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भारत की अंतरिक्ष हथियार क्षमता : चुनौतियाँ तथा सुझाव

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 ; विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- अंतरिक्ष)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनाइटेड स्टेट्स स्पेस कमांड (USSC) द्वारा एक बयान जारी कर कहा गया है कि जुलाई 2020 में रूस द्वारा एक सह-कक्षीय (एक कक्षा से दूसरी कक्षा में) एंटी सैटेलाइट (ASAT) मिशन लांच किया गया। इसने अंतरिक्ष में हथियारों तथा काइनेटिक एनर्जी वेपन (KEWs) के महत्त्व के सम्बंध में दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है।

काइनेटिक एनर्जी वेपन (KEWs)

काइनेटिक एनर्जी वेपन लेज़र, माइक्रोवेव और कण-पुंज (Particle Beam)सहित अत्यधिक केंद्रित उर्जा के साथ अपने लक्ष्य को क्षति पहुँचाने या उसकी संचार व्यवस्था को बाधित करने की क्षमता रखते हैं। इस तकनीक के सम्भावित अनुप्रयोगों में अंतरिक्षकर्मियों, मिसाइलों, सैटेलाइटों तथा अंतरिक्ष वाहनों को लक्षित किया जाता है।

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भारत की अंतरिक्ष सैन्य क्षमता

भारत विभिन्न अंतरिक्ष सम्बंधी संधियों का पक्षधर रहा है लेकिन महाशक्तियों तथा पड़ोसी देशों की अंतरिक्ष क्षमताओं के विकास को देखते हुए भारत द्वारा वर्ष 2019 में मिशन शक्ति के अंतर्गत ‘एंटी सैटेलाइट मिशन’ लांच किया गया। हालाँकि, भारत का यह कदम किसी राष्ट्र के विरुद्ध नहीं बल्कि आत्मरक्षा के लिये है।

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भारत के लिये चुनौतियाँ :

  • पाकिस्तान और चीन की बढ़ती घनिष्टता को देखते हुए ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि चीन काइनेटिक एनर्जी वेपन विकसित करने के साथ पाकिस्तान को भी यह तकनीक प्रदान कर सकता है, जिससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
  • चीन के पास भारत की नौवहन प्रणाली (IRNSS) को नष्ट करने की क्षमता है, जिससे भारत की संचार प्रणाली बाधित की जा सकती है।
  • ध्यातव्य है कि भारत एक विकासशील देश है, जहाँ अन्य महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ गरीबी, बेरोज़गारी और कुपोषण भी विद्यमान हैं। इसलिये इन चुनौतियों को देखते हुए भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी बने रहना एक बड़ी समस्या है।
  • अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी उद्यमियों एवं स्टार्ट-अप्स को पर्याप्त रूप में प्रोत्साहित नहीं किया जाता है, जिससे निजी क्षेत्र की प्रतिभाओं और क्षमताओं का लाभ नहीं मिल पाता है।
  • वर्तमान में भारत बड़े स्तर पर अंतरिक्ष उपकरणों का आयात करता है, जिससे भारत की अंतरिक्ष परियोजनाओं की लागत में वृद्धि होती है।
  • यद्यपि अंतरिक्ष में काफी सैन्य सैटेलाइट तैनात हैं, जिनमें अमेरिका, रूस तथा चीन प्रथम पंक्ति में हैं, लेकिन भारत की अंतरिक्ष में सैन्य स्थिति अभी संतोषजनक नहीं है।
  • अंतरिक्ष को युद्ध क्षेत्र बनाने के लिये विकसित देशों के प्रयास अनिवार्य रूप से अंतरिक्ष के परमाणुकरण की ओर जाएँगे।

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आगे की राह

  • भारत को रूस के इस प्रयास को गम्भीरता से लेना चाहिये तथा अपनी अंतरिक्ष सैन्य क्षमता में वृद्धि हेतु गम्भीरता से कार्य करना चाहिये।
  • भारत ने वर्ष 2019 में धरती से अपने ही उपग्रह को नष्ट करने का सफल परीक्षण किया था। लेकिन भविष्य की चुनौतियों तथा पड़ोसी देशों की क्षमताओं को देखते हुए भारत को काइनेटिक एनर्जी वेपन त्रय (KEWs Triad) हासिल करने पर ज़ोर देना चाहिये।
  • भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिये अधिक बजट आवंटित करने की आवश्यकता है। साथ ही इसरो और डी.आर.डी.ओ. जैसी संस्थाओं को अधिक वित्त उपलब्ध करवाया जाना चाहिये।
    § उच्च भूमि का मूल्य युद्ध के सबसे पुराने और सबसे स्थाई सिद्धांतों में से एक है। अंतरिक्ष क्षेत्र इन सभी विशेषताओं को समाहित करता है। इसलिये भारत द्वारा अपनी सुरक्षा के लिये एक सैन्य अंतरिक्ष बल का संचालन किया जाना चाहिये।
  • रूस की इस अंतरिक्षीय गतिविधि को भारत को अपनी अंतरिक्ष क्षमता में वृद्धि के एक अवसर के रूप में देखना चाहिये, जिससे हमें एक अंतरिक्ष सैन्य शक्ति बनने तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का दबदबा कम करने में सहायता मिलेगी। दूसरी तरफ भारत अगर इस मौके को गँवाता है तो निश्चित रूप से चीन का वर्चस्व स्थापित होगा।

निष्कर्ष

अंतरिक्ष एक ग्लोबल कॉमन्स (इसके अंतर्गत पृथ्वी के वैश्विक प्राकृतिक संसाधन जैसे उच्च महासागर, वायुमंडल, बाहरी क्षेत्र और विशेष रूप से अंटार्कटिका को शामिल किया जाता है) है, अगर इनका उपयोग शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये नहीं किया गया तो अंतरिक्ष हथियारों की दौड़ सम्पूर्ण मानवता को खतरे में डाल देगी।

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