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भारत-अमेरिका रक्षा समझौता

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 & 3 : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से सम्बंधित तथा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार, सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन)

चर्चा में क्यों?

अक्तूबर के अंतिम सप्ताह में भारत और अमेरिका के मध्य “2+2 संवाद” का आयोजन नई दिल्ली में किया जाएगा।

पृष्ठभूमि

“2+2 संवाद” का यह तीसरा संस्करण होगा। इस संवाद में दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों के मध्य बैठक का आयोजन किया जाता है। इस बैठक की प्रमुख कार्यसूचियों (Agenda) में ‘बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौता’ (BECA) भी होगा। यह एक गहरा और गम्भीर सैन्य व सामरिक निहितार्थों वाला समझौता है। पिछली बैठकों में ‘LEMOA’ और ‘COMCASA’ समझौतों पर हस्ताक्षर किये जा चुके हैं। BECA, LEMOA और COMCASA समझौतों की तिकड़ी अनिवार्य रूप से गहरे सैन्य सहयोग की नींव रखने वाले हैं।

बुनियादी विनिमय एवं सहयोग समझौता (BECA)

  • बुनियादी विनिमय एवं सहयोग समझौता (The Basic Exchange and Cooperation Agreement- BECA) काफी हद तक भू-स्थानिक खुफिया / आसूचना और रक्षा के लिये मानचित्र व उपग्रह चित्रों की जानकारी साझा करने से सम्बंधित है।
  • किसी समुद्री एवं पानी के जहाज को चलाने वाले, विमान को उड़ाने वाले, युद्धरत् सैनिक, लक्ष्यों को निर्धारित करने वाले, प्राकृतिक आपदाओं पर प्रतिक्रिया देने और यहाँ तक ​​कि किसी सेलफोन से नेविगेट करने वाले भी भू-स्थानिक आसूचना पर निर्भर होते हैं।
  • बी.ई.सी.ए. पर हस्ताक्षर करने से भारत को अमेरिका की उन्नत भू-स्थानिक आसूचना का उपयोग करने और मिसाइलों व सशस्त्र ड्रोन जैसे स्वचालित प्रणालियों एवं हथियारों की सटीकता में वृद्धि करने में सहायता मिलेगी।
  • यह स्थलाकृतिक और वैमानिक डाटा व उत्पादों तक पहुँच प्रदान करेगा जो नेविगेशन तथा लक्ष्यीकरण में सहायक होगा।
  • बी.ई.सी.ए. भारतीय सैन्य प्रणालियों को नेविगेट करने के लिये एक उच्च-गुणवत्ता युक्त जी.पी.एस. व्यवस्था प्रदान करेगा और सटीक निशाना साधने के लिये मिसाइलों को रियल-टाइम इंटेलिजेंस प्रदान करेगा। यह वायु सेनाओं के सहयोग के लिये महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है।

अन्य दो समझौते

रसद विनिमय समझौते का ज्ञापन (LEMOA)

  • LEMOA समझौते का पूरा नाम ‘The Logistics Exchange Memorandum of Agreement’ है। इस ज्ञापन को अगस्त, 2016 में भारत और अमेरिका के मध्य हस्ताक्षरित किया गया था।
  • यह प्रत्येक देश की सेनाओं को दूसरे के ठिकानों से ईंधन आदि के पुनःपूर्ति करने, अन्य देशों की भूमि सम्बंधी सुविधाओं, हवाई अड्डों और बंदरगाहों से उस समय प्रतिपूर्ति की जा सकने वाली आपूर्तियों, स्पेयर पार्ट्स (अतिरिक्त कलपुर्जों) और सेवाओं तक पहुँच की अनुमति प्रदान करता है।
  • यह नौ-सेनाओं के मध्य सहयोग के लिये बेहद उपयोगी है क्योंकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका और भारत निकटता से सहयोग कर रहे हैं।
  • हालाँकि, दूसरे देशों के ठिकानों का प्रयोग करने के लिये विश्वास की आवश्यकता होती है। अन्य शब्दों में किसी नौ-सेना के जहाज रणनीतिक सम्पत्ति हैं और दूसरे देश के ठिकानों का उपयोग करने से सैन्य सम्पत्ति दूसरे देशों के सामने उद्घाटित हो जाती है।
  • यद्यपि LEMOA पर हस्ताक्षर करने के लिये विश्वास की आवश्यकता है तथापि इसका उपयोग विश्वास को बढ़ाता भी है।

संचार संगतता और सुरक्षा समझौते (COMCASA) समझौता

  • COMCASA समझौते का पूरा नाम ‘The Communications Compatibility and Security Agreement’ है। इस समझौते को प्रथम ‘2+2 संवाद’ के बाद सितम्बर 2018 में हस्ताक्षरित किया गया था।
  • यह अमेरिका को अपने एन्क्रिप्टेड संचार उपकरणों व प्रणालियों को भारत को प्रदान करने की अनुमति देता है, जिससे भारतीय एवं अमेरिकी सैन्य कमांडर, विमान और जहाज शांति व युद्ध के समय सुरक्षित नेटवर्क के माध्यम से संवाद कर सकें।

