संदर्भ
भारतीय रेलवे की क्षमता और उत्पादन संबंधी कमियों को दूर करने के साथ-साथ माल ढुलाई (फ्रेट) इकोसिस्टम में रेलवे की औसत हिस्सेदारी को बढ़ाने के लिये भारत सरकार द्वारा बजट 2021-22 में ‘राष्ट्रीय रेल योजना 2030’ का मसौदा पेश किया है।
प्रमुख बिंदु
- अर्थव्यवस्था की दृष्टि से देखा जाए तो बजट में रेलवे से जुड़े बहुत से महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गए।
- दरअसल जो क्षेत्र अब तक रेलवे के दायरे से वंचित रहे, उन पर अध्ययन करके राष्ट्रीय रेल योजना 2030 में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि रेल की गति, उसकी क्षमता और नेटवर्क यानी इस तीनों पहलुओं से जुड़े तमाम कमज़ोर तथ्यों को नियोजित तरीके से दूर किया जाएगा।
- इसके अलावा पश्चिमी समर्पित माल गलियारा (Western dedicated freight corridor) और पूर्वी समर्पित माल गलियारे को जून 2022 तक शुरू करने की बात की गई है। ये गलियारे सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मोड में तैयार किये जाएंगें।
- एक ईस्ट कोस्ट कॉरिडोर (खड़गपुर से विजयवाड़ा), एक ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर (भुसावल से खड़गपुर / दनकुनी) और एक नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर (इटारसी से विजयवाड़ा) के निर्माण की बात भी की गई है।
सभी ब्रॉड-गेज मार्गों का दिसंबर 2023 तक विद्युतीकरण करने और यात्रियों की सुरक्षा व सुविधा संबंधी उपायों को और मज़बूत करने की बात भी की गई है।
रेल सुधारों की पृष्ठभूमि
- वर्ष 2030 से सौ वर्ष पहले, 1 जून, 1930 को मुंबई-पुणे डेक्कन क्वीन की शुरुआत हुई थी। भारतीय रेलवे ने तब से लेकर अब तक एक लंबा सफर तय किया है।
- वर्ष 2014 के बाद से भारतीय रेलवे में सकारात्मक बदलावों को अंजाम देने के लिये कई बड़े फैसले लिये गए।
- इस संदर्भ में एक उल्लेखनीय फैसला यह लिया गया कि रेल बजट को देश के आम बजट में ही समाहित कर दिया गया।
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017-18 में सरकारी निर्णय लिया गया था कि रेल बजट और आम बजट दोनों का विलय होगा।
- इस तरह 93 वर्षो से चली आ रही प्रथा में व्यावहारिक बदलाव करते हुए उसे नए तरीके से अंजाम दिया गया।
सुधार कितने आवशयक हैं?
- अब तक कई समितियों द्वारा रेलवे के स्तर को सुधारने से जुड़े उपायों पर चर्चा तथा रेलवे से जुड़ी विभिन्न समस्याओं की जाँच की गई है।
- हालाँकि, यदि ऐतिहासिक रूप से देखा जाय तो भारत में रेलवे के विकास से जुड़ी योजनाओं के निर्माण के दौरान में यात्रियों पर अधिक ज़ोर दिया गया था न कि माल ढुलाई पर।
- यदि माल ढुलाई के दृष्टिकोण से देखा जाय तो देश के कुछ महत्त्वपूर्ण हिस्सों को अनदेखा किया गया था।
- जब भारत में रेलवे के निर्माण का विचार पहली बार शुरू किया गया था तो यह माना गया था कि गरीबी के कारण बहुत कम यात्री यात्रा करेंगें तथा मुख्य व्यवसाय माल से प्राप्त होगा। जबकि वर्तमान में बहुत बड़ी संख्या में यात्री यात्रा करते हैं और माल-ढुलाई बड़े पैमाने में होने के बावजूद भारतीय रेलवे वर्तमान में घाटे में चाल रही है।
- यदि वैश्विक मानकों की बात की जाय तो भारतीय रेलवे अभि भी बहुत पीछे है।
राष्ट्रीय रेल योजना : उद्देश्य एवं लक्ष्य
- इस योजना का लक्ष्य कार्बन उत्सर्जन को कम करना और वर्ष 2030 तक माल ढुलाई में रेलवे की औसत हिस्सेदारी को वर्तमान के 27% से बढ़ाकर 45% करना है। इसके लिये परिचालन क्षमता और वाणिज्यिक नीति पहलों पर आधारित रणनीति तैयार की जाएगी।
- माल ढुलाई और यात्री, दोनों क्षेत्रों में वर्ष 2030 तक वार्षिक आधार पर और वर्ष 2050 तक दशकीय आधार पर माँग में वृद्धि का पूर्वानुमान लगाना भी इसका एक उद्देश्य है। साथ ही, मालगाड़ियों की औसत गति को वर्तमान के 22 किमी. प्रतिघंटा से बढ़ाकर 50 किमी. प्रतिघंटा करके माल ढुलाई के समय में कमी लाने का भी लक्ष्य है।
