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भारत की तिब्बत नीति

(प्रारंभिक परीक्षा : अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं एवं मानचित्र आधारित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : द्विपक्षीय और भारत से संबंधित, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों से संबंधित प्रश्न)

संदर्भ

  • वर्तमान में भारत-चीन संबंधों के परिप्रेक्ष्य में भारत की तिब्बत नीति और भारत-चीन संबंधों पर तिब्बत के प्रभाव पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले कई वर्षों में पहली बार यह घोषणा की कि उन्होंने निर्वासित तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा से उनके जन्मदिन पर बात की थी। वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन की निरंतर आक्रामकता को देखते हुए भारत की तिब्बत नीति में बदलाव पर विचार किया जाना आवश्यक है।

क्या है भारत की तिब्बत नीति?

  • सदियों से तिब्बत, भारत का वास्तविक पड़ोसी था। वर्ष 1914 में तिब्बती प्रतिनिधियों ने चीनियों के साथ मिलकर ब्रिटिश भारत के साथ शिमला सम्मेलन पर हस्ताक्षर किये, जिसमें  सीमाओं को चित्रित किया गया। विदित है कि भारत की अधिकांश सीमाएँ और 3500 किमी. की एल..सी. तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र से लगती है, कि शेष चीन के साथ।
  • हालाँकि, वर्ष 1950 में चीन के तिब्बत पर पूर्ण रूप से कब्जा करने के बाद चीन ने उस सम्मेलन और मैकमोहन लाइन को खारिज कर दिया, जिसने दोनों देशों को विभाजित किया था। वर्ष 1954 में भारत ने व्यापारिक शर्तों पर सहमति व्यक्त करते हुए चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमेंचीन के तिब्बत क्षेत्रका जिक्र किया गया।
  • वर्ष 1959 में जब दलाई लामा भागकर भारत आए तो प्रधानमंत्री नेहरू ने उनको और तिब्बती शरणार्थियों को आश्रय दिया। इन लोगों ने निर्वासन में तिब्बती सरकार की स्थापना की, जिसके चुनाव आज भी होते हैं। 
  • यद्यपि भारत की आधिकारिक नीति के अनुसार, दलाई लामा एक आध्यात्मिक नेता हैं और भारत में निर्वासित एक लाख से अधिक तिब्बती समुदाय को कोई भी राजनीतिक गतिविधि करने की अनुमति नहीं है। तथापि, चीन के विरोध के बावजूद दलाई लामा को आधिकारिक कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जाता है।
  • हाल के वर्षों में, मोदी सरकार ने भारत की तिब्बत नीति में कुछ बदलावों का प्रयास किया है, किंतु इस नीति ने तिब्बती समुदाय सहित कई लोगों को भ्रमित किया है।

क्या है भ्रामक संकेत?

  • वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने निर्वासित सरकार के सिक्योंग (मंत्रिमंडल का प्रमुख) के प्रधानमंत्री लोबसांग सांगे को शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया किंतु वर्ष 2019 में उनको आमंत्रित नहीं किया गया।
  • वर्ष 2016 में भारत सरकार ने चीन से असंतुष्ट लोगों को एक सम्मेलन की अनुमति दी, जिसमें दुनिया भर से उइगर और तिब्बती नेताओं को आमंत्रित किया गया था किंतु अंतिम समय उन लोगों का वीज़ा रद्द कर दिया गया। 
  • वर्ष 2018 में दलाई लामा के भारत आने के 60वें वर्ष के उपलक्ष्य में कार्यक्रमों की योजना बनाई गई थी किंतु एक सरकारी परिपत्र द्वारा अधिकारियों को उसमें भाग लेने सहित दलाई लामा की राजघाट यात्रा अन्य कार्यक्रमों को रद्द करना पड़ा था।
  • वर्ष 2020 में भाजपा नेता राम माधव सार्वजनिक रूप से तिब्बती स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के एक सैनिक के अंतिम संस्कार में शामिल हुए, जिसे भारतीय सेना के तहत प्रशिक्षित किया गया है। हालाँकि, बाद में उन्होंने अंतिम संस्कार के बारे में अपना ट्वीट हटा दिया।
  • वर्ष 2021 में प्रधानमंत्री ने वर्ष 2013 के बाद पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में सार्वजनिक रूप से दलाई लामा को बधाई संदेश दिया। हालाँकि, विदेश मंत्रालय ने इस सप्ताह स्पष्ट किया कि दलाई लामा एक सम्मानित धार्मिक नेता हैं।

अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू 

  • उपरोक्त प्रतीकातात्मक पहलुओं के अतिरिक्त भी भारत सरकार को अनिवार्य रूप से अन्य महत्त्वपूर्ण बदलावों बिंदुओं पर बारीकी से नज़र रखने की आवश्यकता है।
  • पिछले कुछ दशकों से चीन की सरकार तिब्बत में कई तरह के बदलाव के लिये प्रयासरत है। अत्यधिक निवेश, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में तेज़ी तथा चीन की जनसंख्या को तिब्बत और तिब्बत की जनसंख्या को चीन में बसाने का कार्य जारी है। 
  • इसके अतिरिक्त, प्रसिद्ध किंघई-तिब्बत अब सिचुआन-तिब्बत सहित रेल लाइनों का तेज़ी से विकास हुआ है और दलाई लामा के साथ संबंध वाले तिब्बती लोगों पर दबाव भी बढ़ रहा है तथा नेपाल से आने वाले पुराने बॉर्डर क्रासिंग को सील कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि तिब्बत पर श्वेत पत्र में चीनी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह तिब्बत में अपने नियंत्रण को मजबूत करना चाहता है।
  • साथ ही, इस क्षेत्र में चीन अपने दावों को मजबूत करने के उद्देश्य से ब्रह्मपुत्र के ऊपरी तटवर्ती क्षेत्रों पर बांधों और एल..सी. के किनारे (विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश की सीमा के निकट) तिब्बती गाँवों का निर्माण कर रहा है। ये क्षेत्र भविष्य के फ्लैशपॉइंट साबित हो सकते हैं।
  • वर्तमान भारत-चीन तनाव और गालवान झड़प के बाद चीन ने तिब्बती मिलिशिया समूहों को उठाना शुरू कर दिया है, जबकि भारतीय सेना तिब्बती स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को प्रशिक्षित करती है। यह भविष्य में भयावाह हो सकता है।
  • भारत में तिब्बती समुदाय के युवाओं का भविष्य भी अधर में है क्योंकि सरकार वर्ष 1987 के कट-ऑफ वर्ष के बाद भारत में पैदा हुए तिब्बतियों को नागरिकता नहीं प्रदान करती है। 
  • अमेरिका ने भी पिछले कुछ वर्षों में अधिक तिब्बती शरणार्थियों को स्वीकार करके अपनी भूमिका में वृद्धि की है। विशेष रूप से कर्मा काग्यू संप्रदाय के प्रमुख करमापा लामा अब भी स्थायी रूप से अमेरिका में निवास करते हैं और अमेरिका-चीन संबंधों के बिगड़ने के साथ-साथ तिब्बत के मुद्दे में उनकी रुचि बढ़ने की संभावना है।

वर्तमान चिंताएँ 

  • एक बड़ा प्रश्न 86 वर्षीय दलाई लामा के उत्तराधिकार को लेकर है जो केवल आध्यात्मिक और तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग्पा संप्रदाय के नेता हैं, बल्कि दुनिया भर में इस समुदाय के राजनीतिक नेता भी हैं। उनके उत्तराधिकारी की पहचान भारत के लिये आवश्यक है और यह भारत सरकार के लिये उत्तराधिकार संबंधी रणनीति को मजबूत करने का समय है।
  • चीन ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने दलाई लामा की घोषणा करना चाहता है (उदाहरणस्वरुप पंचेन लामा) इस प्रकार, वह उत्तराधिकार को नियंत्रित करने के लिये प्रयासरत है। अर्थात भारत को दलाई लामा के गुजरने के बाद भारत में निवास करने वाली युवा और अशांत तिब्बतियों के नेतृत्व को भारत से बाहर जाने की स्थिति से बचना होगा।
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