भारतीय संविधान संघीय है और इसने दोहरी राजपद्धति (केंद्र एवं राज्य) को अपनाया है, लेकिन इसमें केवल एकल नागरिकता की व्यवस्था की गई है अर्थात् भारतीय नागरिकता। यहां राज्यों के लिए कोई पृथक् नागरिकता की व्यवस्था नहीं है। अन्य संघीय राज्यों, जैसे-अमेरिका एवं स्विट्जरलैंड में दोहरी नागरिकता व्यवस्था को अपनाया गया है।
भारत में दो तरह के लोग हैं, नागरिक और विदेशी। नागरिक भारतीय राज्य के पूर्ण सदस्य होते हैं और उनकी इस पर पूर्ण निष्ठा होती है। इन्हें सभी सिविल और राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं।
दूसरी ओर, विदेशी किसी अन्य राज्य के नागरिक होते हैं इसलिए उन्हें सभी नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। इनकी दो श्रेणियां होती हैं- विदेशी मित्र एवं विदेशी शत्रु।
- विदेशी मित्र वे होते हैं, जिनके भारत के साथ सकारात्मक संबंध होते हैं।
- विदेशी शत्रु वे हैं, जिनके साथ भारत का युद्ध चल रहा हो।
संविधान भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित अधिकार एवं विशेषाधिकार प्रदान करता है। विदेशियों को नहीं:
- धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 15)।
- लोक नियोजन के विषय में समता का अधिकार (अनुच्छेद 16) ।
- वक् स्वातंत्र्य एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सम्मेलन, संघ, संचरण, निवास व व्यवसाय की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19)।
- संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 व 30)।
- लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में मतदान का अधिकार ।
- संसद एवं राज्य विधानमंडल की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ने का अधिकार।
- सार्वजनिक पदों, जैसे- राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, राज्यों के राज्यपाल, महान्यायवादी एवं महाधिवक्ता की योग्यता रखने का अधिकार।
संवैधानिक उपबंध
- संविधान के भाग- II में अनुच्छेद 5 से 11 तक में नागरिकता के बारे में चर्चा की गई है।
- इस संबंध में इसमें स्थायी और विस्तृत उपबंध नहीं हैं, यह सिर्फ उन लोगों की पहचान करता है, जो संविधान लागू होने के समय (अर्थात् 26 जनवरी, 1950) भारत के नागरिक बने। इसमें न तो इनके अधिग्रहण एवं न ही नागरिकता की हानि की चर्चा की गई है।
- यह संसद को इस बात का अधिकार देता है कि वह नागरिकता से संबंधित मामलों की व्यवस्था करने के लिए कानून बनाए।
- इसी प्रकार संसद ने नागरिकता अधिनियम, 1955 को लागू किया, जिसका 1957, 1960, 1985, 1986, 1992, 2003, 2005, 2015 और 2019 में संशोधन किया गया।
संविधान निर्माण के उपरांत (26 जनवरी, 1950) संविधान के अनुसार चार श्रेणियों के लोग भारत के नागरिक बनेः
1. एक व्यक्ति, जो भारत का मूल निवासी है और तीन में से कोई एक शर्त पूरी करता है। ये शर्तें हैं-
- यदि उसका जन्म भारत में हुआ हो, या
- उसके माता-पिता में से किसी एक का जन्म भारत में हुआ हो या
- संविधान लागू होने के पांच वर्ष पूर्व से भारत में रह रहा हो।
2. एक व्यक्ति, जो पाकिस्तान से भारत आया हो और यदि उसके माता-पिता या दादा-दादी अविभाजित भारत में पैदा हुए हों और निम्न दो में से कोई एक शर्त पूरी करता हो, वह भारत का नागरिक बन सकता है-
- यदि वह 19 जुलाई, 1948 से पूर्व स्थानांतरित हुआ हो, अपने प्रवसन की तिथि से उसने सामान्यतः भारत में निवास किया हो; और
- यदि उसने 19 जुलाई, 1948 को या उसके बाद भारत में प्रवसन किया हो तो वह भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हो, लेकिन ऐसे व्यक्ति का पंजीकृत होने के लिए छह माह तक भारत में निवास आवश्यक है (अनुच्छेद 6)।
3. एक व्यक्ति, जो 1 मार्च, 1947 के बाद भारत से पाकिस्तान स्थानांतरित हो गया हो, लेकिन बाद में फिर भारत में पुनर्वास के लिए लौट आए तो वह भारत का नागरिक बन सकता है। उसे पंजीकरण प्रार्थना-पत्र के बाद छह माह तक रहना होगा (अनुच्छेद 7)।
