(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार) |
संदर्भ
हाल ही में, हिंद-प्रशांत महासागर पहल (Indo-Pacific Oceans Initiative : IPOI) के पाँच वर्ष पूरे हुए। वर्तमान परिदृश्य में इसकी प्रसंगिकता का अध्ययन करना आवश्यक है।
क्या है हिंद-प्रशांत महासागर पहल
- भारत ने नवंबर 2019 में बैंकॉक में आसियान के नेतृत्व वाले पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान इसकी शुरूआत की थी।
- इसका उद्देश्य एक स्वतंत्र एवं मुक्त हिंद-प्रशांत और नियम-आधारित क्षेत्रीय व्यवस्था के लिए सहयोग को बढ़ावा देना था जो समुद्री क्षेत्र में सुरक्षा, स्थिरता व विकास को मजबूत करने में योगदान देगा।
- ‘क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा एवं विकास’ (Security and Growth for All in the Region : SAGAR) पहल की घोषणा के बाद आई.पी.ओ.आई. (IPOI) एक प्रमुख नीति बन गई जिसने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अधिक सहभागिता व सहयोग के लिए भारत की नई प्राथमिकता का संकेत दिया।
- एक गैर-संधि आधारित स्वैच्छिक व्यवस्था के रूप में इसका उद्देश्य साझा हितों से संबंधित सामान्य समझ और कार्यों के माध्यम से अधिक सामंजस्य एवं एकीकरण प्राप्त करना है।
- यह एक नए संस्थागत ढाँचे की परिकल्पना के स्थान पर पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन तंत्र पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
- पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में आसियान के सदस्य देश और इसके आठ संवाद भागीदार शामिल हैं।
IPOI के प्रमुख स्तंभ
- IPOI ने सात स्तंभों की रूपरेखा तैयार की है जिसके अंतर्गत एक या दो देश एक स्तंभ का नेतृत्व कर सकते हैं, जबकि अन्य स्वेच्छा से इसमें शामिल हो सकते हैं।
- समुद्री सुरक्षा : यूनाइटेड किंगडम एवं भारत
- समुद्री पारिस्थितिकी : ऑस्ट्रेलिया एवं थाईलैंड
- समुद्री संसाधन : फ्रांस एवं इंडोनेशिया
- क्षमता निर्माण एवं संसाधन साझाकरण : जर्मनी
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण व प्रबंधन : भारत एवं बांग्लादेश
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी व शैक्षणिक सहयोग : इटली एवं सिंगापुर
- व्यापार, संपर्क व समुद्री परिवहन : जापान एवं अमेरिका
- ग्रीस भी हाल ही में IPOI में शामिल हुआ है जबकि दक्षिण कोरिया इसमें भागीदारी पर विचार कर रहा है।
IPOI की भूमिका या लाभ
- पिछले पाँच वर्षों में IPOI ने कई द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय एवं बहुपक्षीय स्तरों पर नई समुद्री साझेदारी विकसित करने और पहले से मौजूद भागीदारी को मजबूत करने में मदद की।
- ऑस्ट्रेलिया-भारत हिंद-प्रशांत महासागर पहल भागीदारी (Australia-India Indo-Pacific Oceans Initiative Partnership : AIIPOIP) को समुद्री पारिस्थितिकी पर विशेष ध्यान देने के साथ द्विपक्षीय समुद्री सहयोग के लिए लॉन्च किया गया था।
- IPOI और हिंद-प्रशांत के लिए आसियान आउटलुक (ASEAN Outlook for the Indo-Pacific : AOIP) के मध्य महत्त्वपूर्ण अभिसरण को कई विश्लेषकों एवं नीति-निर्माताओं ने विशेष रूप से उजागर किया गया है, जो सहयोग के नए मार्ग का संकेत प्रदान करता है।
- IPOI क्वाड के व्यापक एजेंडे, हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचा (IPEF) के कुछ स्तंभों और हिंद एवं प्रशांत महासागर में अन्य संगठनों द्वारा शुरू की गई विशिष्ट समुद्री पहलों के साथ भी अच्छी तरह से प्रतिध्वनित हुआ है।
- वर्ष 2021 में चीन ने IPOI को स्वीकार किया किंतु इसके बारे में अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की।
IPOI को समर्थन
- समुद्री सुरक्षा सहयोग पर पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलनों की एक श्रृंखला में IPOI एवं इसके स्तंभों पर चर्चा की गई है।
- इसका सबसे हालिया सम्मेलन जुलाई 2024 में मुंबई में आयोजित किया गया था।
- अक्तूबर 2022 में ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एकीकृत प्रबंधन एवं सुरक्षा: सात IPOI स्तंभों को एकीकृत करने के लिए एक रूपरेखा’ पर एक सम्मेलन आयोजित किया गया था।
