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भारत-ईरान सम्बंध और चीन की रणनीति

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय व वैश्विक समूह तथा भारत से सम्बंधित और भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

पृष्ठभूमि

हाल ही में, ईरान के परिवहन तथा शहरी विकास मंत्रालय द्वारा चाबहार व ज़ाहिदान के बीच 628 किलोमीटर लम्बे रेल लिंक हेतु ट्रैक बिछाने का कार्यक्रम शुरू किया गया, जिसमें चिंता व्यक्त की गई है कि भारत को इस परियोजना से बाहर रखा जा रहा है। हालाँकि, ईरान ने स्पष्ट किया है कि भारत बाद में भी इस परियोजना में शामिल हो सकता है।

अफगानिस्तान के लिये कनेक्टिविटी

  • कराची बंदरगाह पर निर्भरता को कम करते हुए ईरान के माध्यम से अफगानिस्तान के लिये कनेक्टिविटी प्रदान करने पर दिल्ली, काबुल और तेहरान वर्ष 2003 से ही सहमत है।
  • ईरान के मकरान तट पर स्थित चाबहार बंदरगाह कांडला से मात्र 1,000 किमी. दूर स्थित है परंतु चाबहार से ज़ाहिदान और फिर लगभग 200 किलोमीटर आगे अफगानिस्तान के ज़रंज तक के लिये सड़क व रेल सम्पर्क बनाने की ज़रूरत है।
  • चाबहार की सफलता के लिये इंजीनियरिंग अध्ययनों के उपरांत यह अनुमान लगाया गया था कि 800 किमी. लम्बी रेलवे परियोजना के लिये 1.6 बिलियन डॉलर के परिव्यय की आवश्यकता होगी। इस बीच, भारत ने हेरात राजमार्ग पर ज़रंज को डेलाराम/ दिलाराम से जोड़ने के लिये लगभग 220 किलोमीटर सड़क निर्माण पर ही ध्यान केंद्रित किया और वर्ष 2008 में इसे पूरा कर लिया गया।
  • वर्ष 2011 में, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) के नेतृत्व में सात भारतीय कम्पनियों के एक संघ ने अफगानिस्तान में हाजीगक खानों में खनन अधिकारों के लिये सफलतापूर्वक बोली लगाई थी। हाजीगक खानों में लौह अयस्क का एक बड़ा भंडार उपस्थित है। हालाँकि, अफगानिस्तान में अनिश्चित सुरक्षा स्थिति के कारण हाजीगक में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है।

ईरान पर प्रतिबंधों का दौर तथा भारत

  • वर्ष 2005 से 2013 तक अहमदीनेज़ाद शासन के दौरान प्रतिबंधों के कारण भारत और ईरान के मध्य परियोजनाओं और मुद्दों पर बहुत कम प्रगति हुई।
  • वर्ष 2015 में ईरान परमाणु समझौते के बाद दी गई ढील के कारण कार्यों में प्रगति देखी गई। वर्ष 2016 में श्री मोदी की तेहरान यात्रा के दौरान ईरान के साथ शहीद बहेश्ती बंदरगाह पर टर्मिनलों को सुसज्जित और संचालित करने के लिये समझौता ज्ञापन (एम.ओ.यू.) पर हस्ताक्षर किये गए।
  • इसी दौरान, अफगानिस्तान, ईरान और भारत के बीच अंतर्राष्ट्रीय परिवहन व पारगमन गलियारे की स्थापना हेतु त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर भी एक अन्य मील का पत्थर था।
  • साथ ही, ईरान में $ 85 मिलियन पूँजी निवेश के अलावा, भारत पोर्ट कंटेनर पटरियों के लिये $ 150 मिलियन का लाइन ऑफ़ क्रेडिट प्रदान करने के लिये भी प्रतिबद्ध था।
  • चाबहार में एक ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र’ (सेज़) स्थापित करने की योजना बनाई गई थी परंतु पुनः अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण सेज़ में निवेश धीमा हो गया है।
  • हालाँकि, भारत को चाबहार पर सहयोग ज़ारी रखने के लिये अमेरिकी प्रतिबंधों से छूट प्रदान की गई क्योंकि इससे अफगानिस्तान के विकास में सहायता मिल रही थी। फिर भी छूट के बावजूद, इन परियोजनाओं में देरी हुई क्योंकि वास्तव में अमेरिकी ट्रेज़री द्वारा भारी उपकरणों, जैसे- रेल माउंटेड गैंट्री क्रेन्स, मोबाइल हार्बर क्रेन इत्यादि के आयात को मंजूरी देने में समय लगता था।
  • इस बीच, ईरान की एक महत्त्वाकांक्षी योजना ज़ाहिदान से मशहद (लगभग 1,000 किमी) तक और फिर तुर्कमेनिस्तान की सीमा पर सराक तक रेलवे लाइन का विस्तार करने की है। एक अन्य योजना इसको कैस्पियन सागर पर बांदर अंजली की ओर अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे से जोड़ने की है।

