हाल ही में, एक शोध सर्वेक्षण के दौरान अरावली क्षेत्र में पहली बार हरियाणा के दमदमा में एक दीर्घकाय कछुआ देखा गया है। इसका नाम इंडोटेस्टूडो एलोंगाटा है।
शोधकर्ताओं के अनुसार अरावली क्षेत्र में इस कछुए का मिलना दुर्लभ है क्योंकि यह इस क्षेत्र का मूल प्रजाति नहीं है।
परिचय : यह मीठे पानी के कछुओं की 29 प्रजातियों में से एक है।
इसकी नाक पर एक गुलाबी छल्ला होता है, जो प्रजनन के मौसम में दिखाई देता है।
वैज्ञानिक नाम : इंडोटेस्टूडो एलोंगाटा (Indotestudo elongata)
अन्य नाम :इसे ‘साल वन का कछुआ भी कहा जाता है क्योंकि ये प्राय: साल (शोरिया रोबस्टा) और सदाबहार वन आवास, सूखे कांटेदार जंगल एवं सवाना घास के मैदानों सहित पर्णपाती वन क्षेत्रों में निवास करते है।
वंश एवं कुल :यह इंडोटेस्टुडो वंश के टेस्टुडिनिडे कुल से संबंधित है।
विस्तार :यह प्रजाति दक्षिण एशिया में भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया में थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस व मलेशिया में व्यापक रूप से विस्तारित है।
विशेष रूप से, यह मानस-भूटान सीमापार भू-परिदृश्य, कॉर्बेट-राजाजी-नेपाल तराई भू-परिदृश्य, तथा उत्तर-पूर्व म्यांमार और उत्तर-पूर्व बांग्लादेश सीमापार परिदृश्य में पाया जाता है। ओडिशा के छोटा नागपुर पठार में भी कुछ संख्या में पाए जाते हैं।
संरक्षण स्थिति : इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में ‘अतिसंकटग्रस्त’ (CR) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
इसे अंतर्राष्ट्रीय लुप्तप्राय वनस्पति एवं जीव प्रजाति व्यापार अभिसमय (CITES) के परिशिष्ट II में सूचीबद्ध किया गया है।