4. एक व्यक्ति, जिसके माता-पिता या दादा-दादी अविभिाजित भारत में पैदा हुए हों लेकिन वह भारत के बाहर रह रहा हो। फिर भी वह भारत का नागरिक बन सकता है, यदि उसने भारत के नागरिक के रूप में पंजीकरण कूटनीतिज्ञ तरीके या पार्षदीय प्रतिनिधि के रूप में आवेदन किया हो। यह व्यवस्था भारत के बाहर रहने वाले भारतीयों के लिए बनाई गई है ताकि वे भारत की नागरिका ग्रहण कर सकें (अनुच्छेद 8)।
नागरिकता संबंधी अन्य संवैधानिक प्रावधान इस प्रकार हैं-
- वह व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं होगा या भारत का नागरिक नहीं माना जायेगा, जो स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर लेगा (अनुच्छेद 9)।
- प्रत्येक व्यक्ति, जो भारत का नागरिक है या समझा जाता है, यदि संसद इस प्रकार के किसी विधान का निर्माण करे (अनुच्छेद 10)।
- संसद को यह अधिकार है कि वह नागरिकता के अर्जन और समाप्ति के तथा नागरिकता से संबंधित अन्य सभी विषयों के संबंध में विधि बना सकती है (अनुच्छेद 11)। इसी संदर्भ में संसद ने 1955 में नागरिकता अधिनियम,1955 बनाया।
नागरिकता अधिनियम, 1955
संविधान लागू होने के बाद अर्जन एवं समाप्ति के बारे में उपबंध करता है। इस अधिनियम को अब तक आठ बार संशोधित किया गया है।
नागरिकता का अर्जन
नागरिकता अधिनियम, 1955 नागरिकता प्राप्त करने की पाँच शर्तें बताता है, जैसे-जन्म, वंशानुगत, पंजीकरण, प्राकृतिक एवं क्षेत्र समावष्टि करने के आधार पर।
1. जन्म से :
- भारत में 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद परन्तु 1 जुलाई, 1947 से पूर्व जन्मा व्यक्ति अपने माता- पिता के जन्म की राष्ट्रीयता के बावजूद भारत का नागरिक होगा।
- भारत में 1 जुलाई को या उसके बाद जन्मा व्यक्ति केवल तभी भारत का नागरिक माना जाएगा, यदि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो।
- इसके अलावा, यदि किसी व्यक्ति का जन्म 3 दिसंबर, 2004 के बाद भारत में हुआ हो तो वह उसी दशा में भारत का नागरिक माना जायेगा, यदि उसके माता-पिता दोनों उसके जन्म के समय भारत के नागरिक हों या माता या पिता में से एक उस समय भारत का नागरिक हो तथा दूसरा अवैध प्रवासी न हो।
- भारत में पदस्थ विदेशी राजनयिक एवं शत्रु देश के बच्चों को भारत की नागरिकता अर्जन करने का अधिकार नहीं है।
2. वंश के आधार पर
- कोई व्यक्ति जिसका जन्म 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद परन्तु 10 दिसम्बर, 1992 से पूर्व भारत के बाहर हुआ हो वह वंश के आधार पर भारत का नागरिक बन सकता है, यदि उसके जन्म के समय उसका पिता भारत का नागरिक हो।
- यदि 10 दिसंबर, 1992 को या उसके बाद यदि किसी व्यक्ति का जन्म देश से बाहर हुआ हो तो वह तभी भारत का नागरिक बन सकता है, यदि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो।
- 3 दिसंबर, 2004 के बाद भारत से बाहर जन्मा कोई व्यक्ति वंश के आधार पर भारत का नागरिक नहीं हो सकता, यदि उसके जन्म के एक वर्ष के भीतर भारतीय कांसुलेट में उसके जन्म का पंजीकरण न करा दिया गया हो या केंद्र सरकार की सहमति से उक्त अवधि के बाद पंजीकरण न हुआ हो।
3. पंजीकरण द्वारा
- केन्द्र सरकार आवेदन प्राप्त होने पर किसी व्यक्ति (अवैध प्रवासी न हो) को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकती है, यदि वह निम्नांकित श्रेणियों में से किसी से संबंद्ध हो,
- भारतीय मूल का व्यक्ति, जो नागरिकता प्राप्ति का आवेदन देने से ठीक पूर्व सात वर्ष भारत में रह चुका हो।
- वह व्यक्ति जिसने भारतीय नागरिक से विवाह किया हो और वह पंजीकरण के लिए प्रार्थनापत्र देने से पूर्व सात वर्ष से भारत में रह रहा हो।
- भारत के नागरिक के नाबालिग बच्चे।
4. प्राकृतिक रूप सेः
केंद्र सरकार आवेदन प्राप्त होने पर किसी व्यक्ति (अवैध प्रवासी न हो) प्राकृतिक रूप से नागरिकता प्रमाण-पत्र प्रदान कर सकती है। यदि वह व्यक्ति निम्नलिखित योग्यताएं रखता है:
- यदि वह किसी अन्य देश का नागरिक हो तो वह भारतीय नागरिकता के लिए अपने आवेदन की स्वीकृति पर उस देश की नागरिकता को त्याग देगा।
