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भारत की खनिज कूटनीति

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधनों का जुटाव, विकास से संबंधित मुद्दे एवं रोज़गार)

संदर्भ

  • भारत अपनी विनिर्माण एवं तकनीकी क्षमता के विस्तार पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने में महत्वपूर्ण खनिजों की अत्यावश्यक भूमिका है।
  • भारत मुख्यतः एक खनिज आयातक देश है जो अपनी खनिज सुरक्षा के लिए अन्य देशों, मुख्यत: चीन पर निर्भर है। यह रणनीतिक चिंता का विषय है।
  • आर्थिक कारणों से संसाधनों के लिए संघर्ष का इतिहास लंबा रहा है किंतु कुछ देशों द्वारा रणनीतिक कारणों से संसाधनों का हथियारीकरण तुलनात्मक रूप से एक नई घटना है।
  • भारत ने खनिज सुरक्षा चुनौती को संबोधित करने के लिए खनिज कूटनीति में संलग्न होने का प्रयास शुरू किया है जिसका उद्देश्य भारत की सामरिक भेद्यता को कम करना है। 

 खनिज कूटनीति में संलग्न होने के भारत के प्रयास 

  • यह प्रयास निम्नलिखित स्तम्भों पर आधारित है : खनिज उत्पादक देशों के साथ अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव विकसित करना और अंतर-सरकारी संगठनों के साथ रणनीतिक साझेदारी स्थापित करना।
  • पहला स्तंभ लिथियम एवं कोबाल्ट की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, अमेरिका, रूस एवं कजाकिस्तान जैसे संसाधन संपन्न देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध बनाने पर केंद्रित है।
    • इस दृष्टिकोण को सुविधाजनक बनाने के लिए वर्ष 2019 के बाद भारत ने खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) की स्थापना की। यह एक संयुक्त उद्यम कंपनी है जिसका उद्देश्य ‘भारतीय घरेलू बाजार में महत्वपूर्ण एवं रणनीतिक खनिजों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करना’ है।
    • इसके उद्देश्यों में सरकार-से-सरकार, सरकार-से-व्यवसाय और व्यवसाय-से-व्यवसाय मार्गों के माध्यम से समझौते व अधिग्रहण करके खनिज सुरक्षा प्राप्त करना भी शामिल है।
  • मार्च 2022 में KABIL ने दो लिथियम और तीन कोबाल्ट परियोजनाओं की पहचान करते हुए एक महत्वपूर्ण खनिज निवेश साझेदारी के लिए ऑस्ट्रेलिया के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
  • लैटिन अमेरिका के लिथियम त्रिभुज पर भी भारत ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिसमें अर्जेंटीना, चिली एवं बोलीविया शामिल हैं। जनवरी 2024 में भारत ने पाँच लिथियम ब्राइन ब्लॉकों के लिए अर्जेंटीना में एक सरकारी स्वामित्व वाली उद्यम के साथ $24 मिलियन का लिथियम अन्वेषण समझौता किया।
  • KABIL बोलीविया व चिली से संपत्ति खरीदने की सुविधा प्रदान करके खनिज आपूर्ति को सुरक्षित करने के लिए भी सक्रिय रूप से काम कर रहा है। सरकार के अलावा भारत के निजी क्षेत्र को भी लाभ हुआ है। ऑल्टमिन प्राइवेट लिमिटेड ने लिथियम आयन बैटरी की कच्चे माल की आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित करने के लिए बोलीविया की राष्ट्रीय कंपनी YLB के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है।
  • मध्य एशिया ने भी भारत का ध्यान आकर्षित किया है। हाल ही में, भारत एवं कजाकिस्तान ने भारत में टाइटेनियम स्लैग का उत्पादन करने के लिए एक संयुक्त उद्यम ‘IREUK टाइटेनियम लिमिटेड’ का गठन किया। 
    • यह मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ भारत का पहला संयुक्त उद्यम है। यह प्रयास क्षेत्र के समृद्ध संसाधनों का लाभ उठाने के लिए भारत-मध्य एशिया रेयर अर्थ फोरम की स्थापना के भारत के प्रस्ताव के अनुरूप है।

