(प्रारंभिक परीक्षा : भारत का इतिहास) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 : भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू) |
संदर्भ
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने सिंधु घाटी सभ्यता (2350 ई.पू. से 1750 ई.पू.) की लिपि को डिकोड (पाठन) करने वाले व्यक्ति या संगठन को 1 मिलियन डॉलर (8.5 करोड़ रुपए) का पुरस्कार देने की घोषणा की है। तमिलनाडु सरकार के इस प्रयास का उद्देश्य देश के इतिहास में तमिलनाडु का उचित स्थान सुनिश्चित करना है।
सिंधु घाटी लिपि के बारे में
- परिचय : सिंधु घाटी लिपि (Indus Valley Script) को हड़प्पा लिपि के नाम से भी जाना जाता है। यह सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त मुहरों, अभिलेखों, मृद्भांडों एवं धातुपत्रों द्वारा निर्मित प्रतीक चिह्नों का एक संग्रह है।
- प्रथम प्रकाशन : अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा बनाए गए एक चित्र में हड़प्पा प्रतीकों वाली मुहरों के माध्यम से इस लिपि (चिह्नों) को पहली बार 1875 ई. में प्रकाशित किया गया था।
- हालाँकि, हड़प्पा सभ्यता की पहचान पहली बार 1921 ई. में दयाराम साहनी ने और आधिकारिक खोज की घोषणा 1924 ई. में सर जॉन मार्शल ने की थी।
- विशेषताएँ
- इस लिपि में भाव-चित्रात्मक चिह्नों का प्रयोग किया गया था।
- यह लिपि एक पंक्ति में दाएँ से बाएँ ओर तथा दूसरी पंक्ति में बाएँ से दाएँ ओर लिखी जाती थी।
- इसे ‘बुस्ट्रोफेडन शैली’ कहते हैं।
- सिंधु घाटी लिपि सिंधु सभ्यता के पतन के साथ ही लुप्त हो गई।
- इस लिपि का प्रयोग प्रशासनिक, व्यापारिक एवं धार्मिक कार्यों में किया जाता था।
- सिंधु लिपि का विकास स्वतंत्र रूप से हुआ था।
- सिंधु लिपि के लगभग 700 चिह्नों की पहचान की गई है।
- लगभग 31 चिह्नों का दोहराव 100 से अधिक बार हुआ है।
इस लिपि को डिकोड करने या समझने में चुनौतियाँ
- विगत 100 वर्षों से कई प्रयासों के बावजूद सिंधु घाटी लिपि को अभी तक समझा (Decipher) नहीं जा सका है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं :
- लिपि को समझने में मदद करने के लिए किसी ज्ञात द्विभाषी शिलालेख का अभाव
- सिंधु लिपि में लगभग 700 विशिष्ट चिह्नों के ज्ञात होने से समझने में चुनौती
- सिंधु सभ्यता के पतन के साथ ही इस लिपि के प्रयोग में न रहने से वर्तमान में इस लिपि से निरंतरता का अभाव
- लेख का लघु आकर
- सिंधु घाटी के उत्खनन में प्राप्त प्रत्येक लेख में औसतन 5 चिह्न हैं और सबसे लम्बे लेख में 17 विशिष्ट चिह्न हैं। इससे लिपि समझने के किसी पैटर्न का पता लगाना कठिन होता है।
सिंधु घाटी लिपि एवं द्रविड़ संस्कृति के मध्य संबंध
- तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग के अनुसार, तमिलनाडु राज्य में उत्खनन स्थलों से प्राप्त 60% चिह्न एवं 90% रेखाचित्र सिंधु घाटी सभ्यता में पाए गए चिह्नों से मिलते-जुलते हैं।
- सिंधु घाटी सभ्यता में बैल (वृषभ) की उपस्थिति के प्रमाण मिले हैं और बैल द्रविड़ संस्कृति का प्रतीक हैं। बैल के प्रमाण सिंधु घाटी से अलंगनल्लूर (जल्लीकट्टू के लिए प्रसिद्ध मदुरै के पास एक गांव) तक विस्तृत हैं।
- प्राचीन तमिल साहित्य में बैल को नियंत्रित करने वाले खेल के प्रचुर संदर्भ पाए जाते हैं। सिंधु घाटी की एक मुहर पर एक व्यक्ति को बैल को नियंत्रित करने का प्रयास करते हुए दिखाया गया है।
- इरावतम महादेवन, कामिल ज़वेलेबिल एवं असको परपोला जैसे भाषाविदों ने भी यह तर्क दिया है कि सिंधु घाटी लिपि का द्रविड़ भाषा से संबंध था।
- मेसोपोटामियाई सभ्यता एवं पुरातन द्रविड़ भाषाओं के शब्दों के सिंधु घाटी लिपि से तुलनात्मक अध्ययन से इतिहासकार बी. ए. मुखोपाध्याय ने दावा किया है कि सिंधु घाटी लिपि का संबंध प्राचीन द्रविड़ भाषा से था।
- हालाँकि, कई भाषाविदों का मत है कि इस लिपि का संबंध ब्राम्ही लिपि से है।