प्रारंभिक परीक्षा- भारत द्वारा इजरायल, फिलिस्तीन को मान्यता, अब्राहम समझौता मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन, पेपर-2 |
संदर्भ-
- भारत इज़राइल को मान्यता देने वाले अंतिम गैर-मुस्लिम राष्ट्र तथा फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब राष्ट्र है। हालाँकि, 1990 के दशक में संबंधों का संतुलन बदल गया था।
मुख्य बिंदु-
- गाजा पट्टी पर शासन करने वाले आतंकवादी समूह हमास ने हाल ही में इज़राइल पर सबसे खतरनाक हमलों में से एक को अंजाम दिया।
- कई लोगों ने इसे 1948 में इजरायल के निर्माण के बाद से इस राष्ट्र में सबसे खतरनाक हमला कहा है।
- प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवादी हमले कहे जाने पर आश्चर्य व्यक्त किया और इजरायल के साथ एकजुटता व्यक्त की।
- हालांकि विदेश मंत्रालय ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन प्रधान मंत्री के वक्तव्यों को इज़राइल के पक्ष में देखा जा रहा है।
- भारत ने कभी भी हमास के कार्यों की निंदा नहीं की है। लेकिन पिछले सात दशकों में इज़राइल और फिलिस्तीन के साथ भारत के संबंधों में उतार-चढ़ाव रहा है।
आजादी के बाद के वर्षों में-
- इज़राइल के साथ भारत का राजनीतिक संबंध 1947 में आजादी के तुरंत बाद काफी मजबूती से स्थापित हो गया था, जब जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी ने फिलिस्तीनी मुद्दे पर उसका समर्थन किया, क्योंकि उन्होंने धर्म के आधार पर दो राष्ट्रों के निर्माण के विचार को खारिज कर दिया था।
- हालाँकि उनके मन में यहूदियों के प्रति सहानुभूति थी, लेकिन दोनों का विचार था कि धार्मिक विशिष्टता पर आधारित कोई भी राज्य नैतिक और राजनीतिक आधार पर कायम नहीं रह सकता। यह भारत के विभाजन के उनके विरोध के अनुरूप था।
- फ़िलिस्तीन के संबंध में भारत की स्थिति अरब जगत, गुटनिरपेक्ष आंदोलन और संयुक्त राष्ट्र में आम सहमति से भी निर्देशित थी।
- जब फिलिस्तीन के विभाजन की योजना को संयुक्त राष्ट्र में मतदान के लिए रखा गया, तो भारत ने अरब देशों के साथ मिलकर इसके विरोध में मतदान किया।
- जब इज़राइल ने संयुक्त राष्ट्र में प्रवेश के लिए आवेदन किया, तो भारत ने फिर से विरोध में मतदान किया।
- हालाँकि, दो मुस्लिम-बहुल देशों तुर्की और ईरान द्वारा इजरायल को समर्थन देने के बाद भारत ने भी 17 सितंबर, 1950 को इज़राइल को मान्यता दी।
- 1953 में इज़राइल को मुंबई में एक वाणिज्य दूतावास खोलने की अनुमति दी गई थी, लेकिन नई दिल्ली में कोई किसी राजनयिक उपस्थिति को मान्यता नहीं दी गई थी।
- 1960 के दशक के अंत और 70 के दशक की शुरुआत में यासिर अराफात के नेतृत्व में फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के फिलिस्तीन के लोगों के प्रतिनिधि के रूप में उभरने के बाद भारत ने पीएलओ, अल फतह के साथ अपना राजनितिक संबंध विकसित किया।
- 10 जनवरी, 1975 को भारत ने पीएलओ को फिलिस्तीनी लोगों के एकमात्र और वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी और इसे नई दिल्ली में एक स्वतंत्र कार्यालय खोलने की अनुमति दी।
- जबकि भारत इज़राइल को मान्यता देने वाले अंतिम गैर-मुस्लिम राज्यों में से एक था यह पीएलओ को मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब राज्य बन गया।
इंदिरा और राजीव गांधी के अधीन-
