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सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में व्यक्तिवाद 

प्रारंभिक परीक्षा के लिये - प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, कोविड-19 टीकाकरण
मुख्य परीक्षा के लिए : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - स्वास्थ्य

सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में व्यक्तिवाद

  • जनसंख्या के दृष्टिकोण से सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं की जांच और व्याख्या करने में विफलता, जटिल सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं के संबंध में अप्रभावी और अस्थिर समाधानों की ओर ले जा रही है।
  • उदाहरण के लिए, कुपोषण के मुद्दे के समाधान के रूप में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), पूरक पोषण कार्यक्रम और स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने जैसे अधिक टिकाऊ दृष्टिकोण की जगह पर सूक्ष्म पोषक तत्व पूरकता और खाद्य पोषण जैसे व्यक्तिवादी समाधानों को प्रस्तावित किया गया है।
  • इसी तरह, दीर्घकालीन रोग नियंत्रण के लिए, सामुदायिक कार्रवाई के माध्यम से स्वास्थ्य व्यवहारों में संशोधन की जगह पर प्रारंभिक निदान और उपचार पर प्रमुख ध्यान दिया जाता है। 
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य में, सामाजिक उन्मुख जनसंख्या-आधारित दृष्टिकोणों के स्थान पर व्यक्तिगत-उन्मुख हस्तक्षेपों को प्राथमिकता देने की एक मजबूत प्रवृत्ति है, जिसे सार्वजनिक स्वास्थ्य में व्यक्तिवाद के रूप में जाना जाता है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में व्यक्तिवाद के उदाहरण

  • प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY)
    • यह सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है, जो एक वर्ष में एक परिवार के अस्पताल में भर्ती होने के 5 लाख रुपए तक के खर्च को कवर करती है।
    • इस योजना का उद्देश्य अस्पताल में भर्ती होने के दौरान सभी प्रकार की सेवाओं के लिए मुफ्त उपचारात्मक देखभाल सुनिश्चित करना और लाभार्थी के वित्तीय बोझ को कम करना है। 
    • किसी भी आबादी के लिए हर वर्ष अस्पताल में भर्ती सेवाओं की जगह पर इस योजना द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को यह आश्वासन दिया जाता है कि यदि अस्पताल में भर्ती खर्चों की आवश्यकता होगी, तो वह खर्चों को कवर करेगी।
    • यह लोगों के सामने अस्पताल में भर्ती खर्च की समस्या के समक्ष एक व्यक्तिवादी प्रतिक्रिया है। 
    • यह राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) के 75वें दौर के आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है, जो इस बात पर प्रकाश डालते हैं, कि औसतन भारत में कुल आबादी के केवल 3% व्यक्ति ही वर्ष में एक बार अस्पताल में भर्ती हुए।
    • यह औसत असम में 1%, गोवा में 4% और केरल में 10% है, जबकि अधिकांश अन्य भारतीय राज्यों में यह औसत 3% से 5% के बीच है।
    • इसका तात्पर्य यह है कि सरकार को कुल जनसंख्या की स्वास्थ्य सुविधाओं आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सिर्फ 3%-5% आबादी के अस्पताल में भर्ती होने की स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थापना करने की आवश्यकता है। 
    • सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित बीमा योजनाओं के मूल्यांकन में, यह पाया गया कि जनसंख्या का एक छोटा हिस्सा ही वार्षिक रूप से इन योजनाओं  से लाभान्वित होता है।
  • कोविड-19 टीकाकरण
    • कोविड-19 के लिए टीकाकरण का दृष्टिकोण भी इसी तरह का रहा है, जिसमें, अन्य टीकाकरण के विपरीत, यह स्पष्ट था कि एक COVID-19 टीका लोगों को बीमारी होने से नहीं रोक सकता है, बल्कि यह सिर्फ अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु होने की संभावना को कम करता है 
  • कुल COVID-19-सकारात्मक मामलों में से केवल 20% को चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है, तथा लगभग 5% को अस्पताल में भर्ती होने की और लगभग 1%-2% को ही वेंटीलेटर सहायता या गहन देखभाल (ICU) की आवश्यकता होती है।
    • COVID-19 के कारण होने वाली अधिकांश मौतें, आवश्यकता होने पर 1% -2% व्यक्तियों को वेंटिलेटर और ICU सहायता सेवाओं तक पहुँच प्रदान करने में विफलता का प्रतिबिंब हैं।
    • उपचारात्मक देखभाल के प्रावधान करते समय कभी भी व्यक्तिगत स्तर पर योजना नहीं बनाई जाती, क्योंकि महामारी विज्ञान की दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति को हर बार उपचारात्मक देखभाल की आवश्यकता नहीं होगी।
    • विभिन्न आयु समूहों में जनसंख्या की रुग्णता प्रोफ़ाइल, एक महत्वपूर्ण मानदंड है जिसका उपयोग जनसंख्या की उपचारात्मक देखभाल आवश्यकताओं की योजना बनाने के लिए किया जा सकता है।
    • इसका अर्थ यह है, कि जनसंख्या-स्तरीय नियोजन के लिए, एक इकाई के रूप में जनसंख्या की आवश्यकता पर विचार किया जाना चाहिए।

