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भारत-फ्रांस संबंध और भविष्य की संभावनाएँ 

(मुख्य परीक्षा; सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : अंतर्राष्ट्रीय संबंध; क्षेत्रीय और वैश्विक समूह, भारत से संबंधित और भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ

हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस की यात्रा की। वर्ष 2015 के बाद से यह उनकी पांचवीं और इस तरह की 10वीं उच्च स्तरीय द्विपक्षीय फ्रांस यात्रा है। इस यात्रा के दौरान फ्रांस और भारत के नेताओं के बीच कई मुद्दों पर महत्वपूर्ण विचारों का आदान-प्रदान हुआ। फ्रांस, भारत और यूरोपीय संघ के मध्य संभावित मुक्त व्यापार समझौते से संबंधित मुद्दों और रूस-यूक्रेन संकट पर यूरोपीय संघ के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। 

वर्तमान संबंध

  • यूक्रेन संकट के मद्देनज़र भी भारत और फ्रांस दोनों ही रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने में विश्वास करते हैं और भौगोलिक व कार्यक्षेत्र में वैश्विक जोखिमों की साझा समझ रखते हैं। 
  • दोनों देशों के मध्य रक्षा, आतंकवाद-निरोध और हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर पहले से ही उच्च गुणवत्ता वाली राजनीतिक वार्ता जारी है। दोनों देश 21वीं सदी के प्रमुख मुद्दों, जैसे- डिजिटल, साइबर, हरित ऊर्जा, नीली अर्थव्यवस्था और महासागर विज्ञान तथा अंतरिक्ष आदि पर सहयोग के साथ अब आगे बढ़ रहे हैं। 
  • दोनों देशों के पास उन्नत कौशल है और वे उपरोक्त क्षेत्रों में समान सोच रखते हैं। ये व्यापार और निवेश को बढ़ाने के साथ-साथ कोविड-19 व अन्य कारणों से बाधित आपूर्ति श्रृंखला का पुनर्निर्माण करने में सहायक होंगे।

सहयोग के क्षेत्र एवं संभावनाएँ

भू-राजनीतिक 

  • दोनों देश अपनी-अपनी निर्भरता को अच्छी तरह से समझते हैं, विशेषकर चीन, रूस और अमेरिका के संबंध में। भारत अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में अधिक प्रचलित होती जा रही टकराव की प्रवृत्ति को शांत करने में महत्त्वपूर्ण राजनयिक भूमिका निभा सकता है।
  • साथ ही, दोनों पक्ष हिंद-प्रशांत को वर्तमान संघर्षों के परिणामों से बचाने के लिये साथ मिलकर कार्य कर सकते हैं।

डिजिटल तकनीक

  • ऊर्जा और डिजिटल प्रौद्योगिकी भी सहयोग के दो अन्य विशेष क्षेत्र हैं। फ्रांस दोनों क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने के साथ एक महत्वपूर्ण वैश्विक शक्ति भी है।
  • डिजिटल तकनीक में फ्रांसीसी कंपनियां लंबे समय से भारत में सक्रिय हैं, जो अन्य गतिविधियों के साथ-साथ अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार के लिये एक महत्वपूर्ण केंद्र है। 
  • उदाहरण के लिये फ्रांस की तकनीकी सेवा प्रदाता कंपनी एटोस भारत को सुपरकंप्यूटिंग हार्डवेयर और क्वांटम कंप्यूटिंग सिमुलेशन सॉफ्टवेयर प्रदान करती है।
  • फ्रांस भारतीय इंजीनियरों को एक विशेष तकनीकी वीजा भी उपलब्ध कराता है, जो मजबूत आदान-प्रदान को सक्षम बनाता है।
  • डिजिटल सहयोग में दोनों देश कई प्रकार से आगे बढ़ रहे हैं। हालिया बैठक में दोनों देश साइबर सुरक्षा और सार्वजनिक डिजिटल बुनियादी ढांचे के मानकों को निर्मित करने पर सहमत हुए है।
  • ‘डिजिटल संप्रभुता’ के क्षेत्र में दोनों देशों के मध्य सहयोग को बढ़ाया जा सकता है। भारत ‘इंडिया स्टैक’ और ‘एम.ओ.एस.आई.पी.’ (MOSIP) जैसे ओपन-सोर्स एवं ओपेन प्लेटफार्म्स के उपयोग को लेकर फ्रांस के लिये एक संभावित मॉडल है। 
  • फ्रांस और भारत को डिजिटल प्लेटफॉर्म के नकारात्मक उपयोग को रोकने एवं महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के लिये खतरों को कम करने के लिये निवेश करने की आवश्यकता है। 
  • दुनिया के लिये अगली पीढ़ी के समाधान तैयार करने में भारत बड़े पैमाने पर ओपन-सोर्स प्लेटफॉर्म, फाउंडेशनल आई.डी., आई.टी. सेवाओं और फिनटेक की अवधारणा एवं नियोजन का प्रयोग तथा फ्रांस ए.आई., साइबर, क्वांटम प्रौद्योगिकियों, डाटा सशक्तिकरण एवं सुरक्षा का प्रयोग कर सकता है। 

