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भारत की दीर्घावधि-कम उत्सर्जन विकास रणनीति(एलटी-एलईडीएस) 

(प्रारंभिक परीक्षा के लिए - एलटी-एलईडीएस, पेरिस समझौता, COP27, UNFCCC)
(मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र:3, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र:2 - पर्यावरण संरक्षण, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश)

संदर्भ

  • भारत ने शर्म अल-शेख, मिस्र में पार्टियों के 27वें सम्मेलन( COP27) के दौरान जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क सम्मलेन (यूएनएफसीसीसी) के समक्ष अपनी दीर्घकालिक कम-उत्सर्जन विकास रणनीति प्रस्तुत की।
  • यह रणनीति, अगले दशक में अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को कम से कम तीन गुना बढ़ाने, हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए एक अंतरराष्ट्रीय केंद्र बनने और पेट्रोल में इथेनॉल के अनुपात को बढ़ाने पर आधारित है।
  • एलटी-एलईडीएस, एक प्रतिबद्धता दस्तावेज है, जिसे पेरिस समझौते (2015) के प्रत्येक हस्ताक्षरकर्ता को 2022 तक बनाना अनिवार्य है।

भारत की दीर्घावधि-कम उत्सर्जन विकास रणनीति (एलटी-एलईडीएस)

  • भारत की दीर्घकालिक-निम्न उत्सर्जन विकास रणनीति को वैश्विक कार्बन बजट के एकसमान और उचित हिस्से के लिए भारत के अधिकार से जुड़े फ्रेमवर्क में तैयार किया गया है, जो "जलवायु न्याय" के लिए भारत के आह्वान का व्यावहारिक कार्यान्वयन है।
  • एलटी-एलईडीएस को पर्यावरण के लिए जीवन शैली- लाइफ (एलआईएफई) से भी जोड़ा गया है, जो विश्वव्यापी प्रतिमान में बदलाव का आह्वान करता है, ताकि संसाधनों के विनाशकारी उपभोग के स्थान पर सचेत और सोच-विचारकर किए जाने वाले उपभोग को जीवन शैली में अपनाया जा सके।
  • इसके अंतर्गत ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय संसाधनों के तर्कसंगत उपयोग पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
    • जीवाश्म ईंधन से अन्य स्रोतों में बदलाव न्यायसंगत, सरल, स्थायी और सर्व-समावेशी तरीके से किया जाएगा।
  • भारत, 2025 तक इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को अधिकतम करने, पेट्रोल में 20 प्रतिशत तक इथेनॉल का सम्मिश्रण करने एवं यात्री और माल ढुलाई के लिए सार्वजनिक परिवहन के साधनों में एक सशक्त बदलाव लायेगा।
    • जैव ईंधन के बढ़ते उपयोग, विशेष रूप से पेट्रोल में इथेनॉल का सम्मिश्रण; इलेक्ट्रिक वाहन के उपयोग को बढ़ाने का अभियान और हरित हाइड्रोजन ईंधन के बढ़ते उपयोग से परिवहन क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के प्रयास को बढ़ावा मिलेगा।
  • भविष्य में स्थायी और जलवायु सहनीय शहरी विकास निम्नलिखित अपेक्षाओं द्वारा संचालित होंगे- स्मार्ट सिटी पहल; ऊर्जा और संसाधन दक्षता में वृद्धि तथा अनुकूलन को मुख्यधारा में लाने के लिए शहरों की एकीकृत योजना; प्रभावी ग्रीन बिल्डिंग कोड और अभिनव ठोस व तरल अपशिष्ट प्रबंधन में तेजी से विकास।
  • 'आत्मनिर्भर भारत' और 'मेक इन इंडिया' के परिप्रेक्ष्य में भारत का औद्योगिक क्षेत्र एक मजबूत विकास पथ पर आगे बढ़ता रहेगा।
    • इस क्षेत्र में कम-कार्बन उत्सर्जन वाले स्रोतों को अपनाने का प्रभाव- ऊर्जा सुरक्षा, ऊर्जा पहुंच और रोजगार पर नहीं पड़ना चाहिए।
  • प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (पीएटी) योजना, राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन, सभी प्रासंगिक प्रक्रियाओं और गतिविधियों में विद्युतीकरण के उच्च स्तर, भौतिक दक्षता को बढ़ाने और चक्रीय अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए पुनर्चक्रण एवं स्टील, सीमेंट, एल्युमिनियम और अन्य जैसे कठिन क्षेत्रों में अन्य विकल्पों की खोज आदि के माध्यम से ऊर्जा दक्षता में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • निम्न कार्बन विकास मार्ग को अपनाने में नई प्रौद्योगिकियों, नई अवसंरचना और अन्य लेन-देन की लागतों में वृद्धि समेत कई अन्य घटकों की लागतें शामिल होंगी।
    • इसके लिए विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्त का प्रावधान बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और इसे यूएनएफसीसीसी के सिद्धांतों के अनुसार मुख्य रूप से सार्वजनिक स्रोतों से अनुदान और रियायती ऋण के रूप में बढ़ाया जाना चाहिए।
  • भारत का दृष्टिकोण, निम्नलिखित चार प्रमुख विचारों पर आधारित है, जो इसकी दीर्घकालिक कार्बन कम-उत्सर्जन विकास रणनीति को रेखांकित करते हैं -
    1. भारत ने ग्लोबल वार्मिंग में बहुत कम योगदान दिया है, विश्व की आबादी का 17 प्रतिशत हिस्सा मौजूद होने के बावजूद, संचयी वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन में इसका ऐतिहासिक योगदान बहुत कम रहा है।
    2. विकास के लिए भारत की ऊर्जा आवश्यकताएं महत्वपूर्ण है।
    3. भारत, विकास हेतु कम-कार्बन रणनीतियों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है और राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप सक्रिय रूप से इनका अनुसरण कर रहा है।
    4. भारत को जलवायु सहनशील होने की आवश्यकता है।
  • यह रणनीति 2070 तक कार्बन न्यूट्रल होने के भारत के लक्ष्य के अनुरूप है।
  • शुद्ध शून्य लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में भारत का दृष्टिकोण लचीला और विकासवादी है, जो तकनीकी विकास के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था और सहयोग में विकास को समायोजित करता है।

