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भारतीय बाज़ार में गिरावट : कारण एवं निहितार्थ

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3; उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव।)

संदर्भ 

विदेशी संस्थागत निवेशकों (Foreign Institutional Investors : FII) तथा विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (Foreign Portfolio Investors : FPI) के द्वारा बिकवाली और अमेरिका में (आयात) टैरिफ व्यवस्था के सख्त होने की आशंकाओं के कारण पिछले 6 दिन से लगातार भारतीय स्टॉक एक्सचेंज में गिरावट दर्ज की जा रही है। 

बाज़ार गिरावट के लिए उत्तरदायी कारक 

विदेशी निवेश का पलायन

  • अमेरिकी बॉन्ड पर बढ़ती हुई आय भारतीय इक्विटी की तुलना में अमेरिकी परिसंपत्तियों को अधिक आकर्षक बनाती है।
    • अमेरिकी परिसंपत्तियों पर बढ़ती हुई आय मुख्य रूप से फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती का परिणाम है।
  • बॉन्ड यील्ड और शेयर बाजारों के मध्य विपरीत संबंध पाया जाता  है क्योंकि दोनों अधिक लाभांश देकर निवेशक फंड के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
    • ऐसे में यू.एस. बॉन्ड यील्ड बढ़ने पर विदेशी निवेशक भारतीय इक्विटी से यू.एस. बॉन्ड की ओर रुख करते हैं।
  • आने वाले दिनों में अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की संभावना कम होने के साथ ही लाभांश में वृद्धि की संभावना बढ़ गई हैं, जिससे भारत से FPI निवेश का बहिर्वाह हो रहा है।

वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका

  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों से उत्पन्न तनाव ने वैश्विक व्यापार युद्ध की चिंता को बढ़ा दिया है। इन मुद्दों ने भारत से FPI बहिर्वाह में प्रमुख भूमिका निभाई।
    • ट्रम्प ने स्टील और एल्युमीनियम के आयात पर 25% का फ्लैट टैरिफ लगाया है, जिसका प्रभाव कनाडा, ब्राजील, मैक्सिको और दक्षिण कोरिया जैसे देशों पर पड़ा है। पहले के विपरीत, इस बार किसी भी देश को कोई विशेष छूट नहीं दी गई है।
  • ये टैरिफ भारत जैसे उभरते बाजारों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। ट्रम्प की टैरिफ नीतियां निर्यात को महंगा बनाकर पूंजी बहिर्वाह को बढ़ावा देकर और रुपये को कमजोर करके भारत को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
    • अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के मूल्यह्रास ने बाजार की चिंता और पूंजी बहिर्वाह में योगदान दिया है।
  • ये कारक भारत की आर्थिक वृद्धि, निवेशकों के विश्वास और निर्यात प्रतिस्पर्धा को कम कर सकते हैं।
  • अमेरिकी टैरिफ और वैश्विक आर्थिक विकास पर उनके परिणामों को लेकर अनिश्चितता ने निवेशकों को जोखिम शेयरों के प्रति सतर्क किया है।

कमज़ोर तिमाही (Q3) आय

  • भारतीय उद्योग क्षेत्र की तिमाही (Q3) कम आय रिपोर्ट से इस क्षेत्र की विकास संभावनाओं को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
  • उपभोक्ता वस्तुओं, ऑटो और निर्माण सामग्री क्षेत्र में गिरावट दर्ज की गई है। साथ ही कमजोर उपभोग प्रवृत्तियों ने चिंताओं को और बढ़ा दिया है।

भारतीय बाज़ार का उच्च मूल्यांकन

  • शेयर बाजार में आए सुधार के बावजूद, अभी भी इसके उच्च मूल्यांकन को लेकर चिंता बनी हुई है। 12 फरवरी, 2025 तक, भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के सापेक्ष कुल बाजार पूंजीकरण का अनुपात 114.46% है।
    • यह आकलन बफेट संकेतक पर आधारित है, जो मूल्यांकन स्तरों को मापने के लिए बाजार पूंजीकरण की तुलना GDP से करता है।
  • भारत में मिड और स्मॉल-कैप शेयरों के मूल्यांकन को विशेष रूप से बढ़ाया हुआ माना जाता है। ऐसे में जोखिमों को प्रबंधित करने के लिए एक विविध परिसंपत्ति आवंटन रणनीति की आवश्यकता है
  • इसके अतिरिक्त भारतीय शेयर बाजार दुनिया का सबसे महंगा इक्विटी बाजार है।

नए आयकर विधेयक पर अनिश्चितता

  • बाजार में गिरावट के मुख्य कारणों में से एक नए आयकर विधेयक को लेकर आशंका है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को बजट भाषण में इस प्रस्ताव की घोषणा की हालाँकि इसके संभावित निहितार्थ अभी भी अस्पष्ट हैं।
  • बाजार सहभागियों को आशंका है कि इस विधेयक के कारण वित्तीय प्रतिभूतियों पर उच्च कर दरें लागू हो सकती हैं।

सुझाव 

नीति निर्माताओं के लिए

  • सरकार को नए आयकर विधेयक पर स्पष्टता प्रदान करने के साथ ही निवेशकों की चिंताओं को दूर करके बाजार को स्थिरता प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • इसके अतिरिक्त, आर्थिक विकास सुनिश्चित करते हुए राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने के प्रयास निवेशकों के विश्वास बहाल करने में महत्त्वपूर्ण होंगे।

निवेशकों के लिए

  • दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य : बाजार में गिरावट प्राय: रणनीतिक निवेश के अवसर प्रस्तुत करती है। दीर्घकालिक निवेशकों को मौलिक रूप से मजबूत शेयरों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और घबराहट से प्रेरित निर्णयों से बचना चाहिए।
  • विविधीकरण : वैश्विक आर्थिक प्रतिकूलताओं को देखते हुए, विभिन्न क्षेत्रों और भौगोलिक क्षेत्रों में निवेश में विविधता लाने से जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • वैश्विक संकेतों की निगरानी : अमेरिकी फेड नीतियों और व्यापार नीतियों सहित वैश्विक व्यापक आर्थिक विकास पर नज़र रखने से सूचित निवेश निर्णय लेने में महत्वपूर्ण हो सकता है।
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