(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2: विषय-द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से सम्बंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)
संदर्भ
हाल ही में,भारत और फिलीपींस ने ‘रक्षा सामग्री और उपकरणों की खरीद’के लिये ‘कार्यान्वयन व्यवस्था’ पर हस्ताक्षर किये हैं। दोनों देशों की सरकारों के मध्य (Government-To-Government Route) हुआ यह समझौता भारत की महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रणालियों, जैसे-ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल की प्रत्याशित बिक्री के लिये आधार तैयार करता है।
फिलीपींस द्वारा सार्वजनिक रूप से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने का निर्णय और भारत के लिये एक संभावित निर्यात सौदा, वास्तविकता की ओर बढ़ता एक कदम है। यह संभावित निर्यात सौदा भारत के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा। हालाँकि, इस सौदे में अनेक चुनौतियाँभी हैं।
भारत के लिये निर्यात सौदे के निहितार्थ
- ब्रह्मोस मिसाइल भारत की महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रणाली है, जो न केवल भारतीय सेना की क्षमता में वृद्धि करती है, बल्कि यह अन्य देशों द्वारा भी खरीद हेतु उपयोगी एवं वांछनीय उत्पाद है। इसके निर्यात से रक्षा निर्यातक के रूप में भारत की विश्वसनीयता बढ़ेगी और विश्व पटल पर भारत की सामरिक स्थिति मज़बूत होगी।
- वियतनाम, इंडोनेशिया, संयुक्त अरब अमीरात, अर्जेंटीना, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश भी इस मिसाइल को खरीदने में रुचि दिखा रहे हैं। इससे भारत के वर्ष 2025 तक रक्षा निर्यात में5 बिलियन डॉलर के लक्ष्य को पूरा करने में भी मदद मिलेगी। साथ ही, भारत एक क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में भी स्थापित होगा।
- यह निर्यात सौदा चीन को प्रति-संतुलित करने के संदर्भ में भी महत्त्वपूर्ण होगा। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देश, जो चीन की आक्रमकता का सामना कर रहे हैं, वे भी भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने के लिये आगे आ सकते हैं। इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की सॉफ्ट एवं हार्ड पावर में वृद्धि होगी।
- भारत की मज़बूत सामरिक क्षमता के कारणचीन उन आसियान देशों से भी सावधान है, जो ब्रह्मोस जैसी रक्षा प्रणाली प्राप्त करने में रुचि दिखा रहे हैं।
- इसके अतिरिक्त, इससे भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के मध्य एक मज़बूत सहयोगी के रूप में उभरेगा, जिसकी सहायता से वे अपनी संप्रभुता एवं सीमाओं को संरक्षित कर सकते हैं।
फिलीपींस केलिये निर्यातसौदे के निहितार्थ
- फिलीपींस भारत से ब्रह्मोस को आयात करने वाला पहला देश होगा। इसके हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दूरगामी एवं महत्त्वपूर्ण परिणाम होंगे।साथ ही, ब्रह्मोस रक्षा प्रणाली के माध्यमसे फिलीपींस की सैन्य क्षमताओं में वृद्धि होगी।
- फिलीपींस और चीन के मध्य लंबे समय से दक्षिणी चीन सागर के मुद्दे पर क्षेत्रीय संघर्ष जारी है, अतः यह सौदा फिलीपींस द्वारा चीन की आक्रामकता को प्रतिसंतुलित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
निर्यातसौदे के समक्ष उपस्थित चुनौतियाँ
- ‘अमेरिका द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वियों के विरोध हेतु दंडात्मक अधिनियम’((Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act- CAATSA)
- इस सौदे में प्रमुख चुनौतिअमेरिका का CAATSA अधिनियम है, जिसका उद्देश्य उन देशों और निजी इकाईयों पर प्रतिबंध आरोपित करना है, जो अमेरिका के प्रतिद्वंद्वियों से किसी प्रकार के ‘महत्वपूर्ण लेनदेन’ में संलग्न हैं।
