(प्रारंभिक परीक्षा : भारत का इतिहास)
(मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1 : भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू)
चर्चा में क्यों
हाल ही में, इंडोनेशिया में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व के नेताओं को गुजरात और हिमाचल प्रदेश की पारंपरिक कलाकृतियाँ उपहारस्वरुप भेंट की।
कलाकृतियाँ और उनका संक्षित विवरण
- अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को कांगड़ा लघु पेंटिंग; ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को माता नी पछेड़ी; ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथोनी अल्बानीस को पिथौरा पेंटिंग; फ्राँस, जर्मनी और सिंगापुर के नेताओं को कच्छ के एगेट बाउल और इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी को एक ‘पाटन पटोला’ दुपट्टा भेंट किया गया।
- इसके अलावा, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो को चाँदी का कटोरा (सूरत, गुजरात) और किन्नौरी शॉल (हिमाचल प्रदेश) तथा स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज को पीतल की तुरही का सेट (मंडी और कुल्लू) भेंट किया गया।
पाटन पटोला दुपट्टा (पाटन)
- 11वीं शताब्दी के दौरान विकसित यह हस्तनिर्मित कपड़ा शुद्ध रेशम में बुना होता है जिसका निर्माण डबल इकत (रंगाई की एक तकनीक) तकनीक से किया जाता है।
- इस कपड़े में दोनों तरफ रंग और डिज़ाइन एक समान होता है तथा यह विशिष्ट गुण टाई रंगाई या गाँठ रंगाई की एक पेचीदा तकनीक से आता है जिसे ‘बाँधनी’ के रूप में जाना जाता है।
- पटोला शीशम और बांस की पट्टियों से बने हाथ से संचालित हार्नेस करघे पर बुना जाता है।
- यह वस्त्र उत्तरी गुजरात के पाटन क्षेत्र में साल्वी परिवार द्वारा बुना जाता है।
कांगड़ा चित्रशैली (कांगड़ा)
- 17वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान विकसित हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा चित्रकला को पहाड़ी चित्रकला का एक रूप में जाना जाता है।
- इस चित्रकला का मुख्य केंद्र गुलेर, बसोली, चंबा, नूरपुर, बिलासपुर और कांगड़ा हैं।
- राजाओं के साथ ही श्रीकृष्ण के श्रृंगारिक चित्र कांगड़ा शैली की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। फूल, पौधे, लता, नदी, पेड़ आदि जैसे प्राकृतिक दृश्य भी इस शैली में प्रमुखता से उभारे गए हैं।
- इसमें प्रयुक्त रंगों को फूलों, पत्तियों, जड़ों, मिट्टी के विभिन्न रंगों, जड़ी बूटियों और बीजों आदि से बनाया जाता है।
- कांगड़ा चित्र, बही खातों के लिये बनाए गए विशेष प्रकार के हस्तनिर्मित कागज़ों, जिन्हें सियालकोट कागज़ भी कहा जाता है, पर तैयार किये जाते हैं।
- महाराजा संसार चंद कटोच (1775-1823) के शासनकाल को कांगड़ा शैली का स्वर्ण युग कहा जाता है।
माता नी पछेड़ी (गुजरात)
- यह मंदिरों में चढ़ाया जाने वाला हाथ से बना गुजराती कपड़ा है जिसे साबरमती नदी के किनारे रहने वाले ‘वाघरी’ खानाबदोश समुदाय द्वारा निर्मित किया जाता है।
- यह पवित्र कपड़ा दीवार कला (wall art) का एक रूप हैं जिसका उपयोग मंदिरों की पृष्ठभूमि के रूप में किया जाता हैं।
- मूल शैली में केवल दो रंगों- काला और लाल का प्रयोग किया जाता था जो प्राकृतिक रंगों से बने थे।
पिथौरा पेंटिंग (छोटा उदेपुर)
- यह मध्य गुजरात के छोटा उदेपुर की राठवा जनजाति द्वारा बनाई जाने वाली एक अनुष्ठानिक पेंटिंग है।
- ये चित्र अनाज के देवता ‘पिथौरा’ को चढ़ावे के रूप में बनाए जाते हैं तथा आमतौर पर केवल पुरुषों द्वारा चित्रित किये जाते हैं।
- ये चित्र पारंपरिक रूप से किसी विशेष अवसर जैसे विवाह, बच्चे के जन्म आदि अवसरों पर बनाए जाते हैं।
- इन्हें बनाने के लिये चित्रकार बाँस की छड़ियों, कपास और लकड़ी के स्टेंसिल के संयोजन का उपयोग करते हैं। इन चित्रों को बनाने के लिये महुदा के पेड़ से तैयार दूध और शराब में रंगद्रव्य मिलाकर निर्मित किये गए रंग का प्रयोग किया जाता है।
- पारंपरिक रूप से यह केवल भित्ति कला के रूप में प्रचलित है, लेकिन वर्तमान में पिथौरा चित्रकार कागज़ और कैनवास का उपयोग करते है जिसे व्यावसायिक रूप से बेचा जाता हैं।
एगेट बाउल (कच्छ)
- यह कटोरा कैल्सेडोनिक-सिलिका से बना होता है, जो एक अर्द्ध-कीमती पत्थर होता है। यह नदी के किनारे राजपीपला और रतनपुर की भूमिगत खदानों में पाया जाता है और विभिन्न प्रकार की सजावटी वस्तुओं के निर्माण में उपयोग किया जाता है।
- यह पारंपरिक शिल्पकला सिंधु घाटी सभ्यता से ही चली आ रही है और वर्तमान में खंभात के शिल्पियों द्वारा इनका निर्माण किया जाता है।
किन्नौरी शॉल (किन्नौर)
यह हिमाचल प्रदेश के किन्नौर ज़िले में निर्मित एक शॉल है। यह शॉल स्थानीय प्राचीन परंपरा और संस्कृति पर आधारित हैं, जिसके डिज़ाइन एवं तकनीक पर मध्य-एशिया और तिब्बत का काफी प्रभाव दिखाई देता हैं।