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शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्ति का लक्ष्य और भारत की रणनीति 

(प्रारंभिक परीक्षा- पर्यावरणीय & पारिस्थितिकी; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन: प्रश्न पत्र-3: विषय-संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)    

संदर्भ

  • ग्लासगो में आयोजित कॉप-26 में भारतीय प्रधानमंत्री ने भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं को ‘पंचामृत’ के रूप में प्रस्तुत किया है। इसमें वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य तक पहुँचने की प्रतिबद्धता मुख्य रूप से शामिल है।
  • वैश्विक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य तक पहुँचने के लिये भारत की भागीदारी अपरिहार्य है। विगत कुछ वर्षों में भारत ने इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका भी निभाई है।

लक्ष्य प्राप्ति हेतु भारत के संकल्प

  • कॉप-26 में भारतीय प्रधानमंत्री ने शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु पंचामृत नामक रणनीति की घोषणा की। इसके प्रमुख घटकों में शामिल हैं-
    • वर्ष 2030 तक अपनी गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट करना।
    • वर्ष 2030 तक अपनी 50% ऊर्जा आवश्यकताओं की आपूर्ति नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा पूरी करना।
    • वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करना।
    • वर्ष 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% से भी कम करना।
    • वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य के लक्ष्य को प्राप्त करना।

    लक्ष्य प्राप्ति हेतु भारत के प्रमुख प्रयास

    • भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य निरंतर अधिक महत्त्वाकांक्षी होते गए हैं। वर्ष 2015 में पेरिस में आयोजित कॉप- 21 में वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट लक्ष्य की घोषणा की गई, जिसे वर्ष 2019 में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट कर दिया गया। इस लक्ष्य को वर्तमान में ग्लासगो में आयोजित कॉप- 26 में वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है।
    • भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से 50% विद्युत उत्पादन क्षमता निर्माण के लक्ष्य की घोषणा की है, जो 40% के मौज़ूदा लक्ष्य को बढ़ाता है। विदित है कि भारत 40% के लक्ष्य को शीघ्र ही हासिल करने की दिशा में अग्रसर है।
    • भारत द्वारा नई अत्याधुनिक नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों को अपनाया गया है, जिनमें ग्रे और ग्रीन हाइड्रोजन के लिये हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन की घोषणा उल्लेखनीय है।
    • परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड (पी.ए.टी.) योजना ऊर्जा गहन उद्योगों में ऊर्जा दक्षता में सुधार हेतु एक बाज़ार आधारित अनुपालन तंत्र है। इस योजना के पहले और दूसरे चरण के दौरान लगभग 92 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी आई है।
    • केंद्र सरकार ने ई-वाहनों को बढ़ावा देने के लिये ग्राहकों और कंपनियों के लिये कई प्रोत्साहनों की भी घोषणा की है। वर्ष 2013 में, भारत सरकार ने राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना (NEMMP) तैयार की। यह योजना देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को तेज़ी से अपनाने और उनके निर्माण के लिये विज़न और रोडमैप प्रदान करती है।
    • भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की क्षमता को बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं। इसके लिये फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स’ (FAME) योजना के दूसरे चरण को हाल ही में विस्तार दिया गया है।
    • भारत ने 1 अप्रैल, 2020 से भारत स्टेज- IV (BS-IV) को भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंड में परिवर्तित कर दिया है, जिसे मूल रूप से वर्ष 2024 में अपनाया जाना था।
    • भारतीय रेलवे वर्ष 2023 तक सभी ब्रॉड-गेज मार्गों के पूर्ण विद्युतीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है।
    • स्वच्छ ऊर्जा को अपनाने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना ने एल.पी.जी. कनेक्शन वाले 88 मिलियन परिवारों को लाभान्वित किया है।
    • उजाला योजना के तहत 367 मिलियन से अधिक एल.ई.डी. बल्ब वितरित किये गए हैं, जिससे प्रति वर्ष 47 बिलियन यूनिट से अधिक बिजली की बचत हुई है और प्रतिवर्ष 38.6 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड की कमी हुई है।
    • भारत द्वारा वर्ष 2005 से 2016 के बीच सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 24% की कमी हासिल करने के बाद वर्ष 2030 तक 33 से 35% तक इस लक्ष्य को निर्धारित किया गया। विदित है कि वर्तमान में इस लक्ष्य को भी प्राप्त कर लिया गया है। इसके पश्चात् वर्ष 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% से भी कम करने का लक्ष्य रखा गया है।

    आगे की राह

    • यदि वर्तमान कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को नियंत्रित नहीं किया गया तो सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान 2   से भी अधिक हो जाएगा। ऐसी स्थिति में पृथ्वी के अस्तित्व को बचाने तथा मानवता के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिये नवीन, वैज्ञानिक और तत्काल प्रभाव से कदम उठाने की आवश्यकता है।
    • शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सभी हितधारकों की सक्रिय भागीदारी भी आवश्यक है। सतत् जीवन शैली और जलवायु न्याय इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अनिवार्य हैं। 
    • चूँकि, उद्योग भी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में योगदान देते हैं, अतः किसी भी जलवायु कार्रवाई के लिये औद्योगिक एवं वाणिज्यिक गतिविधि से होने वाले उत्सर्जन को भी कम करना होगा।
    • निजी क्षेत्र के सहयोग से, भारत वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के अपने उचित हिस्से का ज़िम्मेदारी से उपयोग करने में सक्षम होगा और पृथ्वी को पर्यावरणीय रूप से संधारणीय ग्रह बनाने के लिये वैश्विक शुद्ध-शून्य लक्ष्य तक पहुँचने में योगदान देगा।
    • भारत का ऐतिहासिक रूप से संचयी उत्सर्जन विश्व के कुल उत्सर्जन का मात्र 4.37% है। कॉप-26 और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर भारत ने आग्रह किया है कि विकसित देशों को ऐतिहासिक संचयी उत्सर्जन में उनकी भागीदारी तथा उच्च प्रति व्यक्ति वार्षिक उत्सर्जन के कारण वैश्विक तापन के लिये प्रमुख रूप से उत्तरदायी माना जाना चाहिये।
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