सहकारी कार्य

  • खनिज कूटनीति का दूसरा स्तंभ अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव है। यह महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखला में सहयोग के लिए क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत, अमेरिका), इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी (IPEF), मिनरल सिक्योरिटी पार्टनरशिप (MSP) और जी-7 जैसे खनिज सुरक्षा से संबंधित मिनीलेटरल व मल्टीलेटरल पहलों के साथ साझेदारी को मजबूत कर रहा है।
    • इन सहकारी जुड़ावों का उद्देश्य भारत को इसके तीन खंडों ‘अपस्ट्रीम’, ‘मिडस्ट्रीम’ एवं ‘डाउनस्ट्रीम’ में महत्वपूर्ण खनिज क्षेत्र में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ जोड़ना है।
  • इसके अतिरिक्त, ये ज्ञान साझाकरण और क्षमता निर्माण में भी सहायक हैं जो अमेरिका, यूरोपीय संघ (EU), दक्षिण कोरिया एवं ऑस्ट्रेलिया जैसे अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ समन्वय के लिए महत्वपूर्ण है।
  • पश्चिमी साझेदारों के साथ इस सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए भारत के खान मंत्रालय ने महत्वपूर्ण खनिजों पर सहयोग को मजबूत करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया।
    • इससे भारत को महत्वपूर्ण खनिज क्षेत्र में अपनी नीतियों, विनियमों एवं निवेश रणनीतियों को सुव्यवस्थित करने, उन्हें वैश्विक मानकों व  सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ संरेखित करने’ में मदद मिलेगी।

आगे की राह  

  • खनिज कूटनीति में भारत के प्रयासों से कई सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं किंतु अभी भी अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक जुड़ाव के लिए आवश्यक तीन प्रमुख तत्वों का अभाव है।
    • ये हैं : निजी क्षेत्र की भागीदारी की कमी; कमज़ोर कूटनीतिक क्षमता एवं अपर्याप्त टिकाऊ भागीदारी। इसके अलावा, भारत का निजी क्षेत्र इस व्यवस्था से काफ़ी हद तक अनुपस्थित रहा है।
  • ‘महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखला रणनीति’ एवं ‘निजी क्षेत्र के लिए एक स्पष्ट रोडमैप की अनुपस्थिति’ नीति स्पष्टता की कमी के लिए जिम्मेदार दो प्राथमिक चर हैं। इनसे निपटने के लिए भारत को आपूर्ति श्रृंखला में निजी क्षेत्र की भूमिका पर विचार करते हुए जोखिम कम करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • एक महत्वपूर्ण कदम भारत की विकास संभावनाओं एवं राष्ट्रीय सुरक्षा प्राथमिकताओं के आधार पर आपूर्ति श्रृंखला रणनीति बनाना होगा।
  • भारत को खनिज कूटनीति भागीदारी को मजबूत करना चाहिए। विदेश मंत्रालय के भीतर एक समर्पित खनिज कूटनीति प्रभाग होना चाहिए, जो कि नई एवं उभरती सामरिक प्रौद्योगिकी (NEST) प्रभाग के समान हो। चयनित राजनयिक मिशनों में खनिज कूटनीति के लिए एक विशेष पद महत्त्पूर्ण कदम हो सकता है।
  • खनिज सुरक्षा के प्रति भारत के लक्ष्य के आवश्यक है कि भारत द्विपक्षीय भागीदारों और बहुपक्षीय मंचों के साथ रणनीतिक, टिकाऊ एवं भरोसेमंद साझेदारी निर्मित करें। 
  • अपने सभी भागीदारों में से यूरोपीय संघ, दक्षिण कोरिया एवं अन्य क्वाड सदस्यों के साथ काम करना भारत की खनिज सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इन देशों के पास घरेलू क्षमताएँ, कूटनीतिक नेटवर्क व तकनीकी जानकारी है। 
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