cop-27

आगे की राह 

  • भारत की दीर्घकालिक रणनीति, भारतीय उद्योग के विकास, शहरी नियोजन और बुनियादी ढांचे के निर्माण का मार्गदर्शन कर सकती है।
  • भारत के शुद्ध-शून्य लक्ष्य को निकट-अवधि के जलवायु कार्यों से जोड़ना उन निवेशों से बचने के लिए महत्वपूर्ण है, जो कम-उत्सर्जन और जलवायु-लचीले भविष्य के साथ असंगत हो सकते है।
  • भारत की दीर्घावधि-कम उत्सर्जन विकास रणनीति, शुद्ध शून्य प्रतिज्ञा पर आधारित है, यह स्पष्ट रूप से उन क्षेत्रों में प्रमुख हस्तक्षेपों को रेखांकित करता है, जो भारत के प्रयासों का केंद्र बनने जा रहे है।
  • महत्वपूर्ण रूप से, यह दस्तावेज़ गहन हितधारक चर्चाओं का परिणाम है।

COP27

  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के पक्षकारों के सम्मेलन का 27 वां सत्र (सीओपी27) वर्तमान में शर्म अल शेख, मिस्र में आयोजित किया जा रहा है।
  • COP कन्वेंशन का निर्णय लेने वाला सर्वोच्च निकाय है।
  • यह सम्मेलन प्रतिवर्ष आयोजित होता है, जब तक कि पक्षकार अन्यथा फैसला ना करें।
  • पक्षकारों का अगला सम्मेलन (COP28 नवंबर) 2023 में दुबई, संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित किया जाएगा। 

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क( UNFCCC)

  • UNFCCC एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संधि है, जिसका उद्देश्य, पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के साथ खतरनाक मानवजनित हस्तक्षेप को रोकना है।
  • UNFCCC, पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, 1992 (जिसे पृथ्वी शिखर सम्मेलन या रियो शिखर सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है) के दौरान में अस्तित्व में आया। 
  • UNFCCC का सचिवालय बॉन (जर्मनी) में स्थित है।
  • UNFCCC के 198 सदस्य हैं, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने में प्रगति का आकलन करने के लिए पार्टियों के सम्मेलन (COP) में वार्षिक रूप से मिलते  है।
  • पेरिस समझौता तथा क्योटो प्रोटोकॉल इसी फ्रेमवर्क के अंतर्गत आते है।
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