वर्तमान में अमेरिकी प्रतिबंध

  • मई में, अमेरिका ने कहा कि वह चाहता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) पारम्परिक हथियारों की ख़रीद के लिये ईरान पर प्रतिबंध ज़ारी रखे।
  • अमेरिका ने भले ही एकतरफा रूप में ईरान परमाणु समझौते को छोड़ दिया हो, परंतु वह ईरान द्वारा हथियारों के आयात पर प्रतिबंधों को ज़ारी रखना चाहता है।
  • इस बीच, सऊदी अरब में हूती समूहों द्वारा मिसाइल हमलों और जनवरी में अमेरिकी ड्रोन हमले में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के प्रमुख कासिम सुलेमानी की हत्या के दावों के बाद क्षेत्र में तनाव से बढ़ रहा है।
  • इसके अलावा, हाल ही में, ईरान के खोजीर गैस फील्ड, नतंज़ संयंत्र तथा बुशहर में शिपयार्ड पर होने वाले रहस्यमयी विस्फोट में भी अमेरिका और इज़राइल का हाथ माना जा रहा है।
  • अमेरिका द्वारा इस प्रकार के प्रतिबंधों और ‘अधिकतम दबाव’ के कारण भारत के पीछे हटने के संदर्भ में ईरान नए विकल्प ख़ोज रहा है और उसका झुकाव चीन की तरफ़ बढ़ रहा है।

ईरान का चीन की ओर झुकाव

  • जनवरी 2016 में प्रतिबंधों में ढील के बाद चीनी राष्ट्रपति द्वारा तेहरान दौरे के समय एक दीर्घकालिक व्यापक, रणनीतिक साझेदारी कार्यक्रम का प्रस्ताव रखा गया, जिसके तहत ईरान के बुनियादी ढाँचे में चीन द्वारा निवेश किया जाएगा और रियायती दरों पर ईरानी तेल व गैस की आपूर्ति का आश्वासन दिया गया था।
  • हालाँकि, चीन के अत्यधिक करीब होने की अनिच्छा के कारण ईरान ने वर्षों तक इस बातचीत को ज़ारी रखा तथा चीन ने सीमित मात्रा में वस्तु विनिमय व्यापार की अनुमति दी। चाइना पेट्रोलियम और केमिकल कॉर्पोरेशन (SINOPEC) ने यादरान ऑयल फ़ील्ड को विकसित करने के लिये लम्बे समय तक बातचीत को ज़ारी रखा, हालाँकि, चाइना राष्ट्रीय पेट्रोलियम निगम (CNPC) ने पिछले वर्ष दक्षिण पारश गैस परियोजना से बाहर निकलने का निर्णय लिया।
  • इसके अलावा, चीन मध्य एशिया में अपनी स्थिति को मज़बूत करने के साथ-साथ अमेरिका का स्थान लेना चाहता है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इस क्षेत्र में अमेरिका की स्थिति अत्यधिक मज़बूत रही है। साथ ही, ईरान को भी आर्थिक रूप से मज़बूत और स्वतंत्र विदेश नीति वाले सहयोगी की आवश्यकता है। दोनों देश एक-दूसरे की जरूरतों के अनुसार फिट बैठ रहे हैं।
  • इसी संदर्भ में, यह उल्लेखनीय है कि ईरान और चीन के मध्य लगभग $ 400 बिलियन का एक गुप्त समझौता की बात चल रही है। यह समझौता बैंकिंग, दूरसंचार, पत्तनों और रेलवे के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में होने की आशा है। इस समझौते को ‘लायन-ड्रैगन एग्रीमेंट’ नाम दिया जा रहा है।
  • चीन के बेल्ट एंड रोड पहल में ईरान का स्थान काफी महत्त्वपूर्ण है। चीन हमेशा से ईरान को इस परियोजना में एक बड़ा भागीदार बनाना चाहता है।

