प्रारंभिक परीक्षा- समसामयिकी, सिंधु जल संधि, किशनगंगा और रतले परियोजना मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर-2 |
चर्चा में क्यों-
- भारत और पाकिस्तान ने 20 और 21 सितंबर को सिंधु जल संधि पर लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर चर्चा के लिए वियना में एक बैठक में भाग लिया।
मुख्य बिंदु-
- यह बैठक भारत के अनुरोध पर तटस्थ विशेषज्ञ द्वारा बुलाई गई थी और इसमें दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।
- इस बैठक में किशनगंगा और रतले पनबिजली परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- बैठक में जल संसाधन विभाग के सचिव के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने भारत का प्रतिनिधित्व किया।
- वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने आनंद वेंकटरमणी और अंकुर तलवार के साथ भारत के प्रमुख वकील के रूप में काम किया।
- पाकिस्तान की तरफ से डेनियल बेथलहम के नेतृत्व में पांच वकीलों की एक टीम थी।
- विदेश मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि, "यह एक लंबी प्रक्रिया है। दोनों पक्षों ने अपनी बातें रखीं,किंतु विभिन्न मुद्दों पर फैसला आने में समय लगेगा।"
- मध्यस्थता अदालत (सीओए) के विषय पर सूत्रों ने कहा, "मध्यस्थता अदालत की कार्यवाही मामले के किसी बिंदु पर अपनी प्रकाश डाल सकती है।"
- वर्तमान कार्यवाही में वियना में तटस्थ विशेषज्ञ के साथ बैठकें शामिल हैं।
- इस तटस्थ विशेषज्ञ को विश्व बैंक द्वारा संधि के अनुच्छेद IX के तहत नियुक्त किया गया था, विशेष रूप से दो जलविद्युत परियोजनाओं के संबंध में भारत और पाकिस्तान के बीच तकनीकी मतभेदों को संबोधित करने के लिए।
भारत का पक्ष-
- विदेश मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि, "इस बैठक में भारत की भागीदारी भारत के सुसंगत, सैद्धांतिक रुख के अनुरूप है क्योंकि सिंधु जल संधि में प्रदान किए गए वर्गीकृत तंत्र के अनुसार, तटस्थ विशेषज्ञ कार्यवाही ही इस समय एकमात्र वैध कार्यवाही है।"
- यही कारण है कि भारत ने किशनगंगा और रतले जल विद्युत परियोजनओं से संबंधित मुद्दों के समान सेट पर अवैध रूप से गठित मध्यस्थता न्यायालय द्वारा आयोजित समानांतर कार्यवाही में भाग नहीं लेने का संधि-संगत निर्णय लिया है।
- जहां तक तटस्थ विशेषज्ञ प्रक्रिया की अवधि और जटिलता का सवाल है, पाकिस्तान पक्ष 29 जुलाई, 2024 तक भारत के समक्ष अपना जवाब प्रस्तुत करने के लिए तैयार है। इसके बाद तटस्थ विशेषज्ञ दोनों देशों के साथ कई बैठकें करेंगे और परियोजनाओं का दौरा करेंगे।
- इसलिए निर्धारण प्रक्रिया 2024 के अंत तक या उससे भी आगे तक जा सकती है।
- इन कार्यवाहियों में मध्यस्थता अदालत (सीओए) की भूमिका विवादास्पद है। इस अदालत का गठन पाकिस्तान के आदेश पर किया गया था, जो तटस्थ विशेषज्ञ कार्यवाही के समानांतर चल रही थी।
- भारत ने इसे सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) का उल्लंघन बताते हुए सीओए के सत्र में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया है।
- हालाँकि, अदालत ने कहा कि भारत की अनुपस्थिति पाकिस्तान के मध्यस्थता अनुरोध में उठाई गई चिंताओं को दूर करने की उसकी क्षमता को प्रभावित नहीं करती है।