- हाल ही में,अमेरिका ने तुर्की को रूस से S-400 वायु रक्षा प्रणाली खरीदने पर CAATSA के अंतर्गत दंडित किया है।
- रूस की मशिनो स्ट्रोयेनिया (Mashinostroyenia) CAATSA के अतर्गत सूचीबद्ध संस्था है। चूँकि ब्राह्मोस के निर्माण में लगभग 65% तकनीक (रैमजेट इंजन एवं रडार) मशिनोस्ट्रोयेनिया द्वारा प्रदान की गई है, अतः इसका निर्यात करने पर CAATSA प्रतिबंध के आरोपित होने की संभावना बनी हुई है।
- अमेरिका,जो कि भारत एक प्रमुख रक्षा साझेदार है,ने अभी तक भारत द्वारा S-400 के अधिग्रहण, AK -203 असॉल्ट राइफल उत्पादन हेतु लाइसेंस प्राप्ति और ब्रह्मोस के निर्यात पर प्रतिबंधों को आरोपित करने के संदर्भ में कोई स्पष्ट मत व्यक्त नहीं किया है। इस कारण कुछ देश ब्रह्मोस खरीदने से पीछे हट सकते हैं।
- हालाँकि, भारत ब्रह्मोस के माध्यम से चीन को प्रति संतुलित करने की रणनीति के आधार पर CAATSA प्रतिबंधों से छूट प्राप्त कर सकता है।
वित्त संबंधी मुद्दा
- ब्रह्मोस की एक पूरी रेजिमेंट, जिसमें एक मोबाइल कमांड पोस्ट, चार मिसाइल-लॉन्चर वाहन, कई मिसाइल वाहक और 90 मिसाइलें शामिल हैं, की कीमत लगभग 275.77 मिलियन डॉलर (2,000 करोड़ रुपए) है। कोविड महामारी से प्रभावित देश कमज़ोर वित्तीय स्थिति के कारण इतनी बड़ी राशि रक्षा प्रणाली में खर्च करने से बच सकते हैं।
- हालाँकि,भारत ने फिलीपींस के समक्ष 100 मिलियन डॉलर की क्रेडिट लाइन की पेशकश की है। इससे फिलीपींस ब्रह्मोस की केवल एक खेप खरीद सकता है, जिसमें दो या तीन मिसाइल ट्यूब के साथ तीन मिसाइल लॉन्चर शामिल होंगे।
निष्कर्ष
भारत रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भरबनने और एक प्रमुख रक्षा निर्यातक के रूप में स्थापित होने की दिशा में बढ़ रहा है। भारत ब्रह्मोस के निर्यात के माध्यम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा प्रदाता की भूमिका निभा सकता है। अतः भारत के पास अवसर है कि वह उचित रणनीति अपनाकर फिलीपींस के साथ ब्रह्मोस निर्यात समझौते को सफल बनाए और अपनी स्थिति को सुदृढ़ करे।
ब्रह्मोस मिसाइल
- यह भारत की मध्यम दूरी की सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल है, जिसे पनडुब्बी, जहाज़, विमान या ज़मीन से लॉन्च किया जा सकता है।
- इसका विकास ब्रह्मोस एयरोस्पेस (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन और रूस की मशिनोस्ट्रोयेनिया का संयुक्त उद्यम) द्वारा किया गया है
- ब्रह्मोस नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है।
- यह विश्व की सबसे तेज़ सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल है और सबसे तेज़ क्रियाशील एंटी-शिप क्रूज़ मिसाइल भी है।
- यह मिसाइल ‘दागो और भूल जाओ’ (Fire and Forget) के सिद्धांत पर कार्य करती है।
- इसकी वास्तविक रेंज 290 किमी. है, परंतु लड़ाकू विमान से दागे जाने पर यह लगभग 400 किमी. की दूरी तक पहुँच जाती है।
- ब्रह्मोस की गति 2.8 – 5 मैक (ध्वनि की गति से 3 गुना) है। इतने वेग से गति करने का आशय है कि वायु रक्षा प्रणालियों द्वारा इसे रोक पाना कठिन होगा
- ब्रह्मोस के विभिन्न संस्करण, जिनमें भूमि, युद्धपोत, पनडुब्बी और सुखोई -30 लड़ाकू जेट शामिल हैं, जिनको को पहले ही विकसित किया जा चुका है तथा अतीत में इसका सफल परीक्षण किया जा चुका है।
- ब्रह्मोस के शुरुआती नौसैनिक एवं भूमि संस्करण को वर्ष 2005 में भारतीय नौसेना और वर्ष 2007 में भारतीय सेना में शामिल किया गया था।
- भारतीय वायु सेना द्वारा नवंबर 2017 में सुखोई -30 एम.के.आई. फाइटर जेट से ब्रह्मोस के एक एयर-लॉन्च वैरिएंट का सफल परीक्षण किया गया। वर्तमान में यह मिसाइल ने तीनों सेनाओं में शामिल है।
|