संदर्भ
भारतीय सरकारी बॉन्ड औपचारिक रूप से जेपी मॉर्गन के उभरते बाजार के सरकारी बॉन्ड सूचकांक (Government Bond Index-Emerging Markets : GBI-EM) का हिस्सा बन गए। यह उभरते बाजार बॉन्डों के लिए सबसे व्यापक रूप से संदर्भित सूचकांक है।
क्या है जेपी मॉर्गन इमर्जिंग मार्केट बॉन्ड इंडेक्स
- अमेरिका स्थित निवेश बैंक जेपी मॉर्गन चेस एंड कंपनी एक प्रमुख वैश्विक बॉन्ड सूचकांक प्रदाताओं में से एक है।
- जेपी मॉर्गन विकसित और उभरते बाजारों और क्रेडिट सूचकांकों सहित विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों के लिए कई सूचकांक प्रदान करता है।
- जेपी मॉर्गन इमर्जिंग मार्केट बॉन्ड इंडेक्स (EMBI) 1990 के दशक की शुरुआत में लॉन्च किया गया था। यह उभरते बाजार बॉन्ड के लिए सबसे व्यापक रूप से संदर्भित सूचकांक है।
सूचकांक में भारतीय सरकारी बॉन्ड का भारांश
- सूचकांक में भारतीय सरकारी बॉन्ड (GIB) के 10 % के अधिकतम भार तक पहुंचने की उम्मीद है।
- सूचकांक में अधिक भार वैश्विक निवेशकों को भारतीय ऋण में निवेश के लिए अधिक धन आवंटित करने के लिए प्रेरित करेगा।
- इससे हर महीने भारत में 2-3 बिलियन डॉलर के प्रवाह की संभावना है।
- भारत जेपी मॉर्गन इमर्जिंग मार्केट बॉन्ड इंडेक्स में शामिल होने वाला 25वां बाजार है। यह वैश्विक सूचकांक में भारत के सॉवरेन बॉन्ड (जी-सेक) का पहला समावेश है।
सूचकांक में शामिल होने के लिए पात्र भारतीय बॉन्ड
- जेपी मॉर्गन के अनुसार 23 आई.जी.बी. सूचकांक पात्रता मानदंडों को पूरा करते हैं, जिनका संयुक्त अंकित मूल्य लगभग 27 लाख करोड़ रुपये या 330 बिलियन डॉलर है।
- केवल पूर्ण सुलभ मार्ग (Fully Accessible Route : FAR) के तहत नामित आई.जी.बी. ही सूचकांक-पात्र हैं।
- मार्च 2020 में आर.बी.आई. ने सरकार के परामर्श से, गैर-निवासियों को भारत सरकार की निर्दिष्ट प्रतिभूतियों में निवेश करने में सक्षम बनाने के लिए एफ.ए.आर. नामक एक अलग चैनल पेश किया था।
- जेपी मॉर्गन के अनुसार, सूचकांक समावेशन मानदंडों के अनुरूप पात्र उपकरणों के लिए 1 बिलियन डॉलर (समतुल्य) से अधिक नाममात्र बकाया और कम से कम 2.5 वर्ष की परिपक्वता अवधि शेष होनी चाहिए।
- 28 जून, 2024 को समावेशन की शुरुआत में 31 दिसंबर, 2026 के बाद की परिपक्वता तिथि वाले केवल एफ.ए.आर.-नामित आई.जी.बी. का पात्रता के लिए मूल्यांकन किया जाएगा।
- चरणबद्ध अवधि के दौरान जारी किए गए किसी भी नए सूचकांक-पात्र एफ.ए.आर.-नामित आई.जी.बी. को भी शामिल किया जाएगा।
सरकारी उधारी पर प्रभाव
- सरकारी बॉन्ड किसी देश द्वारा सार्वजनिक व्यय का समर्थन करने के लिए जारी की गई ऋण प्रतिभूतियाँ हैं।
- निवेशक इन बॉन्डों को खरीदते हैं, जो समय-समय पर ब्याज भुगतान और परिपक्वता पर मूल राशि की वापसी के बदले में सरकार को प्रभावी रूप से उधार देते हैं।
- जेपी मॉर्गन के सूचकांक में शामिल किए जाने से विदेशी निवेशक भारतीय बॉन्ड बाजार में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम होंगे।
- जेपी मॉर्गन के पूर्वानुमानों के अनुसार भारतीय बॉन्ड की गैर-निवासी होल्डिंग्स अगले वर्ष में वर्तमान 2.5 % से लगभग दोगुनी होकर 4.4 % होने की संभावना है।
- गोल्डमैन सैक्स के अनुमान के अनुसार इस समावेशन के कारण समय के साथ भारत में $40 बिलियन तक का पूंजी प्रवाह हो सकता है।
- विदेशी प्रवाह में यह वृद्धि सरकार की अपनी उधारी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए घरेलू निवेशकों पर निर्भरता को कम करेगी।