- 1980 में जब इंदिरा गांधी सत्ता में लौटीं, तो उन्होंने फिलिस्तीनी संघर्ष को अपना समर्थन जारी रखा। भारत ने पीएलओ कार्यालय को सभी राजनयिक उन्मुक्तियों और विशेषाधिकारों से संपन्न दूतावास के रूप में उन्नत किया।
- 80 के दशक की शुरुआत में अराफ़ात अक्सर दिल्ली आते रहे और भारत-फ़िलिस्तीन के बीच संबंध मजबूत हुए।
- मार्च 1983 में जब भारत में NAM शिखर सम्मेलन हुआ, तो इसमें फिलिस्तीन के लिए एकजुटता का बयान आया।
- अप्रैल 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लीबिया की राजकीय यात्रा के बाद ट्यूनिस में अराफात के मुख्यालय का दौरा किया।
- जब इंदिरा गांधी हत्या कर दी गई, तो अराफ़ात उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए और सार्वजनिक रूप से रोये।
- राजीव गांधी ने फिलिस्तीन के प्रति पूर्व का भारतीय दृष्टिकोण जारी रखा और दिसंबर 1987 में गाजा तथा वेस्ट बैंक में इजरायल की 'लोहे की मुट्ठी'(Iron Fist) नीति के विरुद्ध फिलिस्तीनी इंतिफादा (विद्रोह, Intifada) को भारत ने अपना समर्थन जारी रखा।
ग्राउंड शिफ्ट(Ground shifts)-
- हालाँकि, इस समय तक भारत में कई राजनितिक दल भारत की फिलिस्तीन नीति और अरब दुनिया को इसके पूर्ण समर्थन के आलोचक हो चुके थे।
- 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान अरब देशों की तटस्थता की नीति और 1965 तथा 1971 के युद्धों के दौरान पाकिस्तान को उनका समर्थन कई राजनितिक दलों को पसंद नहीं आया।
- जबकि इजराइल ने 1962 और 1965 के युद्धों में हथियारों और गोला-बारूद के साथ भारत की मदद की।
- अगस्त,1990 में जब इराक ने कुवैत पर आक्रमण किया तो पश्चिम एशिया में स्थिति बदल गई।
- सद्दाम हुसैन को समर्थन देने के कारण पीएलओ ने अपना राजनीतिक लाभ खो दिया।
- लगभग उसी समय सोवियत संघ का विघटन हो गया और इसने भारत को पश्चिम एशिया के प्रति अपनी नीति में बड़ा बदलाव करने के लिए प्रेरित किया।
- चीन द्वारा तेल अवीव(इजरायल) के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने के कुछ दिनों बाद जनवरी,1992 में भारत ने इज़राइल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित किए।
- शीत युद्ध की समाप्ति ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन को कमजोर कर दिया और इज़राइल के प्रति वैचारिक शत्रुता कम कर दी।
- 19-20 जनवरी, 1992 को फिलिस्तीनी राष्ट्रपति अराफात ने भारत की आधिकारिक यात्रा की।
- प्रधान मंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव के साथ उनकी बैठक के दौरान यह स्पष्ट किया गया कि भारत का इज़राइल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करना फिलिस्तीनी हित के लिए सहायक होगा। उनसे कहा गया कि नई दिल्ली, इज़राइल पर तभी प्रभाव डाल सकती है जब तेल अवीव में उसका एक राजदूत हो।
- राव के साथ द्विपक्षीय बातचीत के बाद अराफात ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, "राजदूतों का आदान-प्रदान और इजरायल की मान्यता संप्रभुता के कार्य हैं जिसमें मैं हस्तक्षेप नहीं कर सकता... मैं भारत सरकार के किसी भी कार्य का सम्मान करता हूं।"
सैन्य संबंध और कारगिल युद्ध-
- इज़राइल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित करना 1999 में कारगिल संघर्ष के दौरान विशेष रूप से काम आया।
