीन की वैक्सीन कूटनीति के बेहतर विकल्प के रूप में पेश कर रहा था। हालाँकि हाल-फिलहाल में भारत पड़ोसी देशों को प्रतिबद्धतापूर्वक टीके-आपूर्ति नहीं कर सका है।
  • बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे देशों ने चीन से टीकों की खरीद शुरू कर दी है। ऐसे में, भारत की विश्वसनीयता तथा चीन का विरोध करने की भारत की क्षमता प्रश्नांकित हो रही है। इसे एक अवसर मानते हुए चीन ने भारत को छोड़कर सभी दक्षिण एशियाई देशों को टीकों की आपूर्ति करने के लिये एक बैठक आयोजित की है।
  • चीन के प्रभाव को कम करने के लिये क्वाड ने वर्ष 2022 तक पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक बिलियन टीकों की आपूर्ति करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है, इससे भारत चिंतित है। इसके अलावा, ‘गावी’ (GAVI) की ‘कोवैक्स’ (COVAX) योजना के तहत गरीब देशों को टीके की आपूर्ति करने से भी भारत पीछे हट रहा है। इन सबका कारण है– भारत की विशाल आबादी और उसके लिये टीकों की आपूर्ति सुनिश्चित करना। इसके लिये भारत खुद टीके आयात करने की कोशिश कर रहा है।
  • इस स्वास्थ्य संकट ने भारत के ‘आत्मनिर्भर तथा वैश्विक महाशक्ति’ बनने के स्वप्न को ठेस पहुँचाई हैतथा वैश्विक सहायता स्वीकारने संबंधी 16 वर्ष पुरानी नीति को बदलना पड़ा है। इसने भारत की अक्षमता को उजागर किया, इससे क्वाड में इसकी स्थिति को कमज़ोर हुई है।

प्रभाव

  • भारत की वैश्विक स्वीकार्यता में कमी आएगी तथा चीन को प्रतिसंतुलित करने के लिये अमेरिका पर निर्भरता बढ़ेगी।अतः चीन की यह धारणा बलवती होगी कि ‘भारत’ अमेरिका के इशारे पर काम करता है। इससे भारत-चीन संबंध और अधिक तनावपूर्ण हो सकते हैं।
  • एक विचार यह भी है कि भारत समुद्री कौशल को मज़बूत कर अपनी स्थलीय सीमाओं की रक्षा बेहतर तरीके से कर सकता है। हालाँकि वर्तमान परिस्थितियों में यह विचार भी परीक्षण के दायरे में आ सकता है, अतः भारत इसे हर कीमत पर टालना चाहता है।
  • लद्दाख संकट के बाद ‘दो मोर्चों पर युद्ध’ (Two Front War) की आशंका ने भारत को पाकिस्तान के साथ शांति-वार्ता करने के लिये विवश किया है। संयुक्त अरब अमीरात द्वारा समर्थित बैक-चैनल वार्ता ने नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम लागू कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन भारत व पाकिस्तान में इसका विरोध किया जा रहा है और यह प्रक्रिया लड़खड़ाती दिख रही है।
  • अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी और तालिबान की जीत एक अशुभ संकेत हैं।इसके अलावा, चीन तथा पाकिस्तान द्वारा उत्पन्न की जा रही चुनौती भारत को संकट में डाल सकता है। इस स्थिति से भारत को हर हाल में बचना होगा।

भारत के प्रति चीन का रुख और महामारी

  • हाल-फिलहाल में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने महामारी के संबंध में मोदी द्वारा व्यक्त की गई संवेदना के विषय में एक संदेश भेजा, जो पिछले वर्ष सीमा-विवाद शुरू होने के बाद दोनों के बीच पहला संचार (Communication) है।
  • चीनी विदेश मंत्री ने अपने भारतीय समकक्ष से दो बार बात की और महामारी से निपटने के लिये मदद की पेशकश की। परिणामस्वरूप चीन से कार्गो उड़ानों को जल्द ही मंजूरी मिली।
  • यह सहायता चीनी सरकार द्वारा नहीं, बल्कि निजी कंपनियों, रेड क्रॉस व रेड क्रिसेंट सोसाइटी से प्राप्त दान के माध्यम से उपलब्ध कराई जा रही है, जबकि चीनी मीडिया इसे चीन की सरकारी सहायता के रूप में प्रदर्शित कर रहा है।
  • चीन की मंशा स्वयं को एक ऐसी शक्ति के रूप में पेश करने की है, जो भारत की सहायता करती हैं। विदित है कि भारत चिकित्सा आपूर्ति के लिये चीन पर अत्यधिक निर्भर है।

निष्कर्ष

भारत व चीन के बीच गंभीर सीमा विवाद की स्थिति है, लेकिन महामारी काल में दोनों देश मिलकर कार्य कर सकते हैं तथा विश्व की सहायता कर सकते हैं। इसके अलावा, दोनों देशों को आपसी बातचीत के माध्यम से किसी ऐसे समझौते की ओर भी बढ़ाना चाहिये, जो इनकी भौगोलिक सीमाओं को स्पष्ट रूप से सीमांकित कर सके।

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