New
IAS Foundation Course (Prelims + Mains): Delhi & Prayagraj | Call: 9555124124

भारत की शांत व सैन्य कूटनीति: आतंरिक बाधाएँ

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत एवं इसके पड़ोसी- सम्बंध, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय व वैश्विक समूह तथा भारत)

पृष्ठभूमि

जून के दूसरे सप्ताह की शुरुआत में भारत और चीन के सैनिकों के मध्य होने वाली झड़पों में कुछ कमी आई है। भारत और चीन के मध्य पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर गतिरोध मई माह की शुरुआत में प्रारम्भ हुआ था। आधिकारिक रूप से यह पहला मामला है जब भारत और चीन के मध्य एल.ए.सी. पर एक साथ कई गतिरोधों की पुष्टि की गई है। कूटनीति के स्तर पर इस प्रकार के गतिरोधों से निपटने के लिये रणनीतिक बहस मीडिया और सार्वजानिक रूप से शुरू हो गई है। सीमा मामलों को हल करने में राजनीतिक विरोध तथा जनता व मीडिया की राय की अपेक्षा कूटनीतिक चैनलों का प्रयोग ज़्यादा प्रभावी रहा है।

चीन और भारत के मध्य गतिरोध की वास्तविकता

  • प्रारम्भिक वार्ता से संकेत मिलता है कि गतिरोध को हल करने की प्रक्रिया आरम्भिक चरण में है न कि अंतिम चरण में है। दोनों पक्षों के बीच पाँच बिंदुओं पर असहमति है। इनमें से चार बिंदुओं पर गतिरोध को हल करने के लिये दोनों देशों द्वारा एक व्यापक योजना पर सहमति व्यक्त की गई है।
  • गलवान घाटी और उत्तरी सिक्किम की तरह ही गतिरोध के पाँचवें बिंदु पैंगोंग त्सो झील की स्थिति अनिश्चित बनी हुई है। पैंगोंग त्सो झील पर चीनी सैनिकों ने एल.ए.सी. से भारतीय क्षेत्र की ओर टेंट आदि को स्थापित कर लिया है। दोनों के मध्य मतभेद का यह एक प्रमुख बिंदु है जिसे हल करना आसान नहीं होगा।

ऐसे गतिरोधों के लिये पूर्व में अपनाई गई रणनीति

  • पूर्व में इस प्रकार के सीमा गतिरोधों को हल करने के लिये आपसी सहमति के बिंदुओं का पैटर्न शांत कूटनीति (Quiet Diplomacy) द्वारा निभाई गई महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
  • पूर्ववर्ती (UPA) और वर्तमान (NDA) दोनों सरकारों ने ऐसे मुद्दों को हल करने में एक ऐसे दृष्टिकोण का पालन किया है जिसमें सैन्य स्थिति के मज़बूत प्रदर्शन के साथ शांत कूटनीति को भी साथ रखा गया है। यह एल.ए.सी. पर चीन की चुनौतियों से निपटने की व्यापक रणनीति है और इस रणनीति द्वारा आम तौर पर मुद्दों को सुलझाने में कामयाबी मिली है।
  • वर्ष 2013 में भी चीन द्वारा देपसांग (Depsang Plains) में भी पैंगोंग त्सो जैसा अतिक्रमण किया गया था। इसके बारे में, पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने ‘च्वॉइसेस: इनसाइड दि मेकिंग ऑफ़ इंडियाज़ फॉरेन पॉलिसी’ में लिखा है कि इस मामलें को हल करने हेतु सार्वजनिक बयान बाज़ी के स्थान पर सैन्य मज़बूती के साथ शांत कूटनीति का प्रयोग किया गया था। इसमें व्यक्तिगत तौर पर चीन को उसके सरकार के प्रमुख ली केकियांग की आगामी यात्रा को रद्द करने जैसे संदेश देने व अन्य उपायों का प्रयोग किया गया था।
  • एन.डी.ए. सरकार ने चुमार में वर्ष 2014 के गतिरोध के दौरान भी ऐसी ही रणनीति अपनाई थी। उस समय राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत की यात्रा पर आने वाले थे।
  • वर्ष 2017 के लगभग 72 दिवसीय डोकलाम गतिरोध को भी शांत कूटनीति से हल कर लिया गया था, जिसकी शर्तों के अनुसार भारतीय सेना को विवादित स्थल से पहले हटना शामिल था। डोकलाम, भारत-भूटान-चीन के त्रिकोण पर भूटान में स्थित है। इस प्रकार, उपरोक्त तीन बड़े मामलों में सैन्य मज़बूती के साथ शांति की कूटनीति अधिक फलदायक सिद्ध हुई है।
  • अंततः यह कहा जा सकता है की लगभग सभी मामलों में राजनीतिक तथा जनता व मीडिया की राय और माँग की अपेक्षा कूटनीति के शांतिपूर्ण प्रयोग पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया।

