भारतीय वायु सेना के सैन्य विमानों में उपयोग के लिये विकसित जैव-जेट ईंधन के उत्पादन की स्वदेशी तकनीक को औपचारिक रूप से मंज़ूरी दी गई है।
इसे ‘वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद्’ - भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून द्वारा विकसित किया गया है। यह प्रमाणन ‘सैन्य उड़ान योग्यता एवं प्रमाणन केंद्र द्वारा प्रदान किया गया है।
मुख्य बिंदु
यह विमानन जैव-ईंधन क्षेत्र में भारत के बढ़ते विश्वास तथा 'आत्मनिर्भर भारत' की दिशा में एक और कदम है। यह भारतीय सशस्त्र बलों को अपने सेवारत विमानों में स्वदेशी तकनीक का उपयोग करके उत्पादित जैव-जेट ईंधन का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करेगा तथा प्रौद्योगिकी के व्यावसायीकरण एवं बड़े पैमाने पर इसके उत्पादन को सक्षम बनाएगा।
यह, पारंपरिक जेट ईंधन की तुलना में कम सल्फर तत्त्व के कारण वायु प्रदूषण को कम करेगा तथा नेट-ज़ीरो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा। इससे गैर-खाद्य तेलों के उत्पादनतथा संग्रहण जैसे कार्यों में संलग्न किसानों व आदिवासियों की आजीविका में भी वृद्धि करेगा।
विमानों का परीक्षण एक जटिल प्रक्रिया है, जिसकी गहन जाँच से पूर्व उड़ान सुरक्षा के उच्चतम स्तर को सुनिश्चित करना आवश्यक है। अंतर्राष्ट्रीय विमानन मानक इसके जटिल आकलनों के दायरे को परिभाषित करता है।
मानवयुक्त उड़ान मशीनों में ईंधन का उपयोग करने से पूर्व गहन विश्लेषण की आवश्यकता होती है।
हरित ईंधन के साथ ये परीक्षण उड़ानें राष्ट्रीय उद्देश्य को पूरा करने में भारतीय वैज्ञानिकों की क्षमताओं एवं प्रतिबद्धता तथा भारतीय वायुसेना की सैन्यभावना को रेखांकित करती हैं।