तेहरान द्वारा संतुलन का प्रयास

  • ईरान की वर्तमान सरकार ट्रम्प के ‘अधिकतम दबाव की नीति’ और देश के अंदर कट्टरपंथियों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास कर रही है।
  • यू.एन.एस.सी. में अमेरिका के कदमों को वीटो करने के लिये केवल रूस और चीन ही हैं। इसके बावजूद भी कट्टरपंथियों द्वारा चीन का विरोध किया जा रहा है।
  • कट्टरपंथियों ने विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद ज़रीफ़ पर चीन से समझौते के तहत अनुचित गोपनीयता का आरोप लगाया है। अफवाह है की चीन ‘किश द्वीप’ पर कब्ज़ा कर सकता है और चीनी निवेशों को सुरक्षित करने के लिये ईरान में चीनी सैनिकों को तैनात किया जाएगा।
  • हाल ही में, भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत अब ईरान स्थित फरज़ाद-बी गैस क्षेत्र में परियोजना का हिस्सेदार नहीं है। फरज़ाद-बी फ़ारस की खाड़ी में स्थित एक प्रमुख गैस क्षेत्र है।
  • इन सबके बीच ईरान ने कहा है कि भारत यदि चाहे तो आगे चलकर चाबहार-ज़ाहिदान रेल लिंक का हिस्सा बन सकता है।

लाभ और एक सबक

  • ईरान, चीन के साथ दीर्घकालिक साझेदारी पर विचार कर सकता है, लेकिन ईरानी वार्ताकार चीनी की बढ़ती व्यापारी प्रवृत्ति से सावधान हैं।
  • यह सच है कि चीन के पास भारत की तुलना में अमेरिकी प्रतिबंधों का विरोध करने की अधिक क्षमता है, परंतु ईरान को दक्षिण एशिया में अपने एकमात्र साथी के साथ काम करने का फायदा मिलता रहा है। जैसे- भारत द्वारा चाबहार के लिये अमेरिकी प्रतिबंधों में छूट प्राप्त करना क्योंकि यह भू-आबद्ध अफगानिस्तान के लिये कनेक्टिविटी प्रदान करता है। अफगानिस्तान में अमेरिका के भी साझा हित है।
  • इसके अलावा, ईरान और भारत दोनों देश अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते प्रभाव के विरोध के लिये नैसर्गिक साथी हैं। यही कारण है कि ईरान, भारत के लिये दरवाज़ा खुला रखना चाहता है।
  • नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका व म्यांमार आदि पड़ोसी देशों में कई भारतीय सहयोग परियोजनाएँ देरी का सामना कर रहीं हैं, जिससे लागत में वृद्धि हुई है जो चीन के लिये भारत के पड़ोस में उसके विस्तार को आसान बनाता है

निष्कर्ष

अंततः भारत को ईरान के साथ राजनीतिक रूप से जुड़े रहना चाहिये ताकि एक-दूसरे की सम्वेदनशीलता और बाध्यताओं की बेहतर तरीके से विवेचना हो सके और सहयोग के क्षेत्र तलाशे जा सकें। साथ ही, भारत को पड़ोसी देशों में उठाए गए बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के कार्यान्वयन रिकॉर्ड में सुधार करने की आवश्यकता है।

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