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भारत का विद्युत क्षेत्र: चुनौतियाँ एवं समाधान

(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास-सतत विकास, समावेशन तथा सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: आधारभूत ढाँचा- ऊर्जा)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भारतीय उद्योग परिसंघ के राष्ट्रीय परिषद् के सदस्यों को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारतीय बिजली क्षेत्र एक परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है तथा माँग तथा आपूर्ति के संतुलन को दूर करने में भारत की उल्लेखनीय प्रगति रही है और भारत के पास अब अतिरिक्त बिजली उपलब्ध है, जिसे वह पड़ोसी देशों को निर्यात करता है।

पृष्ठभूमि

  • विद्युत आधारभूत ढाँचे के सबसे महत्त्वपूर्ण घटकों में से एक है, जो किसी भी राष्ट्र के आर्थिक विकास के लिये अति आवश्यक है।
  • भारत का विद्युत क्षेत्र विश्व का सबसे अधिक विद्युत विविधता वाला क्षेत्र है। यहाँ बिजली उत्पादन के स्त्रोतों में कोयला, प्राकृतिक गैस, तेल, पनबिजली और परमाणु ऊर्जा से लेकर पवन, सौर, कृषि और घरेलू कचरे जैसे गैर-पारम्परिक स्त्रोत तक शामिल हैं।
  • देश में बिजली की माँग में तेजी से वृद्धि हुई है तथा भविष्य में भी माँग बढ़ने की सम्भावना है। इसलिये इस माँग की पूर्ति हेतु व्यापक स्तर पर बिजली उत्पादन की आवश्यकता है।

सरकार की पहल

  • भारत सरकार ने जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति को स्वीकृति प्रदान की है। इस नीति का मुख्य उद्देश्य स्वच्छ पर्यावरण, रोज़गार सृजन, आयात निर्भरता कम करना, ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत निवेश को बढ़ावा देना और किसानों के लिये अतिरिक्त आय उपलब्ध करवाना है।
  • वर्ष 2018 तक दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत 100% गावों का विद्युतीकरण किया गया है।
  • पिछले कुछ वर्षों में सरकार द्वारा सब्सिडी पर व्यापक स्तर पर एल.ई.डी. वितरित की गई हैं, जिससे ऊर्जा की खपत में कमी आई है।
  • सौभाग्य योजना जैसे नीतिगत उपायों ने उल्लेखनीय रूप से पहले से लागू 3’A Awareness (जागरूकता), Accessibility (पहुँच) and Availability (उपलब्धता) में सुधार किया है।

विद्युत क्षेत्र की चुनौतियाँ

  • अधिक कंडक्टर, मीटर और ट्रांसफार्मर की आवश्यकता वाले एल.टी. वितरण नेटवर्क की लम्बाई में वृद्धि के कारण विद्युत आपूर्ति की लागत में बढ़ोत्तरी हुई है।
  • अधिकांश नए उपभोक्ता यू.पी. और बिहार जैसे कम आय वाले राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों से हैं, जो सब्सिडी वाले उपभोक्ता श्रेणी से सम्बंधित हैं। इस प्रकार सम्बंधित राज्य सरकारों का सब्सिडी बोझ बढ़ गया है।
  • बी.पी.एल. उपभोक्ताओं के लिये विद्युत सब्सिडी की उपलब्धता राज्य की क्षमता और प्रति व्यक्ति आय पर निर्भर करती है, जोकि प्रत्येक राज्य में अलग-अलग है तथा केंद्र सरकार इसके लिये किसी प्रकार की सहायता उपलब्ध नहीं करवाती है, जबकि विद्युत कम्पनियों की प्राथमिकता उपभोक्ताओं के लिये सस्ती बिजली उपलब्ध करवाना है।
  • स्वच्छ प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने हेतु कोयला उपकर के ज़रिये 1 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक इकठ्ठा किये गए हैं। लेकिन कोष का उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिये किया गया है। जैसे इस कोष का उपयोग राज्यों को जी.एस.टी. क्षतिपूर्ति के रूप में किया गया है।
  • भारत में बिजली उत्पादन हेतु गुणवत्तापूर्ण कोयले की आपूर्ति नहीं हो पाती है।
  • डिस्कॉम अर्थात विद्युत वितरण कम्पनियाँ मुख्य रूप से सरकारी स्वामित्त्व में हैं। बिजली की माँग में वृद्धि के बावजूद कम्पनियाँ अधिक लागत के चलते बिजली खरीदने को तैयार नहीं हैं तथा विद्युत खरीद समझौते (Power Purchase Agreement) पर भी हस्ताक्षर नहीं करती हैं।

आगे की राह

  • राज्य के स्वामित्त्व वितरण कम्पनियों के निजीकरण एवं उनके प्रबंधन में सुधार से बिजली को किफ़ायती बनाने, बिजली की क्षति को कम करने और दक्षता में वृद्धि करने से अत्यधिक सफलता प्राप्त हुई है।
  • वर्तमान में देश के पास पर्याप्त विद्युत संसाधन तथा क्षमता है। ऐसी स्थिति में निजीकरण करने के बजाय आवश्यक सुधार करने की आवश्यकता है।
  • उदय (उज्जवल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना), सौभाग्य- प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना जैसी योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन किये जाने की आवश्यकता है।
  • विद्युत उत्पादन में वृद्धि हेतु कोयले के मूल्य में कमी और गुणवत्ता में सुधार करने सम्बंधी मुद्दों का समाधान किया जाना चाहिये।
  • कोयला उपकर को या तो हटाया जा सकता है या इसका उपयोग पूर्व निर्धारित लक्ष्यों के लिये किया जाना चाहिये।
  • हमें कोयला आधारित विद्युत उत्पादन में वृद्धि के बजाय नवीकरणीय ऊर्जास्त्रोतों को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • सस्ती, विश्वसनीय और टिकाऊ नवीकरणीय ऊर्जा उपलब्ध कराए जाने हेतु ‘सभी के लिये विद्युत’ (Power For All) के लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ना समय की माँग है।
  • विद्युत सयंत्रों में व्यापक स्तर पर गैर-निष्पादित परिसम्पत्तियां विद्यमान हैं। इन्हें समाप्त या इनकी तीव्रता से रिकवरी करके इन कम्पनियों के खातों का शुद्धिकरण किया जाना चाहिये ताकि ये नये ऋण के लिये योग्य हो सकें तथा नई परिसम्पत्तियों का निर्माण कर सकें।
  • भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में निरंतर निरीक्षण के अभाव के चलते बिजली की चोरी एक मुख्य समस्या बनी हुई है।
  • विद्युत वितरण के दौरान होने वाली विद्युत हानि या ट्रांसमिशन लॉस (Transmission Loss) कम करने हेतु तकनीकी परिवर्तनों की आवश्यकता है।
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