- यदि वह भारत में रह रहा हो या भारत सरकार की सेवा में हो या इनमे से थोड़ा कोई एक और थोड़ा कोई अन्य हो तो उसे नागरिकता संबंधी आवेदन देने के कम से कम 12 माह पूर्व से भारत में रह रहा होना चाहिए।
- यदि 12 माह की इस अवधि से 14 वर्ष पूर्व से वह भारत में रह रहा हो या भारत सरकार की सेवा में हो या इनमें से थोड़ा एक में और थोड़ा अन्य में हो, इनकी कुल अवधि ग्यारह वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।
5. क्षेत्र समाविष्टि द्वारा:
- किसी विदेशी क्षेत्र द्वारा भारत का हिस्सा बनने पर भारत सरकार उस क्षेत्र से संबंधित विशेष व्यक्तियों को भारत का नागरिक घोषित करती है।
- ऐसे व्यक्ति उल्लिखित तारीख से भारत के नागरिक होते हैं। उदाहरण के लिए, जब पांडिचेरी, भारत का हिस्सा बना, तो भारत सरकार ने नागरिकता (पांडिचेरी) आदेश, 1962 जारी किया। यह आदेश नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत जारी किया गया।
नागरिकता की समाप्ति
नागरिकता अधिनियम, 1955 में अधिनियम या संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार प्राप्त नागरिकता खोने के तीन कारण बताए गए हैं- त्यागना, बर्खास्तगी या वंचित करना होना।
- स्वैच्छिक त्याग :
- एक भारतीय नागरिक जो पूर्ण आयु और क्षमता का हो। ऐसी घोषणा के उपरांत वह भारत का नागरिक नहीं रहता। अपनी नागरिकता को त्याग सकता है।
- बर्खास्तगी के द्वाराः
- यदि कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से किस अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर ले तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वयं बर्खास्त हो जाएगी।
- हालांकि यह व्यवस्था तब लागू नहीं होगी जब भारत युद्ध में व्यस्त हो।
- वंचित करने द्वाराः
- केंद्र सरकार द्वारा भारतीय नागरिक को आवश्यक रूप से बर्खास्त करना होगा यदिः
- यदि नागरिकता फर्जी तरीके से प्राप्त की गयी हो।
- यदि नागरिक ने संविधान के प्रति अनादर जताया हो।
- यदि नागरिक ने युद्ध के दौरान शत्रु के साथ गैर- कानूनी रूप से संबंध स्थापित किया हो या उसे कोई राष्ट्रविरोधी सूचना दी हो।
- पंजीकरण या प्राकृतिक नागरिकता के पांच वर्ष के दौरान नागरिक को किसी देश में दो वर्ष की कैद हुई हो।
- नागरिक सामान्य रूप से भारत के बाहर सात वर्षों से रह रहा हो।
नागरिकता अधिनियम,1955 में प्रमुख संशोधन
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986
- इस संशोधन में यह शर्त जोड़ी गई कि 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद, लेकिन 1 जुलाई, 1987 से पहले भारत में जन्मे लोग भारतीय नागरिक होंगे।
- 1 जुलाई, 1987 के बाद और 4 दिसंबर, 2003 से पहले जन्मे लोगों के लिए नागरिकता प्राप्त की जा सकती है, इसके अलावा भारत में जन्म लेने वाले व्यक्ति के लिए भी नागरिकता प्राप्त की जा सकती है, बशर्ते उसके माता-पिता में से कोई एक जन्म के समय भारतीय नागरिक हो।
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003:
- इसमें यह आधार जोड़ा गया कि यदि 4 दिसंबर, 2004 को या उसके बाद पैदा हुआ कोई व्यक्ति नागरिकता प्राप्त करना चाहता है, तो
- उसके माता-पिता में से एक को भारतीय नागरिक होना चाहिए
- दूसरे को अवैध आप्रवासी नहीं होना चाहिए।
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019:
- इसके तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत आए हिंदु, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
- इन्हें भारत की नागरिकता प्राप्त करने के लिये पासपोर्ट एवं वीज़ा जैसे दस्तावेज़ों की आवश्यकता नहीं होगी।
- इन समुदायों को विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 के अंतर्गत किसी भी आपराधिक मामले से छूट दी जाएगी
- ये अधिनियम भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने और वीजा या परमिट समाप्त होने के बाद भी यहाँ रहने वाले लोगो के लिये दंड देने की व्यवस्था से संबंधित हैं
- इनके लिये, भारत की नागरिकता प्राप्त करने के लिए आवश्यक 11 वर्षों तक देश में निवास की शर्त को घटाकर 5 वर्ष कर दिया गया है