प्रारंभिक परीक्षा- समसामयिकी, कुल प्रजनन दर मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर- 1 (जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे) |
संदर्भ:
- हाल ही में शोध पत्रिका ‘लांसेट’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) के वर्ष 2050 तक घटकर 1.29 का अनुमान है।
मुख्य बिंदु:
- यह अध्ययन इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के शोधकर्ताओं द्वारा किए ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज’ (GBD) के आंकड़ों पर आधारित है।
- अध्ययन के अनुसार, वर्ष 1950 में कुल प्रजनन दर लगभग 6.2 थी, जो वर्ष 2021 में घटकर 1.91 हो गई है।
- वर्ष 2050 और वर्ष 2100 में इसके घटकर क्रमशः 1.29 और 1.04 होने का अनुमान है।
भारत में प्रजनन दर में कमी के कारण:
1. स्वास्थ्य में सुधार, परिवार नियोजन कार्यक्रम एवं मानसिक परिवर्तन:
- स्वतंत्रता के पश्चात् जनसंख्या को नियंत्रित करना आवश्यक था।
- इसके लिए परिवार कल्याण कार्यक्रम चलाए गए।
- मातृ और शिशु स्वास्थ्य के लिए नकद हस्तांतरण किए गए।
- लोगों को दो से अधिक बच्चे न पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
- धीरे-धीरे लोगों के व्यवहार में बदलाव दिखने लगा।
- विभिन्न मातृ एवं बाल स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रमों और सफल टीकाकरण के कारण शिशु मृत्यु दर में काफी गिरावट आई।
- लोगों को शिशु के जीवित रहने की गारंटी मिली।
- इस प्रकार छोटे परिवार आदर्श बन गए।
2. आर्थिक कारण:
- विकास के साथ धन का अंतर-पीढ़ीगत प्रवाह पूर्व की अपेक्षा विपरीत हो गया है।
- माता-पिता को अब अपने बच्चों से पूर्व की तरह लाभ नहीं मिलता है।
- इस कारण ने माता-पिता को अधिक बच्चा पैदा करने के उनके फैसले को प्रभावित किया, क्योंकि उनके पालन पोषण में पर्याप्त लागत लगती है।
3. महिला साक्षरता और कार्यबल में भागीदारी:
- महिला साक्षरता और कार्यबल में उनकी भागीदारी की वृद्धि ने भी महिलाओं के आर्थिक एवं मानसिक स्थिति में परिवर्तन लाया है।
- कैरियर चेतना, वित्तीय रिटर्न और आर्थिक स्वतंत्रता के कारण महिलाएं दूसरा बच्चा पैदा करने के अपने विकल्पों पर पुनर्विचार कर रही हैं।
- शहरी क्षेत्र में कई महिलाएं बच्चे के पालन-पोषण को एक जरूरी काम नहीं मानती हैं, अतः बच्चे पैदा न करने का विकल्प चुन रही हैं।
- गोद लेने जैसे विकल्पों पर विचार कर रही हैं।
- यह पैटर्न ग्रामीण भारत में भी फैल रहा है।
दीर्घकालिक परिणाम:
- प्रजनन दर में गिरावट के कारण आबादी में बुजुर्गों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ेगी।
- अनुमान है कि वर्ष 2050 तक भारत में बुजुर्गों की हिस्सेदारी 20% से अधिक हो जाएगी।
- श्रम बल में कमी होगी, जिसका प्रभाव आर्थिक विकास पर पड़ेगा।
- लैंगिक प्राथमिकताओं के कारण संभावित सामाजिक असंतुलन जैसी चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं।
वैश्विक स्थिति:
- वैश्विक स्तर पर पिछले सात दशकों में TFR घटकर आधी रह गई है।
- वर्ष 1950 में वैश्विक स्तर पर TFR 4.8 से अधिक थी।
- वर्ष 2021 में TFR घटकर औसतन 2.2 बच्चे प्रति महिला रह गया।
- वर्ष 2050 तक यह आंकड़ा 1.8 तथा सदी के अंत तक 1.6 तक पहुंच सकता है।
- प्रजनन दर में आती गिरावट की यह प्रवृत्ति दक्षिण कोरिया और सर्बिया जैसे देशों के लिए बेहद चिंताजनक है, जहां यह दर प्रति महिला 1.1 बच्चे से कम है।
- उप-सहारा अफ्रीका के कई देशों में प्रजनन दर अभी भी बहुत ऊंची बनी हुई है।
