(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2 : महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना)
संदर्भ
‘हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद, 2021’ (Indo-Pacific Regional Dialogue: IPRD) का आयोजन 27 से 29 अक्तूबर, 2021 तक वर्चुअल माध्यम से किया जा रहा है।
पृष्ठभूमि
- हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद भारतीय नौसेना का सर्वोच्च अंतर्राष्ट्रीय वार्षिक सम्मेलन और सामरिक स्तर पर नौसेना की सक्रियता बढ़ाने का प्रमुख माध्यम है। पहली बार इसका आयोजन वर्ष 2018 में किया गया था।
- राष्ट्रीय समुद्री फाउंडेशन, भारतीय नौसेना का ज्ञान आधारित साझेदार और मुख्य आयोजक है। आई.पी.आर.डी. के प्रत्येक आयोजन का उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभरने वाली चुनौतियों और अवसरों की समीक्षा करना है।
पूर्ववर्ती आयोजन के प्रमुख बिंदु
- आई.पी.आर.डी.-2018 में चार उप-विषयों पर विशेष ध्यान दिया गया था। इसमें ‘समुद्री व्यापार’, ‘क्षेत्रीय संपर्कता’, ‘पूरे क्षेत्र की चुनौतियाँ’ (जैसे- निरंतर समुद्री निगरानी, समुद्री गतिविधियों के डिजीटलीकरण को बढ़ाना, समुद्री क्षेत्र के भीतर साइबर खतरे) और ‘समुद्री सुरक्षा के समग्र विकास में उद्योगों की भूमिका’ शामिल थी।
- आई.पी.आर.डी.-2019 के दौरान पाँच विषयवस्तुओं पर चर्चा की गई थी। ये थीं- ‘समुद्री संपर्क के जरिये क्षेत्र में आपसी जुड़ाव के लिये व्यावहारिक समाधान’, ‘हिंद-प्रशांत को स्वतंत्र और मुक्त रखने के उपाय’, ‘नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) के लिये क्षेत्रीय संभावनाओं की जाँच’, ‘समुद्री-उद्योग 4.0 से उत्पन्न अवसर’ और ‘सागर तथा सागरमाला से उत्पन्न क्षेत्रीय संभावनाएँ’।
वर्तमान आयोजन के विषय
- इस वर्ष के आई.पी.आर.डी. का आयोजन एक विस्तृत विषयवस्तु “21वीं शताब्दी के दौरान सामुद्रिक रणनीति का क्रमिक विकास : अनिवार्यताएँ, चुनौतियाँ और आगे की राह” के तहत आठ विशेष उप-विषयों पर आधारित है।
- ये आठ उप-विषय निम्नलिखित हैं :-
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सामुद्रिक रणनीति का विकासः समरूपताएँ, भिन्नतायें, अपेक्षाएँ व शंकाएँ।
- सामुद्रिक सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव के समाधान हेतु अनुकूल रणनीतियाँ।
- बंदरगाह संबंधी क्षेत्रीय सामुद्रिक संपर्कता और विकास रणनीतियाँ।
- सहयोगात्मक सामुद्रिक कार्यक्षेत्र जागरूकता रणनीतियाँ।
- नियम-आधारित हिंद-प्रशांत सामुद्रिक प्रणाली के तहत कानूनी प्रक्रियाओं और सिद्धांतों की अवहेलना के बढ़ते चलन का दुष्प्रभाव।
- क्षेत्रीय सार्वजनिक-निजी सामुद्रिक साझेदारी को प्रोत्साहन देने वाली रणनीतियाँ।
- ऊर्जा-असुरक्षा और उसे कम करने वाली रणनीतियाँ।
- मानवजनित और स्वत: उत्पन्न समुद्री समस्याओं का समाधान करने वाली रणनीतियाँ।