- भारत ने इसे दृढ़ता से खारिज कर दिया और अपने इस विश्वास पर फिर से जोर दिया कि सीओए का गठन संधि के दिशानिर्देशों के खिलाफ है।
संधि की जटिलता-
- भारत द्वारा सुझाया गया है कि वर्तमान गतिरोध का समाधान तटस्थ विशेषज्ञ के दृढ़ संकल्प का पालन करने पर निर्भर करता है। क्योंकि इस विशेषज्ञ को भारत के अनुरोध पर नियुक्त किया गया था।
- संधि यह निर्देश देती है कि किसी भी व्याख्या या अनुप्रयोग संबंधी मुद्दे को पहले स्थायी सिंधु आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। यदि समाधान नहीं निकला, तो मामला किसी तटस्थ विशेषज्ञ तक जा सकता है। विवाद केवल तभी अदालत में जा सकता है जब दोनों पक्ष सहमत हों या तटस्थ विशेषज्ञ द्वारा मामले को भेजा गया हो।
- इस मामले में कोई भी शर्त पूरी नहीं की गई, जिससे सीओए की भागीदारी अवैध हो गई।
- सिंधु जल के पूर्व भारतीय आयुक्त पीके सक्सेना ने स्थिति पर विचार किया। उन्होंने पाकिस्तान द्वारा संधि के बार-बार दुरुपयोग पर निराशा व्यक्त की और इसे जम्मू-कश्मीर के विकास को बाधित करने के एक उपकरण के रूप में देखा। उन्होंने सीमा की परवाह किए बिना जम्मू-कश्मीर की हर परियोजना पर पाकिस्तान के अड़ियल रुख की आलोचना की।
- सक्सेना ने कहा, "पाकिस्तान के अड़ियल रवैये के कारण, यह भावना बढ़ रही है कि संधि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में जल संसाधनों के विकास की दिशा में एक बड़ी बाधा है, जिससे यह हमारे सामूहिक प्रयास के लिए मुसीबत बन गई है।"
- उन्होंने आगे कहा कि भारत द्वारा तथाकथित सीओए के फैसले को अस्वीकार करना और संधि पर दोबारा बातचीत का आह्वान सही दिशा में उठाया गया कदम है।
- 6 जुलाई, 2023 को हेग में सीओए ने किशनगंगा और रतले परियोजनाओं पर भारत के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा शुरू की गई मध्यस्थता में अपनी क्षमता पर अपने फैसले की घोषणा की।
- भारत अपने विश्वास के कारण इन कार्यवाहियों से दूर रहा कि सीओए की स्थापना ने आईडब्ल्यूटी के प्रावधानों का उल्लंघन किया है।
- हालाँकि, अदालत ने फैसला किया कि भारत की गैर-भागीदारी पाकिस्तान के मध्यस्थता अनुरोध को संबोधित करने में उसकी क्षमता को प्रभावित नहीं करेगी।
- इसके बाद, विदेश मंत्रालय ने 6 जुलाई, 2023 को एक बयान में, भारत की स्थिति को दोहराया, इस बात पर जोर दिया कि एकमात्र वैध कार्यवाही तटस्थ विशेषज्ञ की थी। इस हालिया निर्णय ने केवल IWT में संशोधन की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
- चल रही चर्चाएँ और विवाद दक्षिण एशिया में जल संसाधनों और द्विपक्षीय संधियों से जुड़ी जटिलताओं और संवेदनशीलता को रेखांकित करते हैं।
तटस्थ विशेषज्ञ प्रक्रिया क्या है-
- दोनों पक्षों ने वियना में तटस्थ विशेषज्ञ (न्यूट्रल एक्सपर्ट) के साथ बैठक की।
- झेलम बेसिन में चिनाब नदी पर भारत द्वारा निर्मित दो जलविद्युत परियोजनाओं किशनगंगा (330 मेगावाट) और रतले (850 मेगावाट) पर तकनीकी मतभेदों को हल करने के लिए भारत के अनुरोध पर तटस्थ विशेषज्ञ को विश्व बैंक द्वारा संधि के अनुच्छेद IX के तहत नियुक्त किया गया था।
- दोनों पक्षों को सुनने के बाद तटस्थ विशेषज्ञ यह निर्णय लेगा कि उसे दिए गए मुद्दे उसके क्षेत्राधिकार में आते हैं या नहीं।