- इसने प्रत्येक स्तंभ के तहत अवसरों एवं चुनौतियों और क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने की दिशा में सामूहिक रूप से सात स्तंभों पर भी विचार किया।
- नवंबर 2022 में भारत में आयोजित हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय वार्ता के चौथे संस्करण का विषय भी IPOI को क्रियान्वित करने पर केंद्रित था।
वर्तमान में IPOI की प्रासंगिकता
- IPOI की शुरुआत के बाद से भू-राजनीतिक पुनर्संरेखण, प्रतिस्पर्धा, युद्ध एवं संघर्ष, महामारी, प्रौद्योगिकी व क्षमता विकास तथा आर्थिक चुनौतियों के कारण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक बड़ा रणनीतिक बदलाव आया है।
- हाल के महीनों में समुद्री घटनाओं, समुद्री डकैती, वाणिज्यिक शिपिंग पर हमले, सशस्त्र डकैती एवं तस्करी में भी वृद्धि देखी गई है।
- महासागर जलवायु एजेंडे के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये अत्यधिक मात्रा में सौर ऊर्जा और 28% कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं।
- जलवायु-प्रेरित आपदाओं, समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि, महासागरीय अम्लीकरण के साथ-साथ अवैध, अप्रतिबंधित एवं अनियमित मत्स्ययन में वृद्धि हुई है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नई पहल एवं समुद्री संपर्क व परिवहन का तेजी से विस्तार हो रहा है, जिसमें नई सहयोगी समुद्री परियोजनाएं तथा गलियारे शामिल हैं।
- भारत सरकार अपने समुद्री भारत विजन 2030 और समुद्री अमृत काल विजन 2047 पर सक्रिय रूप से कार्यरत है।
- इनमें समुद्री व्यापार, कनेक्टिविटी एवं परिवहन एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में शामिल है, जो IPOI का एक प्रमुख स्तंभ भी है।
- उपरोक्त परिदृश्य में IPOI के सात स्तंभ प्रासंगिक बने हुए हैं जिनके आगे चलकर और भी महत्वपूर्ण होने की संभावना है।
- हालाँकि, प्रत्येक स्तंभ के एजेंडे को नए परिवेश के अनुकूल बनाने की आवश्यकता होगी।
- भागीदारी एवं स्तंभ-वार नेतृत्व पर हुई प्रगति के साथ IPOI को अब व्यावहारिक सहयोग के लिए अधिक सार्थक ढाँचा बनने पर बल दिया जाना चाहिए।
आगे की राह
विजन एवं व्यापक एजेंडा
- IPOI पर चर्चा, संवाद, सम्मेलन एवं कार्यशालाएं पूरे क्षेत्र में बहु-हितधारक भागीदारी के साथ आयोजित की गई हैं। इनके आधार पर एक सामूहिक विजन वक्तव्य को अपनाया जाना चाहिए।
- प्रत्येक स्तंभ के लिए अगले पाँच वर्षों के लिए एक संक्षिप्त योजना एवं एजेंडा उचित परामर्श के बाद रेखांकित किया जाना चाहिए।
स्तंभ-विशिष्ट संवाद
- प्रमुख देशों को प्रत्येक स्तंभ से संबंधित आवधिक संवादों को आगे बढ़ाना चाहिए।
- ये पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, पूर्वी एशिया समुद्री मंच, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन और प्रत्येक स्तंभ से विशेष रूप से निपटने वाले अन्य क्षेत्रीय ढाँचे के साथ समन्वित हो सकते हैं।
- ऐसे संवाद एक से अधिक स्तंभों को कवर कर सकते हैं। हालाँकि, इनका व्यापक उद्देश्य सहमत एजेंडे को आगे बढ़ाना होना चाहिए।
पूर्वी अफ्रीका, खाड़ी सहयोग परिषद् के देशों एवं छोटे द्वीप राज्यों की भागीदारी
- भारत की एक्ट ईस्ट नीति के तहत इसकी उत्पत्ति और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन तंत्र के साथ जुड़ाव के कारण पूर्वी अफ्रीकी तथा खाड़ी देशों व छोटे द्वीपीय राष्ट्रों को ढाँचे में उचित प्रतिनिधित्व नहीं प्रदान किया गया है।
- हालाँकि, आने वाले वर्षों में उनकी भागीदारी एवं नेतृत्व को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जो IPOI को वास्तव में एक क्षेत्रीय पहल के रूप में प्रस्तुत करेगा।
आवधिक प्रसार
- अग्रणी देशों द्वारा प्रत्येक स्तंभ के लिए एक वार्षिक सारांश, अपनाई जा रही दिशा की सामान्य समझ को बढ़ाने में महत्वपूर्ण हो सकती है।
- इससे क्षेत्रीय समुद्री सहयोग की उपयोगिता को इसके व्यापक अर्थों में भी दिखाया जाएगा जो क्षेत्र के अन्य देशों या क्षेत्र से बाहर के देशों को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करेगा।