ऊर्जा क्षेत्र

  • हरित ऊर्जा के विकास में अत्यधिक तेज़ी देखी जा रही है क्योंकि पारंपरिक ऊर्जा स्रोत की बढ़ती लागत क्रय शक्ति और उद्योग प्रतिस्पर्धात्मकता को कमजोर करती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के माध्यम से दोनों देशों ने यह प्रदर्शित किया है की वे अक्षय ऊर्जा के विकास में एक साथ काम कर सकते हैं। दोनों पक्ष हाइड्रोजन को एक बेहतरीन विकल्प भी मानते हैं। 
  • खाद्य सुरक्षा के लिये हाइड्रोजन ऊर्जा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका उपयोग यूरिया उर्वरक के निर्माण में किया जाता है। साथ ही, भारी ट्रकों के लिये ईंधन के रूप में भी इसका उपयोग किया जा सकता है, जिसकी हिस्सेदारी भारत के तेल खपत की लगभग 40% है। 
  • हालाँकि, भारत को हरित हाइड्रोजन बुनियादी ढांचे और पारितंत्र के लिये 1 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता है, जिसमें बड़े पैमाने पर ग्रिड में निवेश शामिल है। फ्रांस इस क्षेत्र में विशेषज्ञ है।
  • दोनों देश क्षमता विस्तार के लिये औद्योगिक साझेदारी स्थापित करने पर सहमत हुए हैं।

आर्थिक सहयोग

  • भारत एवं फ्रांस के बीच महत्वपूर्ण द्विपक्षीय निवेश, व्यापार और वाणिज्यिक सहयोग स्थापित है। लगभग 1000 फ्रांसीसी कंपनियाँ भारत में मौजूद हैं। साथ ही, फ्रांसीसी कंपनियों के भारत में 25 से अधिक अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थित हैं।
  • वर्ष 2000 से 2017 तक 6.09 बिलियन डॉलर के संचयी निवेश के साथ फ्रांस भारत में नौवां सबसे बड़ा विदेशी निवेशक रहा है।
  • फ्रांस में लगभग 120 भारतीय कंपनियां मौजूद हैं और 7000 लोगों को रोजगार प्रदान कर रही हैं।

अंतरिक्ष सुरक्षा

  • वर्ष 2019 में भारत और फ्रांस ने द्विपक्षीय अंतरिक्ष सुरक्षा वार्ता पर भी अपनी सहमति व्यक्त की थी। फ्रांस के लिये भारत पहला एशियाई देश है जिसके साथ इस तरह की वार्ता सम्पन्न हुई है।
  • फ्रांस, भारत के साथ अंतरिक्ष सुरक्षा वार्ता में शामिल होने वाला तीसरा देश है, जबकि अन्य दो प्रमुख देश संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान हैं। 

रक्षा सहयोग

  • दोनों देशों की तीनों सेनाओं के मध्य नियमित सैन्य अभ्यास होता रहता है-
  • अभ्यास शक्ति (थल सेना)
  • अभ्यास वरुण (नौसेना)
  • अभ्यास गरुड़ (वायु सेना)
  • दोनों देशों के मध्य चल रही रक्षा संबंधी प्रमुख परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं :
    • भारत द्वारा 36 राफेल जेट की खरीद के लिये अंतर-सरकारी समझौता
    • P-75 परियोजना के तहत मझगांव डॉकयार्ड शिपबिल्डिंग लिमिटेड के साथ साझेदारी में छह स्कॉर्पीन पनडुब्बियों का निर्माण कार्य लगभग पूरा किया जा चुका है।
    • हालाँकि, फ्रांसीसी रक्षा प्रमुख नौसेना समूह ने घोषणा की है कि वह P-75 इंडिया (P-75I) परियोजना में भाग लेने में असमर्थ है। 
  • सेवा-स्तरीय आधिकारिक वार्ता के अलावा दोनों देशों के मध्य रक्षा सहयोग पर एक उच्च समिति भी कार्यरत है।

अफ्रीका वार्ता

  • अफ्रीकी प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए एक विकासात्मक मार्ग की तलाश के लिये भारत और फ्रांस वर्ष 2017 से सहकारी तालमेल विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं।
  • विदित है कि अफ्रीकी महाद्वीप के 29 देश फ्रेंच भाषी हैं। अफ्रीकी देशों के साथ फ्रांस के विविध सामाजिक-आर्थिक, रणनीतिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और प्रौद्योगिकी संबंध हैं।
  • दोनों देश अफ्रीका के विकास में अपने प्रभाव को गहरा करने के लिये सहयोग कर सकते हैं। इनकी साझेदारी विकास परियोजनाओं और व्यापार लागत को कम करके चीन के बढ़ते हस्तक्षेप के लिये व्यवहार्य विकल्प प्रदान कर सकती है। 

निष्कर्ष

भारत के पास मांग आधारित एक वृहद् बाजार है, जबकि फ्रांस के पास तकनीक एवं पूंजी है और यूरोपीय संघ के पास हरित हाइड्रोजन संक्रमण के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति एवं प्रोत्साहन है। प्रमुख फ्रांसीसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां हाइड्रोजन ऊर्जा के क्षेत्र में पहले से ही कार्यरत हैं और भारतीय भागीदारों के साथ पायलट परियोजनाओं की योजना बनाई जा सकती है। वर्तमान बैठक में दोनों देश क्षमता विस्तार के लिये औद्योगिक साझेदारी स्थापित करने पर सहमत हुए हैं। साथ ही, भारत और फ्रांस अफ्रीका में चीन एवं अमेरिका के स्वामित्व वाली महँगी तकनीकी प्रणालियों का विकल्प भी हो सकती हैं।

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