(प्रारंभिक परीक्षा- आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)
संदर्भ
विश्लेषकों का मानना है कि एशिया में आर्थिक बदलाव हो रहा है और आने वाला दशक आर्थिक दृष्टि से भारत का है। लगभग हर बड़ी कंपनी अपने वैश्विक प्रसार और विकास के लिये भारत में संभावनाएँ तलाश रही है। ऐसे में, आर्थिक वास्तविकताओं व संभावनाओं पर एक-साथ विचार करना आवश्यक है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का अंतर्प्रवाह
- गूगल, फेसबुक, वॉलमार्ट, सैमसंग, फॉक्सकॉन और सिल्वर लेक जैसी कुछ प्रमुख कंपनियों ने पिछले वर्ष भारत में बड़ा निवेश किया है। इसके परिणामस्वरूप महामारी के कारण विश्व स्तर पर अत्यधिक आर्थिक संकुचन के बावजूद विगत वर्ष भारत के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में सबसे तीव्र वृद्धि देखी गई।
- भारत में 60 बिलियन डॉलर से अधिक का वार्षिक एफ.डी.आई. इक्विटी अंतर्प्रवाह अभी तक का उच्चतम है, यह सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिये एक मील का पत्थर है। कुछ विश्लेषकों ने भारत को एफ.डी.आई. के एक अग्रणी गंतव्य के रूप में उभरने को अप्रत्याशित माना है।
- यद्यपि भारत के एफ.डी.आई. में एक बड़ी हिस्सेदारी रिलायंस जियो में हुए विदेशी निवेश की थी। साथ ही, भारत का कुल एफ.डी.आई. अभी भी चीन जैसे अन्य बाज़ारों की तुलना में कम है।
भारत में एफ.डी.आई. की स्थिति
- ‘स्टेटिस्टा रिसर्च डिपार्टमेंट’ के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020 में भारत में सर्वाधिक एफ.डी.आई. इक्विटी अंतर्प्रवाह वाला देश सिंगापुर था, जिसके बाद मॉरीशस का स्थान है।
- पिछले दो वित्तीय वर्षों में सिंगापुर, भारत में एफ.डी.आई. का प्रमुख स्रोत रहा है, जिसका हिस्सा वित्त वर्ष 2020 में कुल एफ.डी.आई. अंतर्प्रवाह का लगभग 30% था।
- पिछले वर्ष अप्रैल से दिसंबर की अवधि में एफ.डी.आई. इक्विटी अंतर्प्रवाह में उससे पूर्व के वर्ष में इसी अवधि की तुलना में 40% की वृद्धि देखी गई।
- वित्तीय वर्ष 2020-21 के पहले नौ महीनों के दौरान भारत ने अभी तक का सर्वाधिक एफ.डी.आई. आकर्षित किया है।
- अंकटाड के अनुसार, वर्ष 2020 में केवल भारत और चीन ही ऐसे दो देश थे, जहाँ एफ.डी.आई. में वृद्धि देखी गई, जबकि यू.के. और यू.एस.ए. जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं सहित बाकी देशों में तीव्र गिरावट देखी गई।
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भारतीय बाज़ार : समस्या और अनुकूलता
- अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के तीन दशक बाद भी भारत में व्यापार करना अत्यंत जटिल एवं चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। व्यापारिक समुदाय ने भारत में व्यापार करने में आने वाली मूल समस्याओं में नीतिगत परिवर्तनों और बाज़ार पहुँच में निरंतर बाधाओं जैसे मुद्दों को रेखांकित किया है।
- साथ ही, ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान ने भी निवेशकों और छोटी कंपनियों के समक्ष समस्याएँ उत्पन्न की हैं, जिनके पास वास्तविक और व्यावहारिक बाधाओं का सामना करने के लिये संसाधनों की कमी है।
- फिर भी, प्रमुख कॉर्पोरेट निवेशक भारतीय बाज़ार को एक अलग दृष्टिकोण से देखते हैं। उनका मानना है कि भारत या उसके जैसे किसी उभरते हुए बाज़ार में व्यापार करने में जोखिम अंतर्निहित रहता है, किंतु उनके दृष्टिकोण के साथ अनुकूलन से बड़ी सफलता अर्जित की जा सकती है।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये क्यों महत्त्वपूर्ण है भारत?
