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भारत  द्वारा प्रतिजैविक विकास का समर्थन 

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : स्वास्थ्य)

संदर्भ

हाल ही में, रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर वैश्विक अनुसंधान (Global Research on Anti-Microbial Resistance: GRAM) परियोजना द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में लगभग 4.95 मिलियन लोग किसी न किसी दवा प्रतिरोधी संक्रमण से पीड़ित थे। साथ ही, रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Anti-Microbial Resistance: AMR) प्रत्यक्ष रूप से 1.27 मिलियन मृत्यु का कारण भी बना।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध 

  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) निम्न और मध्यम आय वाले देशों में जीवन व आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के साथ-साथ प्रत्येक देश को प्रभावित करने वाला एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है। 
  • प्रतिजैविकों (Antibiotics) के अतार्किक प्रयोग से दवा-प्रतिरोधी (Drug-Resistant) सुपरबग बन जाता है। चिकित्सालयों में संक्रमण नियंत्रण के अपर्याप्त उपायों और समुदायों में स्वच्छता मुद्दों के कारण सुपरबग्स का प्रसार होता है। 
  • वर्तमान में ऐसा कोई भी विश्वसनीय एवं त्वरित देखभाल निदान संकेतक उपलब्ध नहीं है जो चिकित्सकों को प्रतिजैविक के उचित उपयोग के लिये मार्गदर्शन कर सके। 

भारत में ए.एम.आर.

  • ए.एम.आर. भारत की प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है, जो पूरे भारत में नियोनेटल सेप्सिस (Neonatal Sepsis: 90 दिन से कम आयु के शिशुओं के रक्त में संक्रमण) के कारण होने वाली लगभग 30% मौतों के लिये प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है। 
  • कई मामलों में इसका कारण अस्पतालों से होने वाला बहु-औषधि प्रतिरोधी (Multi-Drug Resistance: MDR) संक्रमण होता है। 
  • भारत में कोविड-19 से होने वाली 30% से अधिक मौतों का कारण एम.डी.आर. रोगजनकों से होने वाला द्वितीयक जीवाणु संक्रमण हो सकता है। 

ए.एम.आर. की रोकथाम 

  • ए.एम.आर. संकट से निपटने के लिये निम्नलिखित कदम आवश्यक हैं- 
    • नए प्रतिजैविक दवाओं का अनुसंधान एवं विकास
    • तीव्र एवं सस्ते निदान, संक्रमण नियंत्रण एवं रोकथाम प्रथाओं को मजबूत करना 
    • देश भर में प्रतिजैविक प्रबंधन कार्यक्रम तैयार करना व लागू करना
    • जीवन रक्षक प्रतिजैविक दवाओं तक समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिये अधिक निवेश की आवश्यकता। 
  • इसके अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों में रोगाणुरोधी उपयोग की बढ़ती प्रवृत्तियों को रोकने के लिये मनुष्य, पशु, भोजन और पर्यावरण पर केंद्रित एकीकृत स्वास्थ्य दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • भारत सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में स्ट्रेप्टोमाइसिन (Streptomycin) और टेट्रासाइक्लिन (Tetracycline) के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने तथा कुक्कुट पालन में कॉलिस्टिन के विकास को बढ़ावा देने पर प्रतिबंध लगाना स्वागत योग्य कदम है।
  • भारत द्वारा वैश्विक अनुपालन विनिर्माण संयंत्रों के साथ जीवन रक्षक प्रतिजैविक औषधियों के प्रारंभिक अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करने और निवेश में वृद्धि करने के लिये यह उपयुक्त समय है। 
  • भारत के पास बौद्धिक क्षमता और प्रतिभा पूल की उपलब्धता है। हालाँकि, विशेष प्रशिक्षण के लिये सरकारी एवं निजी क्षेत्र से अधिक निवेश की आवश्यकता है।