तीनो संधियों का तात्पर्य

  • यद्यपि LEMOA में एक सहयोगी अपनी मूल्यवान सम्पत्ति को उद्घाटित करने के लिये दूसरे पर भरोसा करता है, जबकि COMCASA का मतलब है कि एक पक्ष इस विश्वास में है कि यह दो सेनाओं को सम्बद्ध करने के लिये एन्क्रिप्टेड सिस्टम पर भरोसा कर सकता है।
  • साथ ही बी.ई.सी.ए. से तात्पर्य है कि यह किसी डर से समझौता किये बिना अत्यधिक उच्च श्रेणी की वर्गीकृत जानकारी वास्तविक समय में साझा कर सकता है।
  • यह विश्वास के उस स्तर को दर्शाता है, जो दोनों देशों और उनकी सेनाओं के मध्य विकसित हुआ है, जिसका सामना चीन से हो रहा है।

सीमावर्ती गतिरोध के संदर्भ में इसका महत्त्व

  • भारत-चीन सीमा पर गतिरोध के बीच भारत और अमेरिका ने एक अभूतपूर्व स्तर पर रडार खुफिया व सैन्य सहयोग को तीव्र कर दिया है।
  • इन वार्तालापों ने दोनों देशों की सुरक्षा, सैन्य और खुफिया शाखाओं के बीच सूचना-साझाकरण की सुविधा प्रदान की है, जो लगभग 1960 के दशक के भारत-अमेरिका सहयोग की याद दिलाते हैं, विशेषकर वर्ष 1962 के युद्ध के बाद।
  • इस सहयोग से वास्तविक नियंत्रण रेखा से सम्बंधित सैटेलाइट इमेज को साझा करने, हथियारों की तैनाती और सैन्य आवाजाही सम्बंधी गतिविधियों की सूचना में वृद्धि होगी। साथ ही, अमेरिकी उपकरणों के कारण भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान की क्षमता में भी वृद्धि हुई है।

समस्या

  • अमेरिका चाहता है कि रूसी उपकरणों और प्लेटफ़ॉर्मों पर भारत अपनी निर्भरता को कम करे। अमेरिका को डर है कि इससे रूस को उसकी तकनीक और जानकारी का खुलासा हो सकता है।
  • इस सन्दर्भ में भारत द्वारा रूस से S-400 वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली की खरीद अमेरिकी वार्ताकारों के लिये एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा रहा है।
  • भारत, अमेरिका के साथ पाकिस्तान के गहरे सम्बंधों तथा अमेरिका की अफगानिस्तान तक पहुँचने के लिये पाकिस्तान पर निर्भरता और उसकी निकास रणनीति से सावधान है।

निष्कर्ष

इन प्रमुख रक्षा समझौतों के साथ भारत और अमेरिका के मध्य सहयोग केवल प्रासंगिक (Episodic) स्तर पर होने की बजाय अधिक संरचित और कुशल तरीके से हो सकता है। भारत का अमेरिका के साथ रणनीतिक झुकाव चीन के वर्तमान खतरे का एक परिणाम कहा जा सकता है।

प्री फैक्ट :

  • अक्तूबर के अंतिम सप्ताह में भारत और अमेरिका के मध्य “2+2 संवाद” के तीसरे संस्करण का आयोजन नई दिल्ली में किया जाएगा, जिसमें ‘बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौता’ (BECA) होने की उम्मीद है।
  • बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौता काफी हद तक भू-स्थानिक खुफिया/ आसूचना और रक्षा के लिये मानचित्र व उपग्रह चित्रों पर जानकारी साझा करने से सम्बंधित है।
  • रसद विनिमय समझौते के ज्ञापन (LEMOA) को अगस्त, 2016 में भारत और अमेरिका के मध्य हस्ताक्षरित किया गया था, जो प्रत्येक देश की सेना को दूसरे के ठिकानों से आवश्यक प्रतिपूर्ति की अनुमति प्रदान करता है।
  • संचार संगतता और सुरक्षा समझौते (COMCASA) को प्रथम ‘2+2 संवाद’ के बाद सितम्बर 2018 में हस्ताक्षरित किया गया था, जो अमेरिका को अपने एन्क्रिप्टेड संचार उपकरणों व प्रणालियों को भारत को प्रदान करने की अनुमति देता है।
  • S-400 : एक वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली है, जिसे भारत, रूस से खरीदने की प्रक्रिया में है।
  • भारतीय सशस्त्र बल LAC पर ‘C-17 ग्लोबमास्टर III’ (सैन्य परिवहन के लिये), बोइंग के चिनूक सी.एच.-47 (हैवी-लिफ्ट हेलीकॉप्टरों के रूप में), बोइंग अपाचे (टैंक-किलर्स के रूप में), पी-8 आई पोसीडॉन (स्थलीय टोही के लिये) और लॉकहीड मार्टिन के ‘सी-130 जे’ (सैनिकों के एयरलिफ्टिंग लिये) जैसे अमेरिकी प्लेटफार्मों का प्रयोग कर रहे हैं।
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