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रूस-चीन संबंधों के बीच भारत की चिंताएं

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

संदर्भ 

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एवं शी जिनपिंग ने चीन स्थित कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता के केंद्र ‘ग्रेट हॉल ऑफ द पीपल’ में मुलाकात की। 

रूस-चीन संबंध

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • सोवियत संघ के साथ चीन के संबंध वर्तमान स्थिति से बिलकुल अलग थे। वर्ष 1949 में ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ की स्थापना के बाद चीन के तत्कालीन प्रमुख माओत्से तुंग को रूस दौरे के समय जोसेफ स्टालिन के साथ बैठक के लिए हफ्तों तक इंतजार करना पड़ा था।
  • शीत युद्ध के दौरान चीन एवं यू.एस.एस.आर. वैश्विक कम्युनिस्ट आंदोलन पर नियंत्रण के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले प्रतिद्वंद्वी थे।
  • 1960 के दशक की शुरुआत में देशों के बीच तनाव खतरनाक रूप से बढ़ गया और वर्ष 1969 में दोनों देशों के बीच एक संक्षिप्त सीमा युद्ध भी हुआ।
  • वर्ष 1976 में माओ युग के समाप्ति के बाद संबंधों में सुधार शुरू हुआ किंतु वर्ष 1991 में सोवियत संघ के पतन तक इसमें कुछ खास प्रगति नहीं हुई।

शीत युद्ध के बाद का दौर 

  • शीत युद्ध के बाद के युग में आर्थिक संबंधों ने चीन-रूस संबंधों के लिए नया रणनीतिक आधार बनाया है।
  • चीन, रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और रूस में सबसे बड़ा एशियाई निवेशक बनकर उभरा। 
    • वर्तमान में रूस, चीन के लिए कच्चे माल के पावरहाउस और उपभोक्ता वस्तुओं के लिए एक मूल्यवान बाजार के समान है।
  • वर्ष 2014 में क्रीमिया पर कब्जे के बाद रूस के प्रति अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों के शत्रुतापूर्ण रवैये ने रूस एवं चीन की नजदीकियों को अधिक बढ़ा दिया है।

संबंधो की प्रकृति

  • दोनों देशों के नेताओं के अनुसार, रूस एवं चीन संबंध अवसरवादी नहीं हैं और किसी के खिलाफ निर्देशित नहीं हैं।
  • चीन के अनुसार दोनों पक्षों की दोस्ती चिरस्थायी है और यह एक नए प्रकार के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए एक मॉडल बन गई है।
  • अमेरिका के अनुसार, चीन-रूस संबंध वित्तीय या राजनीतिक कारणों से प्रेरित है।

चीन, रूस एवं यूक्रेन युद्ध

  • 24 फरवरी, 2022 को रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण करने से कुछ दिन पहले ही चीन एवं रूस ने ‘नो-लिमिट (No-limits)’ रणनीतिक साझेदारी पर हस्ताक्षर किए थे।
  • यूक्रेन युद्ध में चीन की भूमिका संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी समूह के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बनी हुई है। 
  • अमेरिका का मानना ​​है कि चीन उस तकनीक की आपूर्ति कर रहा है जिसका उपयोग रूस मिसाइलों, टैंकों एवं अन्य युद्धक्षेत्र हथियारों के निर्माण के लिए कर रहा है।
    • चीन से मशीन टूल्स, कंप्यूटर चिप्स एवं अन्य दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं के रूसी आयात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
    • युद्ध शुरू होने के बाद से रूस को चीनी रसद उपकरण जैसे लॉरी (सैनिकों को ले जाने के लिए) और उत्खनन करने वाली मशीनों (खाईयां खोदने के लिए) की बिक्री चार से सात गुना तक बढ़ गई है।

चीन-रूस मित्रता : भारत के लिए चिंताएँ

  • भारत के लिए रूस-चीन रक्षा धुरी महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े करती है।
  • भारत की रक्षा आपूर्ति का लगभग 60-70% रूस से आयात किया जाता है और भारत को नियमित एवं विश्वसनीय आपूर्ति की आवश्यकता है।
    • यह विशेष रूप से ऐसे समय में महत्वपूर्ण है जब भारतीय एवं चीनी सैनिकों के बीच पिछले चार वर्षों से सीमा पर गतिरोध की स्थिति बनी हुई है।
  • भारत के रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, रूस का चीन के ‘जूनियर पार्टनर’ बनने का परिदृश्य भारत के लिए भविष्य में गंभीर चिंता का विषय हो सकता है।
    • भारत एवं चीन के बीच युद्ध की स्थिति में रूस की प्रतिक्रिया अनिश्चित वाली हो सकती है, जो दक्षिण एशिया में भारत की रणनीतिक स्थिति को कमजोर कर सकता है।
  • पहले वर्ष 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान सोवियत संघ ने भारत का समर्थन नहीं किया था जबकि वर्ष 1971 के युद्ध में रूस ने भारत का समर्थन किया था। 
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