- इन क्षेत्रों में यह प्रजनन दर वैश्विक औसत से करीब दोगुनी है यानी वहां प्रति महिला औसतन चार बच्चे हैं।
- सर्वाधिक प्रजनन दर चाड में है।
- यहां वर्ष 2021 में प्रजनन दर प्रति महिला 7 दर्ज की गई।
- आने वाले दशकों में वैश्विक प्रजनन दर काफी नीचे आएगी।
- सदी के अंत तक 204 देशों में से केवल 6 देशों में यह प्रजनन दर प्रति महिला 2.1 जीवित जन्में बच्चों से अधिक होने की संभावना है।
- इन देशों में शामिल हैं- समोआ, सोमालिया, टोंगा, नाइजर, चाड और ताजिकिस्तान
- दूसरी तरफ भूटान, बांग्लादेश, नेपाल और सऊदी अरब सहित 13 देशों में यह दर प्रति महिला एक बच्चे से भी कम रहने का अनुमान है।
- सदी के अंत तक दुनिया के 77% से अधिक जीवित बच्चे निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में जन्म लेंगें।
- ये देश पहले से ही अनेक सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याओं से लड़ रहे हैं।
- इनमें जलवायु परिवर्तन, गरीबी, आहार की कमी, कुपोषण, स्वास्थ्य, साफ पानी, स्वच्छता जैसी समस्याएं शामिल हैं।
- यदि इन देशों में आबादी बढ़ती है, तो इन समस्याओं का सामना करने के लिए पहले से कहीं अधिक तैयार रहने की जरूरत होगी
समाधान:
- आबादी में बच्चों, जवानों और बुजुर्गों के बीच संतुलन को बनाए रखने के लिए प्रजनन दर का 2.1 के आसपास होना जरूरी है।
- देश में पर्याप्त बच्चे हों, जो आगे चलकर वयस्कों की जगह ले सकें।
- भारत को स्वीडन और डेनमार्क जैसे स्कैंडिनेवियाई देशों से सीखने की जरूरत है, जो नए परिवारों को प्रोत्साहित कर ऐसी चुनौतियों से निपट रहे हैं।
- वे सस्ती शिशु देखभाल नीतियाँ अपना रहे हैं।
- स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश कर रहे हैं।
- लैंगिक समानता बनाने के लिए बड़े पैमाने पर पुरुष-इंगेजमेंट (विवाह) की पहल कर रहे हैं।
- महिलाओं को मातृत्व के साथ करियर का प्रबंधन करने के लिए पुरुषों को घरेलू कामकाज और देखभाल की अधिक जिम्मेदारी लेना होगा।
- प्रजनन दर में गिरावट के प्रभावों को कम करने के लिए निम्नलिखित अन्य उपाय अपनाए जा सकते हैं;
- विकास और रोजगारपरक आर्थिक नीतियां
- सामाजिक सुरक्षा और पेंशन सुधार
कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate):
- किसी देश की कुल प्रजनन दर का आशय वहां रहने वाली प्रति 1000 महिलाओं (15 से 49 वर्ष) के जीवनकाल में पैदा होने वाले जीवित बच्चों की औसत संख्या से है।
- यह एक अशोधित दर है अर्थात यह संपूर्ण जनसंख्या के लिए अनुमानित औसत दर होती है
- इसमें विभिन्न आयु वर्गों में पाए जाने वाले अंतर का कोई ध्यान नहीं रखा जाता।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न:
प्रश्न: भारत के कुल प्रजनन दर के बारे में इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के शोधकर्ताओं द्वारा किए ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज’ (GBD) के आंकड़ों पर विचार कीजिए
- वर्ष 1950 में कुल प्रजनन दर लगभग 6.2 थी
- यह वर्ष 2021 में घटकर 1.91 हो गई है।
- वर्ष 2050 तक यह घटकर 1.29 रह जाएगा
- वर्ष 2100 में इसके घटकर 1.04 होने का अनुमान है।
उपर्युक्त में से कितना/कितने कथन सही है/हैं?
(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) केवल तीन
(d) सभी चारों
उत्तर- (d)
मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न:
प्रश्न: भारत की कुल प्रजनन दर के कम होने के प्रमुख कारण क्या हैं? इसके प्रभावों की विवेचना कीजिए।
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