- सॉवरेन बॉन्ड की उच्च मांग से प्रतिफल पर दबाव पड़ेगा जिससे समय के साथ सरकारी उधारी लागत कम होगी।
व्यवसायों के लिए लाभ
- ब्लूमबर्ग के अनुसार सैद्धांतिक रूप से सरकार विदेशी निवेशकों से अपनी उधारी की ज़रूरतों को पूरा करेगी जिससे बैंकों के पास व्यवसायों में निवेश करने के लिए पूंजी की उपलब्धता अधिक होगी।
- बैंक इन लाभों को ऋणों पर कम ब्याज दरों के रूप में व्यवसायों को दे सकते हैं। इससे व्यवसाय विस्तार, नवाचार और समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
जन कल्याण पर संभावित प्रभाव
- कम बॉन्ड यील्ड होने पर सरकार द्वारा उधार लिए गए धन पर कम कम ब्याज राशि देय होगी।
- ब्याज भुगतान में यह कमी बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों जैसे अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए संसाधनों का निवेश को सक्षम बना सकती है।
- कम उधारी लागत के साथ सरकार अपने बजट घाटे को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित कर सकती है।
- सरकार अपने घाटे को वित्तपोषित करने के लिए कम लागत पर अधिक उधार ले सकती है।
- इस कदम से भारत के निजी ऋण और कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजारों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है।
रुपये पर प्रभाव
- विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय बॉन्ड खरीदते समय उन्हें अपनी मुद्रा जैसे कि अमेरिकी डॉलर को भारतीय रुपये में बदलना पड़ता है।
- ऐसे में रुपये की बढ़ती मांग से इसके मूल्य में वृद्धि होती है।
- अधिक विदेशी निवेशकों के भारतीय बॉन्ड बाजार में प्रवेश करने से रुपया अन्य प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हो सकता है।
चुनौतियाँ
- बाज़ार में अस्थिरता : विदेशी निवेश में वृद्धि से वैश्विक वित्तीय अनिश्चितता के समय में भारतीय बाज़ार में भी कुछ अस्थिरता आ सकती है।
- वैश्विक आर्थिक विकास पर निवेशकों की प्रतिक्रिया के कारण भारतीय बॉन्ड और मुद्रा बाजारों में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है।
- निवेशकों के लिए जोखिम : एक प्रमुख चिंता वैश्विक जोखिम-रहित अवधि के दौरान अचानक बहिर्वाह से होने वाली अस्थिरता है, जो शेयर और मुद्रा बाजारों को बाधित कर सकती है।
- जैसे-जैसे अधिक विदेशी भारतीय ऋण खरीदेंगे, देश पूंजी की अचानक निकासी के प्रति अधिक संवेदनशील होती जाएगी।
- उदाहरण के लिए इस वर्ष अप्रैल में निवेशकों ने अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती में देरी की अटकलों के कारण बाजार से लगभग 2 बिलियन डॉलर निकाल लिए जिससे भारत की बॉन्ड यील्ड कम आकर्षक हो गई।
आगे की राह
- जेपी मॉर्गन के इंडेक्स में भारतीय बॉन्ड को शामिल करना देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
- यह मूल्यवान विदेशी निवेश को आकर्षित करता है जो सरकार की उधारी लागत को कम करने के साथ ही महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को निधि दे सकता है।
- यह संभावित अस्थिरता और राजनीतिक जोखिमों सहित चुनौतियाँ भी लाता है ऐसे में भारत सरकार और RBI को इस समावेशन के लाभों को अधिकतम करने के लिए इन पहलुओं को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करने के साथ ही संबंधित जोखिमों को कम करना होगा।
- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रुपये में अस्थिरता बढ़ने की संभावना से अवगत है और उसने मुद्रा को स्थिर करने के लिए देश के 656 बिलियन डॉलर के भंडार का उपयोग करने की तत्परता का संकेत दिया है।