- भारतीय वायु सेना को सटीक लक्ष्य वाले बमों की सख्त जरूरत थी क्योंकि पाकिस्तानी घुसपैठिए कारगिल में पहाड़ों के ऊपर गुफाओं और बंकरों में छिपे हुए थे।
- भारतीय वायुसेना ने अपने इजरायली समकक्षों से संपर्क किया, जिन्होंने बिना समय बर्बाद किए हथियार भारत भेजे, जो निर्णायक साबित हुए।
- इसके बाद वाजपेयी सरकार ने 2000 में पहली द्विपक्षीय यात्रा के लिए विदेश मंत्री जसवंत सिंह को भेजा।
- गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने 2000 की गर्मियों में इज़राइल का दौरा किया। इसके बाद और भी हाई-प्रोफाइल यात्राएं हुईं।
- मोदी सरकार बनने के बाद संबंधों में और अधिक स्पष्टता आई है।
- 2017 में प्रधानमंत्री मोदी की इज़राइल यात्रा पहली प्रधानमंत्री स्तरीय यात्रा थी।
- हालाँकि, मोदी सरकार इस यात्रा की तैयारी को लेकर काफी सतर्क थी।
- प्रधानमंत्री ने इज़राइल की यात्रा से पहले 2014 और 2017 के बीच सऊदी अरब, ईरान, कतर, संयुक्त अरब अमीरात आदि इज़राइल के सभी क्षेत्रीय प्रतिद्वंदी देशों का दौरा किया।
- नई दिल्ली ने मई 2017 में फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास की मेजबानी की। सभी सार्वजनिक घोषणाओं में भारत के अधिकारियों ने फिलिस्तीनी मुद्दे के प्रति अपने समर्थन पर भारत की स्थिति को बरकरार रखा।
- बाद में प्रधानमंत्री मोदी ने फरवरी,2018 में फिलिस्तीन का दौरा किया, लेकिन इज़राइल का दौरा नहीं किया. अतः संबंधों में गिरावट आ गई।
पिछले दशक में-
- पिछले लगभग एक दशक में इज़राइल के साथ-साथ पश्चिम एशिया के साझेदार देशों यथा; - सऊदी अरब, मिस्र, कतर और ईरान के साथ सुरक्षा, रक्षा और कनेक्टिविटी में भारत के संबंध मजबूत हुए हैं।
- जटिल पश्चिम एशियाई क्षेत्र में सभी पक्षों के साथ जुड़ने का भारतीय दृष्टिकोण रणनीतिक आवश्यकता से उत्पन्न हुआ है।
- इस क्षेत्र में 90 लाख से अधिक भारतीय समुदाय के लोग हैं तथा यह यूरोप से कनेक्टिविटी का मार्ग उपलब्ध करवाता है।
- सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत का 50% से अधिक ऊर्जा आयात पश्चिम एशिया से होता है।
- अक्टूबर,2023 में हमास द्वारा इजरायल पर हुए भयावह हमलों ने भारत को कूटनीतिक रूप से मुश्किल स्थिति में डाल दिया है।
- ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत मौजूदा शत्रुता को समाप्त करने तथा अब्राहम समझौते के तहत सऊदी अरब एवं इज़राइल के बीच मेल-मिलाप का प्रयास कर रहा है, जिसमें मध्य-पूर्व में सदियों ‘पुरानी दोष-रेखाओं’(old fault-lines) को फिर से आकार देने का वादा किया गया था।
- भारत इस क्षेत्र में शांति की उम्मीद कर रहा था।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-
प्रश्न- निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- भारत इज़राइल को मान्यता देने वाला प्रथम गैर-मुस्लिम राष्ट्र था।
- भारत फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को मान्यता देने वाला अंतिम गैर-अरब राष्ट्र था।
नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर- (d)
मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-
प्रश्न- जटिल पश्चिम एशियाई क्षेत्र में सभी पक्षों के साथ जुड़ने का भारतीय दृष्टिकोण रणनीतिक आवश्यकता से उत्पन्न हुआ है। टिप्पणी करें।
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