आंतरिक वास्तविकता

  • एल.ए.सी. पर इस तरह का तनाव न तो पहली बार है और न ही ये अंतिम है। भारत में इस प्रकार के मुद्दों का राजनीतिकरण बहुत आम बात है। इससे इन प्रकार के मामलों को सुलझाने और शांत कूटनीति को सक्रिय करने में बाधाएँ आती हैं।
  • इसमें सोशल मीडिया पर अनावश्यक व नियोजित दुष्प्रचार और जनता की राय व भावनाओं के साथ-साथ मीडिया में की गई अनाधिकारिक बयान बाज़ी भी समस्याएँ पैदा करती है, जिससे दोनों पक्षों को किसी नतीजे पर पहुँचने में समस्या होती है।

सावधानियाँ

  • इन समस्याओं से निपटने के लिये सरकार को एक निश्चित रूपरेखा का पालन करना चाहिये। सबसे पहले, इन मुद्दों की वास्तविकता से विपक्ष को सूचित करने की आवश्यकता है। दूसरा, इन मामलों में मीडिया को लगातार अपडेट करने की ज़रूरत है। भले ही मुद्दे कम-महत्त्वपूर्ण हो परंतु मीडिया के माध्यम से जनता के बीच ज़ुबानी जंग से बचा जा सकता है।
  • साथ ही, सीमा गतिरोध पर बातचीत के समय सीमा की पेचीदगियों पर जनता में सार्वजानिक बहस से बचने के साथ-साथ हर मामलें में प्रधानमंत्री द्वारा बयान की माँग नहीं की जानी चाहिये। इसके अतिरिक्त, सरकार में भी बड़े स्तर पर संयम बरतने की ज़रुरत होती है। इन सबकी अनदेखी तनावपूर्ण स्थितियों को और भड़का देती है, जिससे दोनों पक्षों में किसी नतीजें पर पहुँचने में लचीलेपन का आभाव हो जाता है।
  • यह सुनिश्चित करना सरकार के हित में है कि मीडिया जो रिपोर्ट कर रहा है वह पूरी तरह से सही और सत्यापित है या नहीं।

निष्कर्ष

सीमा सम्बंधी व्यापक उद्देश्य राजनीतिक बहस में नहीं खो जाने चाहिये। इसका उद्देश्य भारत के सुरक्षा हितों को सुरक्षित रखने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना है कि भारत की सीमाओं में बलपूर्वक कोई बदलाव न किया जा सके। अतीत की घटनाओं से यह सीखा जा सकता है कि शांतिपूर्वक कूटनीति मज़बूत सैन्य संकल्प के साथ मिलकर किसी भी चीनी दुस्साहस को रोकने में सार्वजानिक बहस की अपेक्षा अधिक प्रभावी रही है। समाज एक ऐसे मीडिया वातावरण से गुज़र रहा है जहाँ शाब्दिक मुखरता को मज़बूती और शांति को कमज़ोरी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR