(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
संदर्भ
हाल ही में, भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने तथा पर्यावरण की रक्षा करने के उद्देश्य से नई आर्कटिक नीति का अनावरण किया है। नीति का शीर्षक ‘भारत और आर्कटिक: सतत विकास के लिये साझेदारी का निर्माण’ है।
आर्कटिक क्षेत्र तथा भारत
- 66.5 ˚ उत्तरी अक्षांश से उत्तर में स्थित क्षेत्र को आर्कटिक क्षेत्र माना जाता है, जिसमें आर्कटिक महासागर शामिल है और इसका केंद्र उत्तरी ध्रुव है। आर्कटिक क्षेत्र पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र के वायुमंडलीय, समुद्र विज्ञान और जैव-भू-रासायनिक चक्रों को प्रभावित करता है।
- इस क्षेत्र के साथ भारत के संबंधों की शुरुआत वर्ष 1920 से हुई जब भारत ने पेरिस में ‘स्वालबार्ड संधि’ पर हस्ताक्षर किये। वर्ष 2007 में इस क्षेत्र में भारत ने अपने पहले अनुसंधान कार्यक्रम की शुरुआत की। इसी क्रम में भारत ने वर्ष 2008 में इस क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान स्टेशन ‘हिमाद्रि’ स्थापित किया।
- वर्ष 2013 से भारत आर्कटिक परिषद् में एक पर्वेक्षक राष्ट्र रहा है। आर्कटिक परिषद् में आठ आर्कटिक देश- कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
- वर्ष 2014 और 2016 में कोंग्सफजॉर्डन में भारत की पहली मल्टी-सेंसर मूरेड वेधशाला और एनवाई-एलेसंड स्थित ग्रुवेबडेट में सबसे उत्तरी वायुमंडलीय प्रयोगशाला को आर्कटिक क्षेत्र में लॉन्च किया गया था।
- वर्ष 2022 तक भारत ने आर्कटिक क्षेत्र में तेरह अनुसंधान कार्यक्रमों का सफलतापूर्वक संचालन किया है।
नई आर्कटिक नीति के मुख्य स्तंभ
- विज्ञान एवं अनुसंधान
- जलवायु और पर्यावरण संरक्षण
- आर्थिक और मानव विकास
- परिवहन एवं कनेक्टिविटी
- शासन एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
- राष्ट्रीय क्षमता संवर्धन
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- विज्ञान एवं अनुसंधान - विज्ञान एवं अनुसंधान के तहत भारत के अग्रलिखित उद्देश्य हैं:
- परिष्कृत पर्यवेक्षण और विविध यंत्रों के साथ नॉर्वे में एनवाई-एलेसंड हिमाद्रि में मौजूदा अनुसंधान बेस को सुदृढ बनाना, वहाँ उपस्थिति बनाए रखना और आर्कटिक में अतिरिक्त अनुसंधान स्टेशन स्थापित करना।
- सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, नृवैज्ञानिक और पारंपरिक ज्ञान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय आर्कटिक प्राथमिकताओं के अनुरूप अनुसंधान को प्रोत्साहित करना।
- राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्कटिक से संबंधित अनुसंधान के लिये विशेष संस्थागत वित्तपोषण सहयोग की स्थापना करना।
- प्रवासी वन्यजीव प्रजातियों के संरक्षण संबंधी अभिसमय के एक पक्षकार के रूप में भारत, आर्कटिक जैव विविधता पर अनुसंधान और संरक्षण में आर्कटिक राष्ट्रों के साथ मिलकर कार्य करेगा।
- आर्कटिक क्षेत्र में कम डिजिटल कनेक्टिविटी पाई जाई जाती है। दूरस्थ क्षेत्रों में प्रभावी उपग्रह सक्षम संचार और डिजिटल कनेक्टिविटी प्रदान करने की भारत की विशेषज्ञता इस कमी को पूरा करने में मदद मिलेगी।
जलवायु और पर्यावरण संरक्षण
- आर्कटिक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन, भारत के वैज्ञानिक अनुसंधान का एक महत्त्वपूर्ण आयाम है। इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के अध्ययन से विश्व के अन्य भागों में प्रतिक्रिया तंत्र में सुधार हो सकता है। भारत की नई आर्कटिक नीति निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ बनाई गई है-
- सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये आर्कटिक क्षेत्र के साथ भारत के उत्कृष्ट आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।
- आर्कटिक जैव-विविधता और सूक्ष्म जीव विविधता को संरक्षित करने के लिये पारिस्थितकी तंत्र के मूल्यों, समुद्री संरक्षित क्षेत्रों और पारंपरिक ज्ञान तंत्र से संबंधित अनुसंधान में भाग लेना।
- आर्कटिक में मानव जाति और पर्माफ्रॉस्ट स्रोतों से मीथेन का उत्सर्जन, ब्लैक कार्बन उत्सर्जन, महासागरों में माइक्रो-प्लास्टिक, समुद्री कचरा, समुद्री स्तनधारी जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव और अन्य के संबंध में पर्यावरणीय प्रबंधन के लिये योगदान करना।
आर्थिक और मानव विकास
- आर्कटिक क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिये भारत का दृष्टिकोण संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों द्वारा निर्देशित है। भारत आर्कटिक क्षेत्र में सतत व्यापार एवं विकास का समर्थन करता है।
- आर्कटिक क्षेत्र में ऊर्जा, खनिज व अन्य प्राकृतिक संसाधनों के प्रचुर भंडार उपलब्ध हैं। साथ ही यह पृथ्वी पर बचे हुए हाइड्रोकार्बन के लिये सबसे बड़ा अज्ञात संभावित क्षेत्र है। भारत नई नीति के माध्यम से आर्कटिक क्षेत्र में सजीव और निर्जीव संसाधनों के सतत दोहन में भागीदारी को मज़बूत करने के लिये आर्कटिक देशों का सहयोग करना चाहता है।
- साथ ही, भारत इस क्षेत्र में ई-कॉमर्स को बढ़ावा देने के लिये आर्कटिक देशों के साथ डिजिटल भागीदारी करना चाहता है।
- भारत का लक्ष्य इस क्रायोस्फेरिक क्षेत्र में पूर्णरूप से सुरक्षित बीज भंडारण सुविधाएँ प्रदान करना भी है।
- भारत को डिजिटाइजेशन और नवाचारों का उपयोग कर कम लागत वाले सामाजिक नेटवर्क के निर्माण में पर्याप्त अनुभव है। इस विशेषज्ञता का उपयोग आर्कटिक देशों के साथ मूल निवासियों और अन्य समुदायों के शासन और कल्याण का लक्ष्य भी निर्धारित है।
- भारत इस नीति के माध्यम से न केवल इस क्षेत्र में सतत पर्यटन में अपनी भागीदारी को प्रोत्साहित करेगा बल्कि इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाएँ और प्रौद्योगिकी समाधान भी प्रदान करेगा।
- वर्तमान में भारत नाविकों की आपूर्ति (वैश्विक मांग का लगभग 10%) करने वाले देशों की सूची में तीसरे स्थान पर है। भारत नई नीति के तहत आर्कटिक में समुद्री मानव संसाधन की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने में योगदान देगा।
- यह नीति आर्कटिक पारगमन में कार्यरत जहाजों के चालक दल के रूप में भारतीय नाविकों के लिये अवसरों को बढ़ावा देगी।
शासन एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
- आर्कटिक क्षेत्र में संबंधित संप्रभु अधिकार क्षेत्र वाले राष्ट्रों के साथ-साथ राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर के क्षेत्र भी शामिल होते हैं। यह क्षेत्र राष्ट्रीय घरेलू कानून, द्विपक्षीय करारों, वैश्विक संधियों और मूल निवासियों के अभिसमयों एवं प्रथागत कानूनों से शासित है।
- भारत की नई नीति का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय संधियों और करारों के अनुसार आर्कटिक क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देना है।
- नई नीति के माध्यम से इस क्षेत्र में सभी हितधारकों के साथ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सहभागिता का अनुसरण करते हुए क्षेत्र से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संधि ढांचे में सक्रिय रूप से भाग लेना भी इसका एक उद्देश्य है।
राष्ट्रीय क्षमता संवर्धन
- इस नीति का उद्देश्य पृथ्वी विज्ञान, जैविक विज्ञान, भू-विज्ञान, जलवायु परिवर्तन और आर्कटिक से संबंधित अंतरिक्ष से संबंधी कार्यक्रमों के क्षेत्रों में भारतीय विश्वविद्यालयों में अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ावा देना है।
- इसके द्वारा अनुसंधान के साथ ही हिम-श्रेणी के मानकों के जहाजों के निर्माण में स्वदेशी क्षमता के निर्माण पर भी बल दिया जाएगा।
अन्य तथ्य
गोवा स्थित राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR), पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान है। यह भारत के ध्रुवीय अनुसंधान कार्यक्रम के लिये नोडल संस्थान है, जिसमें आर्कटिक क्षेत्र से संबंधित अध्ययन किये जाते हैं।
निष्कर्ष
भारत की आर्कटिक नीति को लागू करने में अकादमिक, शोध समुदाय और उद्योग सहित कई हितधारक शामिल होंगे। इससे समय-सीमा का निर्धारण होगा, संबंधित गतिविधियों को प्राथमिकता मिलेगी और अपेक्षित संसाधनों का आवंटन सुनिश्चित होगा।