(मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)
संदर्भ
हाल ही में, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपनी रूसी यात्रा के दौरान बताया कि भारत वार्ता और कूटनीति (Dialogue and Diplomacy) की वापसी का पुरजोर समर्थन करता है तथा शांति, अंतर्राष्ट्रीय कानून के लिये सम्मान और संयुक्त राष्ट्र चार्टर (UN Charter) के समर्थन का पक्षधर है।
प्रमुख बिंदु
- इस यात्रा के दौरान विदेश मंत्री ने कहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण ‘ग्लोबल साउथ’ (Global South) अत्यधिक प्रभावित हो रहा है जो भोजन, उर्वरक और ईंधन की कमी का सामना कर रहा है।
- ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया में विकासशील और अल्प विकसित देशों को संदर्भित करता है। इन्हें प्रायः ‘तीसरी दुनिया’ के देश भी कहा जाता है।
- भारत के अनुसार यह युद्ध का युग नहीं बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की अन्योन्याश्रितता का समय है। विदित है कि वर्तमान संघर्ष अर्थव्यवस्था पर दो वर्ष के कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न हुए गंभीर तनावों से भी अधिक व्यापक प्रभाव छोड़ रहा है तथा विशेष रूप से ग्लोबल साउथ इस तनाव से अधिक प्रभावित हो रहा है।
- हाल ही में रूसी तेल को रियायती कीमतों पर खरीदने के लिये भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह अपने नागरिकों की जरूरतों को पूरा करने के लिये ऐसा करना जारी रखेगा।
- विदित है कि भारत-रूस संबंधों के प्रमुख क्षेत्रों में परमाणु, अंतरिक्ष, रक्षा, ऊर्जा, कनेक्टिविटी, अफगानिस्तान मुद्दा, आतंकवाद आदि शामिल हैं।
मध्यस्थ के रूप में भारत की भूमिका
- रूस-यूक्रेन युद्ध की स्थिति में भारत ने स्वयं को एक तटस्थ राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है जो दोनों युद्धरत पक्षों के बीच मध्यस्थता कर सकता है।
- भारतीय प्रधानमंत्री ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ ही यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की से टेलीफोन पर कई बार वार्ता की है जो यह स्पष्ट करता है कि भारत दोनों पक्षों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में कार्य कर रहा है।
- इस संघर्ष की स्थिति में भारत को मध्यस्थ बनने से पूर्व निम्नलिखित पक्षों पर विचार करना होगा-
- भारत को रूस और यूक्रेन के साथ ही माल्डोवा, फिनलैंड, पोलैंड आदि देशों की आंतरिक गतिशीलता को समझना होगा। यूक्रेन और यूरोपीय भागीदारों के बीच गत्यात्मकता की समझ के साथ ही यह जानना आवश्यक है कि अंततः रूस क्या चाहता है और नाटो, यूरोप व अमेरिका के साझा हित क्या हैं।
- रूस-यूक्रेन युद्ध की स्थिति में भारत का जोर वार्ता के पक्ष पर रहा है। विदित है कि 1950 के दशक की शुरुआत में भारत ने कोरियाई युद्ध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसमें कैदियों के प्रत्यावर्तन की सुविधा के लिये संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक आयोग के गठन का प्रस्ताव रखा गया था। दिसंबर 1952 में चीन और रूस के प्रारंभिक विरोध के बावजूद संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया था और भारत के साथ ‘तटस्थ राष्ट्र प्रत्यावर्तन समिति’ (NNRC) की स्थापना की गई।
- इस वैश्विक संकट की स्थिति में पश्चिम के कुछ देश भारत को रूस के करीबी के रूप में देखते हैं। यहीं कारण है कि भारत की मध्यस्थता के लिये यूक्रेन और रूस दोनों पक्षों की विश्वसनीयता और सहमति की आवश्यकता होगी।
आगे की राह
- अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता को देखते हुए रूस-चीन के रणनीतिक गठबंधन को भारत के हितों के विपरीत माना जा रहा है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि रूस भारत को अपनी रक्षा आपूर्ति मज़बूती से जारी रखे तथा चीन के साथ संवेदनशील प्रौद्योगिकियाँ साझा न करें।
- रूस ने आश्वासन दिया है कि वह भारत के साथ साझा की गई सैन्य तकनीकों को किसी अन्य देश को हस्तांतरित नहीं करता है। लेकिन भारत को उन हथियारों और प्रौद्योगिकियों के संबंध में खुफिया-साझाकरण व्यवस्था (Intelligence-Sharing Arrangements) के तहत इसे लगातार सत्यापित करते रहना चाहिये।