- यदि उसे लगेगा कि मतभेद कम हो गए हैं, तो वह गुण-दोष के आधार पर निर्णय देने के लिए आगे बढ़ेगा; अन्यथा वह सूचित करेगा कि मतभेद को संधि के अनुच्छेद IX के तहत नए सिरे से गठित होने वाली मध्यस्थता अदालत द्वारा निपटाए जाने वाले विवाद के रूप में माना जाना चाहिए।
- पीसीए(तटस्थ विशेषज्ञ का सचिवालय) द्वारा जारी कैलेंडर के अनुसार, पाकिस्तान को 29 जुलाई 2024 तक भारत के समक्ष अपना जवाब प्रस्तुत करना होगा। इसके पश्चात तटस्थ विशेषज्ञ दोनों पक्षों के साथ कई बैठकें भी करेगा और परियोजनाओं का दौरा करेगा।
- इस प्रकार, निर्धारण की प्रक्रिया लंबी है और 2024 के अंत तक और उससे भी आगे तक चल सकती है।
सिंधु जल संधि (IWT)
- अंतरराष्ट्रीय पुनर्गठन और विकास बैंक (विश्व बैंक) के तत्वावधान 1960 में सिंधु जल समझौता हुआ।
- इस संधि पर करांची में पाकिस्तान के तत्कालीन फिल्ड मार्शल मोहम्मद अयूब खान और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू एवं विश्व बैंक के श्री डब्लू, ए. बी. इलिफ द्वारा 19 सितम्बर, 1960 को हस्ताक्षर किया गया ।
- यह संधि 1 अप्रैल 1960 (प्रभावी तिथि) से प्रभावी हुई।
सिंधु जल संधि के प्रावधान-
- यह संधि सिंधु नदी और उसकी पांच सहायक नदियों के जल-बंटवारे की शर्तों को बताती है।
- भारत को तीन पूर्वी नदियों पर नियंत्रण मिल गया , जो हैं-
- किसी भी अवांछित स्थिति के उत्पन्न होने तक पूर्वी नदियों का सारा पानी भारत के अप्रतिबंधित उपयोग के लिए उपलब्ध रहेगा।
- पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों पर नियंत्रण मिल गया , जो हैं-
- जल बंटवारे में उत्पन्न होने वाले किसी भी विवाद को हल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक स्थायी सिंधु आयोग की स्थापना की गई थी , जिसमें विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने के लिए मध्यस्थता की व्यवस्था थी।
- संधि के अनुसार, भारत पश्चिमी नदियों के पानी का उपयोग घरेलू, गैर-उपभोग्य जरूरतों जैसे भंडारण, सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए भी कर सकता है।
- यह संधि सिंधु नदी प्रणाली से भारत को 20% पानी और शेष 80% पाकिस्तान को देती है।
- बाढ़ सुरक्षा या बाढ़ नियंत्रण की किसी भी योजना को क्रियान्वित करने में प्रत्येक देश (भारत/पाकिस्तान) जहां तक संभव हो, दूसरे देश को किसी भी प्रकार की भौतिक क्षति से बचाएगा।
- बाढ़ या अन्य अतिरिक्त पानी के निर्वहन के लिए नदियों के प्राकृतिक चैनलों का उपयोग निःशुल्क होगा और भारत या पाकिस्तान के किसी सीमा के अधीन नहीं होगा और किसी भी देश को होने वाले किसी भी नुकसान के संबंध में एक- दूसरे के खिलाफ दावा करने का कोई अधिकार नहीं होगा।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-
प्रश्न- सिंधु जल समझौता पर किन लोगों ने हस्ताक्षर किया था-
- जवाहरलाल नेहरू
- डब्लू, ए. बी. इलिफ
- मोहम्मद अली जिन्ना
नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए।
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1,2, और 3
उत्तर- (a)
मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-
प्रश्न- सिंधु जल संधि की जटिलता और उसके समाधान के लिए तटस्थ विशेषज्ञ द्वारा वियना में बुलाई गई दोनों देशों की बैठक में निकले परिणाम की चर्चा करें।
|