प्रतिजैविक दवा बाज़ार के समक्ष चुनौतियाँ

  • विगत दशक के दौरान सकल उद्योग औसत (7.9%) की तुलना में नई जीवाणुरोधी दवाओं के लिये पहले चरण से लेकर खाद्य एवं औषधि प्रशासन से अनुमोदन तक के चरण की सफलता दर 16.3% पाई गई। 
  • इसके बावजूद प्रतिजैविकों का विकास, निवेश की कमी और नए उत्पादों के बाजार में त्वरित प्रवेश की समस्या से ग्रस्त है। 
  • नई प्रतिजैविक दवाओं की खोज से लेकर अनुमोदन पाने में सफल रहने वाली कई कंपनियां बाजार की गतिशीलता में कमी के कारण दिवालियापन के कगार पर हैं। 
  • बड़ी फार्मा कंपनियों द्वारा इस क्षेत्र से बाहर निकलने, निवेश में कमी, व्यावसायिक समर्थन के लिये नियामक और नीतिगत समाधानों की कमी ने ए.एम.आर. को वैश्विक स्वास्थ्य संकट बना दिया है।
  • नई प्रतिजैविक दवाओं के लिये नैदानिक ​​​​पाइपलाइन केवल कुछ ही दवाओं तक सीमित है। 
  • अधिकांश नई दवाओं के विपरीत नई प्रतिजैविक दवाओं का उपयोग कम किया जाता है। इनका उपयोग मुख्य रूप से उन मामलों में किया जाता है जहाँ पुराने प्रतिजैविक अप्रभावी होते हैं। दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के उद्भव को रोकने के लिये यह रणनीति आवश्यक है। 
  • इसके अतिरिक्त, कई देशों में सस्ते जेनेरिक विकल्प उपलब्ध होने से महंगे जीवाणुरोधी एजेंट का कम उपयोग किया जाता है। अत: पुरानी और सस्ती दवाओं का अधिक प्रयोग नई दवाओं के व्यावसायिक विफलता में वृद्धि करता है।
  • निवेश पर कम रिटर्न के कारण ज्यादातर बड़ी फार्मा कंपनियां ए.एम.आर. क्षेत्र से बाहर हो गई हैं। वर्तमान में क्लिनिकल पाइपलाइन में लगभग 80% प्रतिजैविक छोटी बायोटेक कंपनियों द्वारा विकसित की जाती हैं।

    सुझाव

    • छोटी कंपनियों को CARB-X (Combating Antibiotic Resistance Bacteria Biopharmaceutical Accelerator) जैसी सार्वजनिक-निजी भागीदारी से शुरुआती चरण में फंडिंग मिल रही है।
    • इस संगठन ने विगत पांच वर्षों में 92 जीवाणुरोधी परियोजनाओं के लिये $360 मिलियन से अधिक की फंडिंग प्रदान की है। 
    • अमेरिकी सरकार ‘पायनियरिंग एंटीमाइक्रोबियल सब्सक्रिप्शन टू एंड अपसर्जिंग रेजिस्टेंस’ (PASTEUR) अधिनियम पारित करने पर विचार कर रही है।  
    • यह अधिनियम नए प्रतिजैविक दवाओं के लिये पर्याप्त अग्रिम धन के साथ नियामक अनुमोदन प्राप्त करने वाले प्रतिजैविक निर्माताओं को प्रोत्साहित करेगा। 
    • इस अधिनियम के माध्यम से दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के लिये अति आवश्यक प्रतिजैविक विकसित करने वाली कंपनियों को दस वर्षों में $750 मिलियन से $3 बिलियन तक का सरकार से अनुबंध प्राप्त होगा।
    • ब्रिटेन प्रतिजैविक दवाओं के लिये दुनिया की पहली सदस्यता योजना शुरू करने के लिये तैयार है। यह पहल राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं को नई दवाएँ उपलब्ध कराने के लिये संक्रमण-रोधी दवा निर्माताओं को एक समान दर का भुगतान करेगी। 
    • इसके अतिरिक्त, नए प्रतिजैविक दवाओं के विकास में मौजूदा फंडिंग अंतराल को दूर करने के लिये $1 बिलियन से अधिक का निवेश करने के लिये ए.एम.आर. कार्यवाई कोष के हालिया निर्माण से नैदानिक ​​विकास को बढ़ावा मिलेगा।
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