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भारत की जनसांख्यिकी स्थिति : अवसर एवं चुनौतियां

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 : जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण)

संदर्भ

प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। वर्ष 2024 के विश्व जनसंख्या दिवस का विषय 'महिलाओं का यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य तथा प्रजनन अधिकार' है। वर्तमान में विश्व की कुल जनसंख्या अनुमानत: 8.1 अरब है, जिसमें भारत सर्वाधिक आबादी वाला देश (लगभग 1.44 अरब) है। ऐसी स्थिति में भारत के समक्ष अवसरों के साथ-साथ विभिन्न चुनौतियां भी विद्यमान हैं। 

भारत की जनसंख्या गतिशीलता

  • जनसंख्या गतिशीलता उपयोग : इसका उपयोग गतिशील प्रणालियों के रूप में जनसंख्या के आकार एवं आयु संरचना को मॉडल करने और उसका अध्ययन करने के लिए किया जाता है
  • वृद्ध आबादी में वृद्धि एवं परिणाम : प्रजनन स्तर में गिरावट एवं दीर्घायु के कारण भविष्य में आबादी में वृद्ध लोगों की संख्या व हिस्सेदारी अधिक होने की संभावना है। इससे जनसांख्यिकी में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन की उम्मीद है : क्षेत्रों में जनसंख्या का असंतुलित वितरण एवं विषम आयु संरचना।
  • जनसांख्यिकी के महत्वपूर्ण घटक : भारत के जनसांख्यिकीय परिदृश्य को आकार देने में प्रजनन क्षमता, मृत्यु दर एवं प्रवास जैसे तीन घटक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत ने अपनी प्रजनन क्षमता को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5 के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) वर्ष 1992 से 2021 के बीच 3.4 से घटकर 2 हो गई है। यह 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे आ गई है।
    • मृत्यु दर में भी उल्लेखनीय गिरावट आई है। भारतीयों की औसत जीवन प्रत्याशा में भी वृद्धि हो रही है। 
  • वृद्ध आबादी की स्थिति : भारतीय जनसांख्यिकी में वृद्ध होती आबादी महत्वपूर्ण परिवर्तन को दर्शाती है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 60 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के व्यक्ति कुल जनसंख्या का 8.6% थे। यह आंकड़ा वर्ष 2050 तक बढ़कर 19.5% हो सकता है।
  • विकास संबंधी परिदृश्य : भारत की जनसंख्या गतिशीलता इसके 'विकास' परिदृश्य से जुड़ी हुई है। प्रजनन क्षमता में गिरावट छोटे परिवार के मानदंडों के अनुरूप होने को दर्शाती है। इससे आश्रित आबादी का अनुपात कम हो सकता है और जनसांख्यिकीय लाभांश (ऐसी स्थिति जिसमें कामकाजी आयु वाली आबादी आश्रित आबादी से अधिक होती है) कम  हो सकता है। 
  • रोजगार एवं स्वास्थ्य : भारत रोजगार सृजन करके अपने युवा कार्यबल की क्षमता का दोहन कर सकता है। मृत्यु दर में कमी एवं जीवन प्रत्याशा में वृद्धि एक मजबूत स्वास्थ्य सेवा प्रणाली व बढ़ते हुए जीवन स्तर का प्रतिबिंबित है।
    • एक भारतीय की औसत जीवन अवधि 61 वर्ष से बढ़कर 70 वर्ष हो गई है।
  • महिलाओं की स्थिति : महिला श्रम शक्ति भागीदारी में होती जा कमी, निम्न राजनीतिक प्रतिनिधित्व और समाज में उनकी निम्न स्थिति जैसे मूक मुद्दे वर्ष 2030 के सतत विकास लक्ष्य के भारत के मार्ग को बाधित कर सकते हैं।
  • मृत्यु दर में कमी : मृत्यु दर संकेतकों में लगातार गिरावट देखी गई है। मातृ मृत्यु दर (MMR) 2000 में 384.4 से घटकर वर्ष 2020 में 102.7 हो गई। वर्ष 2000 के बाद पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आई है। 
    • शिशु मृत्यु दर भी वर्ष 2000 में प्रति 1,000 जीवित जन्म पर 66.7 मौतों से घटकर वर्ष 2021 में प्रति 1,000 जीवित जन्म पर 25.5 मौत हो गई है।
  • जी.डी.पी. व गरीबी की स्थिति : भारतीयों की प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. छह गुना बढ़कर 400 डॉलर से 2,400 डॉलर हो गई है। बहुआयामी गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले भारतीयों की संख्या 43% से घटकर 11% (लगभग 16 करोड़) हो गई है। हालांकि, यह अभी भी बहुत बड़ी संख्या है।

