(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास, सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष) |
संदर्भ
भारत में 23 अगस्त, 2024 को पहला राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम की थीम ‘चंद्र के स्पर्श से जीवन की अनुभूति: भारत की अंतरिक्ष गाथा’ थी। भारत की अंतरिक्ष यात्रा ऐसे समय में सफल हो रही है, जब अंतर्राष्ट्रीय राजनयिक मंच पर अतंरिक्ष क्षेत्र पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
भारत की अंतरिक्ष कूटनीति
- जानकारी साझाकरण : बाह्य अंतरिक्ष में कूटनीतिक पहल के हिस्से के रूप में भारत अपने क्षेत्रीय सहयोगियों एवं अन्य विकासशील देशों के साथ अपने विकास लक्ष्यों को सुविधाजनक बनाने के लिए संबंधित जानकारी साझा कर सकता है।
- वैश्विक दक्षिण की प्रगति : वर्तमान में भारत अंतरिक्ष कूटनीति को आगे बढ़ाने और सतत विकास को नए स्तर पर ले जाने की कोशिश कर रहा है। इससे न केवल भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में प्रगति हो रही है, बल्कि वैश्विक दक्षिण में अन्य देशों के विकास में भी मदद मिली है।
- उदाहरण के लिए, भारत ने वर्ष 2019 में ‘नेटवर्क फॉर स्पेस ऑब्जेक्ट ट्रैकिंग एंड एनालिसिस’ (NETRA) प्रोजेक्ट किया था। ये स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस (SSA) प्रणाली मलबे एवं अन्य खतरों का पता लगाने के लिए बाह्य अंतरिक्ष में प्रारंभिक चेतावनी प्रदान करती है। इससे प्राप्त जानकारी को अन्य विकासशील देशों के साथ साझा करने से उन्हें अपनी एस.एस.ए. (SSA) पहलों में मदद मिल सके।
- निम्न लागत : भारत की निम्न लागत वाली एवं उचित प्रक्षेपण सेवाओं, विशेष रूप से इसरो के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है।
- डाटा का बेहतर उपयोग : भारत के पास सक्रिय रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट्स का सबसे बड़ा समूह है जो EOS-06 (2022) एवं EOS-07 (2023) जैसे पृथ्वी अवलोकन को प्राथमिकता देता है। इन उपग्रहों से मिले डाटा का उपयोग कृषि, जल संसाधन एवं शहरी नियोजन जैसे क्षेत्रों में किया जा सकता है।
- क्षेत्रीय संचार उपग्रह : वर्ष 2017 में इसरो ने साउथ एशिया सैटेलाइट (SAS) भी लॉन्च किया, जिसे GSAT-9 के रूप में भी जाना जाता है। यह एक जियोस्टेशनरी अर्थात भूस्थिर संचार उपग्रह है, जो दक्षिण एशियाई देशों पर कवरेज़ के साथ KU-बैंड के तहत विभिन्न संचार अनुप्रयोगों को सुविधा प्रदान करता है।
- GSAT-9 की कुछ प्रमुख विशेषताओं में दूरदराज के क्षेत्रों में बेहतर बैंकिंग प्रणालियों और शिक्षा के लिए दूरसंचार संपर्क बढ़ाना शामिल है।
- इसके साथ ही GSAT-9 की सहायता से उपयोगी प्राकृतिक संसाधनों का मानचित्रण, प्राकृतिक आपदाओं के लिए मौसम का पूर्वानुमान, स्वास्थ्य परामर्श एवं अन्य संबद्ध सेवाओं के लिए व्यक्ति-सेस-व्यक्ति के बीच संपर्क प्रदान करने जैसे सुविधाएं मिलती हैं।
अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रगति एवं इसके लाभ
- अंतरिक्ष बाज़ार : विश्व आर्थिक मंच (WEF) के अनुसार, वर्ष 2035 तक वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के 1.8 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, जोकि वर्ष 2023 में 630 मिलियन डॉलर से कुछ ही ज़्यादा थी।
- दैनिक जीवन में उपयोगी : अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था कई उद्देश्यों को पूर्ण करती है, जैसे- रोज़मर्रा के कामकाज को सुनिश्चित करने में सैटेलाइट्स की प्रमुखता, आपदा का सामना करने की तैयारियों के लिए मौसम की सटीक भविष्यवाणी, कृषि के लिए रिमोट सेंसिंग तकनीक आदि।
- क्षमता निर्माण में वृद्धि : जल संसाधन प्रबंधन, शैक्षिक गतिविधियों को सुविधाजनक बनाना, टेलीमेडिसिन को बढ़ावा देना और बड़े पैमाने पर सतत विकास एवं संधारणीयता में योगदान के संदर्भ में बाह्य अंतरिक्ष क्षेत्र की सफलता विकास साझेदारी के माध्यम से क्षमता निर्माण को बढ़ावा देती है।
- सुरक्षात्मक दृष्टिकोण : इसकी मदद से सैन्यीकरण एवं प्रौद्योगिकियों का शस्त्रीकरण करके उन्नत देश अपने महत्वपूर्ण रणनीतिक उद्देश्यों को भी पूरा करते हैं। हालाँकि, यह साइबर युद्ध और क्षुद्रग्रहों (एस्टोरॉइड्स) व चंद्रमा जैसे खगोलीय पिंडों पर संसाधनों के खनन का भी कारण हो सकता है।
वैश्विक दक्षिण में प्रमुख अंतरिक्ष कूटनीति पहल
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क्षेत्र
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पहल
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दक्षिण एशिया
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- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (IIRS) और एशिया एवं प्रशांत में संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध अंतरिक्ष विज्ञान व प्रौद्योगिकी शिक्षा केंद्र (CSSTEAP) के माध्यम से भारत विशेषज्ञता की सुविधा प्रदान करता है तथा सूचनाएं साझा करता है।