- इसके अतिरिक्त रेल परिवहन की कुल लागत को लगभग 30% कम करना और उससे अर्जित लाभों को ग्राहकों तक हस्तांतरित करने का भी विचार है।
- राष्ट्रीय रेल योजना को अवसंरचना संबंधी क्षमता को बढ़ाने तथा रेलवे और व्यापार की औसत हिस्सेदारी में वृद्धि करने की रणनीतियों के लिहाज से तैयार किया गया है।
नए प्रस्तावित सुधार
(1) औसत गति में बढ़ोतरी
- भारतीय रेलवे के साथ एक बड़ी दुविधा यह रही है कि तमाम प्रयासों के बावजूद वर्तमान में रेल की औसत गति महज 25 किमी. प्रति घंटा ही है। इसे बढ़ाकर वर्ष वर्ष 2026 तक 30 किमी. प्रति घंटे के स्तर पर लाना होगा।
- अतः इस योजना के पहले चरण में यानी वर्ष 2031 तक रेलवे की गति को 35 किमी. प्रति घंटा तक करना है।
- वर्ष 2041 में 40 किमी. प्रति घंटे की गति और तीसरे चरण में यानी वर्ष 2051 तक इसे बढ़ाकर 50 किमी प्रति घंते तक बढ़ाने की योजना है।
(2) प्रतिस्पर्धी बनाने पर ज़ोर
- इस योजना के समग्रता से कार्यान्वित होने की दशा में भारतीय रेल की गति और क्षमता तो बढ़ेगी ही, साथ ही नेटवर्क का भी विस्तार होगा।
- इस योजना का उद्देश्य यह भी है कि इस दौर में भारतीय रेल से होने वाली यात्रा को रोड (सड़क मार्ग), वाटर वे (जलमार्ग) और हवाई जहाज़ से मुकाबला करने के लिये प्रतिस्पर्धी बनाया जाए, ताकि यात्री नेटवर्क से लेकर माल ढुलाई तक में रेलवे की हिस्सेदारी में निरंतर बढ़ोतरी हो सके।
(3) डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर
- भारत का रेल नेटवर्क यदि मानव शरीर की धमनियों जैसा है तो डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर एक बाइपास सर्जरी की तरह है।
- अर्थात डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के सभी मार्गो पर संचालन शुरू होने के बाद तेज़ रफ्तार से मालगाड़ियों द्वारा देश के सुदूर इलाकों तक तेज गति से मालढुलाई सुगम हो जाएगी।
(4) मालभाड़े में कमी
- मुख्य रूप से रेल मार्ग द्वारा सीमेंट, कोयला, फर्टलिाइजर, खाद्यान्न, लोहा, खनिज, तेल एवं इस्पात आदि की ढुलाई की जाती है। इसके लिये एक साथ दो से तीन मालगाड़ियों को आपस में जोड़कर चलाने का काम शुरू किया गया है।
- इससे रेलमार्गो की क्षमता का अधिकतम दोहन किया जा सकता है। साथ ही कम समय में अधिक से अधिक वस्तुओं की आवाजाही को संभव बनाया जा सकता है।
- इसके लिये भारतीय रेल ने ज्यादा क्षमता वाले इंजन के विकास पर भी ज़ोर दिया है। भारत के पास लगभग पांच हज़ार हॉर्स पावर तक के इंजन बनाने की क्षमता है, जिसका प्रयोग तेज़ी से किया जा रहा है।
- वर्ष 2030 में राष्ट्र की आवश्यकताएं बढ़ेंगी, लिहाज़ा ट्रैफिक भी बढ़ेगा। हमारी बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ती का मार्ग रेल से होकर जाता है।
आगे की राह
- राष्ट्रीय रेल योजना के सफल कार्यान्वयन के लिये भारतीय रेलवे को निजी क्षेत्र, सार्वजनिक उपक्रमों, राज्य सरकारों और उपकरण विनिर्माताओं/उद्योगों के साथ मिलकर कार्य करने की संभावनाओं की तलाश करनी चाहिये।
- अवसंरचनात्मक माँग में वृद्धि के साथ उत्पन्न होने वाली बाधाओं के पहचान और निवारण के साथ-साथ रेल मार्गों की माँग के अनुरूप नेटवर्क क्षमता में वृद्धि करने पर ध्यान देना होगा।
- इन बाधाओं को समय रहते दूर करने के लिये ट्रैक कार्य, सिग्नलिंग और रोलिंग स्टॉक में उपयुक्त तकनीक के साथ परियोजनाओं का चयन करने पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
- राष्ट्रीय रेल योजना भविष्य की विकास योजनाओं का मार्गदर्शन करेगी। यह रेलवे की भविष्य की सभी अवसंरचनात्मक, व्यवसायिक और वित्तीय योजना के लिये एक साझा मंच होगी।