चुनौतियां 

  • शहरों पर बढ़ता दबाव : वर्तमान में वैश्विक आबादी शहरी इलाकों में अधिक केंद्रित है। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक दो-तिहाई लोग शहरी इलाकों में रहेंगे, जिससे बुनियादी ढांचे और सुविधाओं पर दबाव बढ़ेगा। इससे शहरी नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ सकता है।
    • भारत की 30% से अधिक जनसंख्या पहले ही शहरों में रह रही है और 2030 तक ये तादाद बढ़कर 40 प्रतिशत हो जाने का अनुमान लगाया गया है। 
  • सुधार में क्षेत्रीय असमानता : वर्ष 2000 के बाद से मातृ मृत्यु दर में कमी आने के बाद भी विभिन्न क्षेत्रों में असमान परिणाम हैं। 
    • प्रतिदिन गर्भावस्था एवं प्रसव संबंधी रोकथाम योग्य कारणों से दुनिया भर में 800 महिलाओं की मौत हो जाती है। इनका एक बड़ा हिस्सा विकासशील देशों में होता है। 
    • मातृ मृत्यु दर में कमी को प्रजनन क्षमता में कमी के साथ जोड़ा जा सकता है क्योंकि निम्न प्रजनन क्षमता मातृत्व जोखिम को कम करती है। 
  • परिवार बच्चों व बुजुर्गों में असंतुलन : प्रजनन स्तर में कमी एवं दीर्घायु से परिवार के आकार व संरचना में परिवर्तन होता है। इससे घरों में बच्चों व बुजुर्गों का वितरण असमान होता है जिसका प्रभाव असमानता पर पड़ता है। यह भारत के लिए चिंता का विषय है।   
    • उदाहरण के लिए, केरल प्रवास सर्वेक्षण, 2023 के अनुसार, 42% घरों में कोई बुजुर्ग नहीं है, जबकि 37% घरों में एक बुजुर्ग, 20% में दो और 1% में तीन बुजुर्ग हैं।
  • पर्यावरण की समस्या : दुनिया के शीर्ष 50 शहरों की रैंकिंग में एक भी भारतीय शहर शामिल नहीं है। सबसे अच्छी रैंकिंग वाला भारतीय शहर दिल्ली दुनिया के 1,000 शहरों में 350वें स्थान पर है। 
    • इसका कारण भारत के पर्यावरणीय एवं जीवन गुणवत्ता में गिरावट है, जो देश के शहरों की स्थिरता को खतरे में डालता है। 
  • जनसंख्या अनुमान में समस्या : दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद भारत के पास स्वयं की जनसंख्या की वास्तविक गणना नहीं है। भारत की जनसंख्या के अधिकांश अनुमान दशकों पुराने डाटा पर आधारित हैं। 
    • भारत की जनगणना तक देश के पास केवल अनुमान ही होंगे। सटीक गणना एवं जनसांख्यिकी संरचना बेहतर नीतियां तैयार करने के लिए आवश्यक हैं।

आगे की राह 

  • भारत को सतत विकास लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नीति-निर्माण के दौरान बदलती जनसंख्या गतिशीलता को स्वीकार करना होगा। 
  • भारत को आय असमानता को दूर करके और युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करके जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने तथा बदलती स्वास्थ्य आवश्यकताओं को संबोधित करने की आवश्यकता है।
  • उच्च-आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय के कारण गैर-संचारी रोग कुछ परिवारों के लिए घटक सिद्ध हो रहे हैं। इन परिवारों को घोर गरीबी में फंसने से बचाने के लिए भारत को एक मजबूत सुरक्षा जाल की आवश्यकता है।
  • कार्यक्रमों को मजबूत करके पोषण परिदृश्य में सुधार के लिए स्वास्थ्य एवं पोषण क्षेत्रों के बजटीय आवंटन में वृद्धि की आवश्यकता होगी। 
  • इसमें एक अन्य मुख्य प्रतिमान लैंगिक समानता भी है। लैंगिक समानता दृष्टिकोण और कमजोर महिलाओं का सशक्तिकरण अधिकांश मुद्दों को हल कर सकता है और सतत विकास लक्ष्यों में भारत की प्रगति को गति दे सकता है।
  • टिकाऊ मूलभूत ढांचे को दीर्घावधि में समृद्धि का लक्ष्य हासिल करने के लिए पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक प्रगति के बीच संतुलन बनाना होगा। बुनियादी ढांचे के विकास की योजना इस तरह से बनानी होगी, जो भविष्य की समस्याओं का आकलन करके उसके अनुसार तैयारी कर सके और पर्यावरण पर दुष्प्रभाव को भी सीमित रख सके।
  • जनसंख्या में अधिक आयु वाले व्यक्तियों की संख्या बढ़ने के मुद्दे पर एक दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता है। वृद्धावस्था देखभाल और सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही प्रवास व शहरीकरण की समस्याओं के समाधान की आवश्यकता हैं।
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