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भारत का रक्षा निर्यात और मानवीय कानून

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों व राजनीति का प्रभाव)

संदर्भ 

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका (Public Interest Litigation : PIL) को खारिज कर दिया जिसमें केंद्र सरकार से इजरायल को रक्षा उपकरणों का निर्यात बंद करने का अनुरोध किया गया था क्योंकि कथित तौर पर उसका प्रयोग गाजा में युद्ध अपराध में किया जा रहा है। इजरायल ने कारगिल युद्ध के दौरान भारत को रक्षा उपकरणों का निर्यात किया था। 

हालिया घटनाक्रम  

  • सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में इस आधार पर हस्तक्षेप से इनकार कर दिया है कि विदेश नीति उसके क्षेत्राधिकार में नहीं है।
  • हालाँकि, जनहित याचिका द्वारा उठाया गया मुद्दा एक मानक मुद्दा है। भारत की एक प्रमुख रक्षा निर्यातक राष्ट्र बनने की आकांक्षाओं को देखते हुए इसे स्पष्ट रूप से समझा जाना चाहिए।

विभिन्न देशों द्वारा इज़रायल को रक्षा निर्यात पर प्रतिबंध

नीदरलैंड

  • नीदरलैंड के एक न्यायालय ने डच सरकार को इजरायल को सभी F-35 लड़ाकू जेट पुर्जों के निर्यात को रोकने का आदेश दिया है। 
  • इसका आधार यूरोपीय संघ (EU) विनियमन है, जो किसी देश को सैन्य उपकरण निर्यात करने पर प्रतिबंध लगाता है यदि इस बात का स्पष्ट जोखिम है कि प्राप्तकर्ता देश इनका उपयोग अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (International Humanitarian Law : IHL) के उल्लंघन के लिए करेगा।

यूनाइटेड किंगडम

  •  यूनाइटेड किंगडम (UK) सरकार ने निर्यात नियंत्रण अधिनियम के तहत गाजा में जारी संघर्ष के संबंध में इजरायल द्वारा IHL के अनुपालन की समीक्षा की। 
  • इसका निष्कर्ष है कि यदि कुछ हथियार इजरायल को निर्यात किए जाते हैं, तो उनका उपयोग IHL के गंभीर उल्लंघन करने के लिए किया जाएगा।

भारत में विधिक अंतराल 

  • भारतीय कानून में किसी देश को रक्षा उपकरण निर्यात करने का निर्णय लेने के लिए IHL दायित्वों के साथ देश के अनुपालन का आकलन करने की आवश्यकता से संबंधित कोई विधिक प्रावधान उपलब्ध नहीं है। 
  • ‘भारतीय विदेश व्यापार (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1992’ और ‘सामूहिक विनाश के हथियार तथा उनकी वितरण प्रणाली (गैरकानूनी गतिविधि निषेध) (WMDA) अधिनियम, 2005’ संयुक्त रूप से केंद्र सरकार को विभिन्न कारणों से भारत से संबंधित नामित वस्तुओं के निर्यात को विनियमित करने का अधिकार प्रदान करता है। 
  • भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के अलावा इन धाराओं में सूचीबद्ध एक महत्वपूर्ण कारक भारत के ‘किसी भी द्विपक्षीय, बहुपक्षीय या अंतर्राष्ट्रीय संधि एवं अभिसमय के तहत अंतर्राष्ट्रीय दायित्व’ भी शामिल हैं। 
  • यू.के. और यूरोपीय संघ के देशों के विपरीत भारत के घरेलू कानून के अनुसार केंद्र सरकार उस देश के IHL अनुपालन की समीक्षा के लिए बाध्य नहीं है, जिसे भारत रक्षा उपकरण निर्यात कर रहा है। 

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का मूल्यांकन 

  • विशाखा बनाम राजस्थान राज्य जैसे कई मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने घरेलू कानून की विषय-वस्तु में विस्तार के लिए अंतर्राष्ट्रीय विधियों का उपयोग किया है। 
    • साथ ही, न्यायालय ने इस विषय पर घरेलू कानून की अनुपस्थिति से उत्पन्न हुए शून्य को भरने के लिए न्यायिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय कानून को शामिल भी किया है। 
  • रक्षा निर्यात से संबंधित वर्तमान मुद्दे को विदेश नीति का विषय बनाने के बजाय इसे न्यायिक रूप से विधिक स्वरुप प्रदान करने की आवश्यकता है। 

हथियारों के निर्यात से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कानून 

शस्त्र व्यापार संधि

  • हथियारों के निर्यात के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण संधि शस्त्र व्यापार संधि (Arms Trade Treaty : ATT) है। इसका उद्देश्य पारंपरिक हथियारों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करना है। 
    • इस संधि का अनुच्छेद 6(3) किसी देश को पारंपरिक हथियारों की आपूर्ति करने से रोकता है यदि उसे यह ‘अभिज्ञान’ हो कि इन हथियारों का ‘उपयोग’ अन्य बातों के साथ-साथ युद्ध अपराध करने के लिए किया जाएगा।
    • अनुच्छेद 7 राज्यों को यह आकलन करने के लिए बाध्य करता है कि उनके द्वारा निर्यात किए जाने वाले पारंपरिक हथियारों का उपयोग आयात करने वाले देश द्वारा IHL के गंभीर उल्लंघन या उसे सुविधाजनक बनाने के लिए किया जाएगा या नहीं।
  • भारत इस संधि पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, अत: यह संधि भारत के लिए बाध्यकारी नहीं है और इसे न्यायिक स्वरुप में शामिल नहीं किया जा सकता है। 

जिनेवा कन्वेंशन

  • जिनेवा कन्वेंशन का सामान्य अनुच्छेद 1 सभी राज्यों को IHL का सम्मान करने और सम्मान सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करता है। 
    • भारत द्वारा भी इस कन्वेंशन (अभिसमय) पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
  • निकारागुआ बनाम संयुक्त राज्य अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा यह माना गया था कि इसके प्रावधान राज्यों पर नकारात्मक दायित्व आरोपित करते हैं। 
  • इस संधि के तहत देशों का दायित्व है कि वे किसी ऐसे देश को हथियार न दें ‘यदि तथ्यों या पिछले पैटर्न के ज्ञान के आधार पर ऐसी संभावना है कि ऐसे हथियारों का उपयोग अभिसमय का उल्लंघन करने के लिए किया जाएगा। 

आगे की राह 

  • भारत के घरेलू कानून, WMDA और मुक्त व्यापर समझौता (FTA) को भारत के IHL दायित्वों के संबंध में उल्लेख करने पर एक स्पष्ट कर्तव्य उत्पन्न होता है कि ऐसे देश को हथियार न दिए जाएँ जो उनका उपयोग IHL दायित्वों का उल्लंघन करने के लिए करेंगे। 
  • अंतर्राष्ट्रीय कानून का उपयोग करके इस दायित्व को प्राप्त करने के बजाय भारत के लिए WMDA और FTA में संशोधन करना बेहतर होगा ताकि भारतीय रक्षा उत्पाद का आयात करने वाले देशों के IHL अनुपालन का स्पष्ट रूप से आकलन किया जा सके। 
    • ऐसे में भारत की साख एक जिम्मेदार रक्षा-निर्यातक राष्ट्र के रूप में मजबूत होगी।
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