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये भारत के महत्त्व को चार प्रमुख बिंदुओं के विश्लेषण से समझा जा सकता है। इनमें भारत की जनसांख्यिकी, भू-राजनीति में होने वाला परिवर्तन, बढ़ती डिजिटल कनेक्टिविटी और राष्ट्रीय स्तर पर लचीलापन शामिल हैं।
- भारत की जनसांख्यिकी- भारत की लगभग 4 बिलियन जनसंख्या और उसकी बढ़ती क्रय शक्ति बहुराष्ट्रीय कंपनियों की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के लिये विशिष्ट रूप से मूल्यवान है। चीन के अलावा ऐसा कोई ऐसा बाज़ार नहीं है, जहाँ इस प्रकार उभरता हुआ मध्यम वर्ग हो।
- इस प्रतिस्पर्धा में भारत के पीछे रहने का कारण न सिर्फ रणनीतिक स्तर पर चूक है बल्कि बोर्डरूम स्तर पर होने वाला कदाचार और भ्रष्टाचार भी इसके लिये उत्तरदायी हैं। यहाँ बोर्डरूम से तात्पर्य, ऊपरी स्तर के कुछ लोगो द्वारा लिये जाने वाले निर्णयों से है।
- भू-राजनीति में बदलाव- अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतियोगिता ने निवेश और विनिर्माण के स्तर पर वैश्विक परिदृश्य को पुनर्परिभाषित किया है, जिससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने भविष्य के कदमों, निर्णयों और उत्पादन केंद्रों पर पुनर्विचार के लिये मज़बूर होना पड़ा है।
- वियतनाम जैसे सामान्य देशों ने इस अवसर का बड़े पैमाने पर लाभ उठाया है और अब भारत भी इसके लिये गंभीर हो रहा है। सैमसंग जैसी प्रमुख बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारतीय बाज़ार में बड़ा निवेश किया है और सिस्को, नोकिया, एरिक्सन व फ्लेक्स जैसी विनिर्माण कंपनियाँ भी निवेश प्रोत्साहन कार्यक्रमों का लाभ उठाने के लिये भारत में नए निवेश पर विचार कर रही हैं।
- डिजिटल कनेक्टिविटी- सस्ते मोबाइल डाटा ने भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था में क्रांति ला दी है, वर्तमान में लगभग 700 मिलियन भारतीय इंटरनेट से जुड़े है। 500 मिलियन से अधिक भारतीय अभी भी इंटरनेट से कनेक्ट नहीं हैं; इन उपभोक्ताओं के कारण प्रमुख अग्रणी वैश्विक टेक कंपनियाँ भारत में निवेश कर रही हैं।
- साथ ही, घरेलू कंपनियों ने भी बड़े स्तर पर उच्च गुणवत्ता वाली सेवाओं के वितरण और उनमें नवाचार क्षमता का प्रदर्शन किया है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों एवं भारतीय टेक फर्मों के बीच साझेदारी और एफ.डी.आई. प्रवाह आने वाले वर्षों में साझा बाज़ार के अवसरों के लिये मार्ग प्रशस्त करेंगे।
- राष्ट्रीय लचीलापन- भारत ने कई पश्चिमी देशों की तुलना में कोरोना महामारी का प्रबंधन बेहतर तरीके से किया है और सामूहिक टीकाकरण कार्यक्रम को लागू करने से पूर्व ही आर्थिक गतिविधियों को बहाल कर दिया है।
- यह एक उल्लेखनीय घटना है और भारत के समक्ष उपस्थित ऐतिहासिक व राजनीतिक चुनौतियों के बावजूद इसके अंतर्निहित लचीलेपन की बात की जा रही है। इस प्रकार, 21वीं सदी की जटिल चुनौतियों का सामना बेहद लचीलेपन से कर पाने की भारत की क्षमता पर वैश्विक निवेशक गौर कर रहे हैं, जो भारत के लिये लाभप्रद होगा।
द्विपक्षीय हित और मूल्य सृजन
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा भारतीय बाज़ार में अवसरों की तालाश को केवल एकपक्षीय धन हस्तांतरण और लाभ के रूप में ही नहीं देखा जा सकता है, इन कंपनियों को भारत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किये बिना कोई विशेष उम्मीद नहीं रखनी चाहिये।
- उल्लेखनीय है कि सफल कंपनियाँ अपनी व्यावसायिक रणनीति में ‘साझा मूल्य सृजन’ के दृष्टिकोण को विशेष स्थान देती हैं। वे अपनी कॉर्पोरेट सफलता को भारत की संवृद्धि एवं विकास से जोड़कर देख सकती हैं। इस प्रकार, वे स्थायी भागीदारी, संबंध एवं निवेश का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं।
निष्कर्ष
भारतीय बाज़ार को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने और उसके उन्नयन के लिये कॉर्पोरेट अधिकारियों की आवश्यकता है, जो नई प्रतिबद्धताओं का निर्माण कर सकें। हालाँकि, वैश्विक महत्वाकांक्षाओं और जोखिम लेने की इच्छा रखने वाली अग्रणी कंपनियों के लिये भारतीय बाज़ार में निवेश करना अत्यंत लाभदायक सिद्ध हो सकता है।