- उन्नति (यूनिस्पेस नैनोसैटेलाइट असेंबली एंड ट्रेनिंग : UNNATI), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा संचालित नैनोसैटेलाइट के संयोजन एवं निर्माण का एक अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम है।
- दक्षिण-पूर्व एशिया में रिमोट सेंसिंग की सुविधा देने के लिए वियतनाम में भारत एक बड़े केंद्र का निर्माण कर रहा है। इस केंद्र से अंतरिक्ष-आधारित प्रणाली के संचालन की विश्वसनीय सुविधा प्रदान की जाएगी।
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लैटिन अमेरिकी व कैरेबियाई देश
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- अमेरिका के साथ साझा सहयोग के माध्यम से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने इटली एवं अर्जेंटीना के साथ मिलकर कई सैटेलाइट लॉन्च किए हैं। इसके अतिरिक्त इसने चीन के साथ भी अपना सहयोग बढ़ाया है।
- महासागरों की निगरानी के लिए अर्जेंटीना एवं ब्राज़ील संयुक्त रूप से SABIA Mar सैटेलाइट का निर्माण कर रहे हैं।
- इक्वाडोर, मैक्सिको एवं कोलंबिया के बीच LATCOSMOS-C कार्यक्रम का लक्ष्य लैटिन अमेरिका से पहला क्रू मिशन लॉन्च करना है, अर्थात इसके तहत अंतरिक्ष यात्री भेजने का लक्ष्य है।
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अफ्रीका
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- मिस्र की अंतरिक्ष एजेंसी ने 50 से अधिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। पृथ्वी के अवलोकन, रिमोट सेंसिंग एवं जल प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए उसने चीन, अमेरिका, कनाडा, यूरोपीय संघ व जापान के साथ संयुक्त सहयोगी तंत्र भी बनाए हैं।
- नाइजीरिया ने आपदा प्रबंधन तारामंडल एवं अफ्रीकी संसाधन प्रबंधन तारामंडल के हिस्से के रूप में सैटेलाइट भी लॉन्च किए हैं।
- दक्षिण अफ्रीकी अंतरिक्ष एजेंसी धीरे-धीरे भारत, फ्रांस, रूस एवं अन्य अफ्रीकी देशों के साथ सहयोग बढ़ा रही है।
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दक्षिण-पूर्व एशिया
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- वियतनाम ने भी अंतरिक्ष क्षमताओं का निर्माण किया है। अंतरिक्ष सहयोग के क्षेत्र में वह जापान, इज़राइल एवं नीदरलैंड के साथ अपनी तकनीकी क्षमताओं का निर्माण कर रहा है।
- अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी एवं अनुप्रयोग पर आसियान की उप-समिति (SCOSA) अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोगात्मक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों, क्षमता निर्माण, तकनीकी के हस्तांतरण आदि के लिए आसियान देशों के बीच अंतरिक्ष सहयोग की सुविधा प्रदान करती है।
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आगे की राह
- विशेषज्ञों के अनुसार, वैश्विक दक्षिण के देशों में अंतरिक्ष कूटनीति पर राजनीतिक इच्छाशक्ति और स्पष्ट रणनीतिक या नीतिगत ढांचे की भी कमी है। इससे इन देशों में अंतरिक्ष सहयोग की पहल अस्थायी एवं अस्थिर होती है, जो कभी भी विफल हो सकती है।
- सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने के लिए अपने पड़ोसी देशों के सामाजिक-आर्थिक विकास को सुविधाजनक बनाने का भारत का प्रयास उल्लेखनीय है किंतु भारत को अंतरिक्ष कार्यक्रम के विकास में एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति और अंतरिक्ष कूटनीति में एक वैश्विक हितधारक बनने के प्राथमिक उद्देश्य पर नज़र रखनी आवश्यक है।
- कई विकासशील देशों, विशेष रूप से दक्षिण एशिया के देशों के पास, अपने स्वयं के अंतरिक्ष कार्यक्रमों एवं प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए साधनों की कमी है, इसलिए वैश्विक दक्षिण के लिए अंतरिक्ष कूटनीति चुनौतियों से युक्त है जिसका समाधान आवश्यक है।
- विकासशील देशों के लिए अंतरिक्ष कूटनीति में शामिल होना महत्वपूर्ण है। इससे वे विदेश नीति के उद्देश्यों एवं अपने विकास लक्ष्यों को साकार कर सकेंगे।
- विकासशील देशों को भी घरेलू अंतरिक्ष क्षमताओं में वृद्धि के लिए अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की कोशिश करनी चाहिए। इससे वैश्विक अंतरिक्ष कार्यक्रम में उनकी हिस्सेदारी भी बनी रहेगी।
- कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण विकासशील देशों के लिए अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निवेश करना तथा उसका विकास करना एक चुनौती है। हालाँकि, भारत के लिए दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के साथ अंतरिक्ष कूटनीति, क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है। इससे स्थिरता को भी बढ़ावा मिलता है।