सार्वजनिक स्वास्थ्य में व्यक्तिवाद के प्रभुत्व के प्रमुख कारण 

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य में व्यक्तिवाद के प्रभुत्व को निर्धारित करने वाले तीन प्रमुख कारण हैं, चूँकि ये सभी संयोजन में कार्य करते हैं, इसीलिए सार्वजनिक स्वास्थ्य अभ्यास के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं।
  • पहला सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में इस गलत धारणा के साथ बायोमेडिकल ज्ञान और दर्शन का प्रभुत्व है कि जो कार्य व्यक्तिगत स्तर पर किया जा रहा है, यदि उसे जनसंख्या के बड़े स्तर पर किया जाये तो वह सार्वजनिक स्वास्थ्य बन जाता है।
  • दूसरा संबद्ध पहलू आम जनता के बीच स्वास्थ्य के प्रभावों की 'दृश्यता' है। व्यक्तिगत स्तर पर स्वास्थ्य प्रभाव अधिक प्रभावी रूप से दिखाई देते हैं और आश्वस्त करने वाले होते हैं, जबकि जनसंख्या स्तर पर प्रभाव देखने के लिए जनसंख्या-स्तर के आँकडों के विश्लेषण की आवश्यकता होती है।
    • जनसंख्या-स्तर का विश्लेषण एक महत्वपूर्ण कौशल है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य चिकित्सकों के बीच समाज के बारे में विशेषज्ञता और अभिविन्यास की मांग करता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर जनसंख्या की स्वास्थ्य विशेषताओं की गलत व्याख्या करते हैं।
  • तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण, सार्वजनिक स्वास्थ्य अभ्यास में बाजार की भूमिका और उपभोक्तावाद का प्रभाव है।
  • बाजार की ताकतें किसी कार्यक्रम के लिए 100% लाभार्थियों को कवर करने का दावा करती हैं। 
  • किसी कार्यक्रम के लाभार्थी तब अधिकतम हो जाते हैं जब 100% आबादी को लक्षित किया जाता है।
  • इसके विपरीत, जनसंख्या के दृष्टिकोण से, अस्पताल में भर्ती सेवाओं के मामले में वास्तविक लाभार्थी केवल 5% -10% ही होते हैं।
  • व्यक्तिवाद का प्रचार करना हमेशा एक उपभोक्तावादी समाज की विशेषता रही है क्योंकि जोखिम और संवेदनशीलता के सामने प्रत्येक व्यक्ति एक संभावित 'ग्राहक' हो सकता है।

आगे की राह 

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य जनसंख्या-स्तरीय नियोजन के लिए, जनसंख्या को एक इकाई के रूप में मानने की आवश्यकता है।
  • देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए व्यक्तिवाद के स्थान पर मजबूत जनसंख्या-स्तरीय विश्लेषण और योजना की आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य में सभी प्रकार के व्यक्तिवादी दृष्टिकोणों का विरोध किया जाना चाहिए ताकि स्वास्थ्य के मूल सिद्धांतों और सामाजिक न्याय की रक्षा की जा सके।
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