(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: बुनियादी ढांचा- ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
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संदर्भ
भारत में सड़क परिवहन क्षेत्र में होने वाली ऊर्जा खपत में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है और इससे कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में भी वृद्धि हुई है। हालाँकि, देश की आबादी के लिहाज़ से सड़क पर चलने वाली गाड़ियों का अनुपात कम है किंतु लगातार बढती वाहनों की संख्या के कारण आने वाले समय में कुल कार्बन उत्सर्जन में सड़क परिवहन क्षेत्र की हिस्सेदारी में वृद्धि हो सकती है। ऐसे में भारत के नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए परिवहन क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने के लिए नीतियों व संस्थागत ढांचे को मज़बूत करना आवश्यक है।
भारत में परिवहन क्षेत्र से संबंधित आँकड़े
- भारत में परिवहन क्षेत्र में कुल उर्जा खपत में सड़क परिवहन की हिस्सेदारी 92% है, जबकि रेल परिवहन एवं घरेलू विमानन क्षेत्र की हिस्सेदारी चार-चार प्रतिशत है।
- आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 तक देश में होने वाली कुल ऊर्जा खपत में सड़क परिवहन क्षेत्र की हिस्सेदारी 14% थी।
- सड़क परिवहन क्षेत्र अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मुख्यत: पेट्रोल एवं डीज़ल पर निर्भर है।
- सड़क पर चलने वाले 95% वाहनों को पेट्रोल व डीज़ल से ही चलाया जाता है। भारत में सर्वाधिक डीज़ल व पेट्रोल का उपभोग सड़क पर वाहनों को चलाने में किया जाता है।
- वर्ष 2021 में देश में कुल तेल की खपत में 44% हिस्सेदारी इसी क्षेत्र की थी।
- भारत में सड़क परिवहन क्षेत्र में प्राकृतिक गैस, बिजली एवं जैव-ईंधन जैसे वैकल्पिक ईंधनों की हिस्सेदारी बहुत कम है।
- भारत में वर्ष 2000 के बाद से सड़क परिवहन क्षेत्र की ऊर्जा मांग और CO2 उत्सर्जन दोनों ही तीन गुना से ज़्यादा हो गया है।
- इस बढ़ोतरी में माल ढुलाई करने वाले ट्रकों और यात्री कारों दोनों की ही लगभग एक-तिहाई यानी बराबर भूमिका है।
- वर्ष 2021 में भारत में सड़क परिवहन में कुल उपभोग किए जाने वाले ईंधन और कुल कार्बन उत्सर्जन में ट्रकों की हिस्सेदारी 38% थी, जबकि कारों की हिस्सेदारी 25% थी।
- कुल मिलाकर सड़क परिवहन क्षेत्र से होने वाले प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन में वर्ष 2000 के बाद से 2.5% की बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है।
परिवहन क्षेत्र में हरित ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लाभ
- सड़क परिवहन क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन के स्थान पर हरित ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के निम्नवत लाभ हैं :
- कार्बन उत्सर्जन में कमी
- प्रदूषण नियंत्रण
- बेहतर लॉजिस्टिक्स प्रबंधन
- कामकाज की बेहतर परिस्थितियां
- सडकों पर गाड़ियों की संख्या में कमी
- ऊर्जा की बचत
- नेट जीरो लक्ष्य प्राप्ति में तेजी
- भारत को वर्ष 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए परिवहन क्षेत्र को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त करना और हरित ऊर्जा की ओर ले जाना अत्यधिक आवश्यक है।
ऊर्जा परिवर्तन की राह में चुनौतियाँ
सामाजिक चुनौतियाँ
- भारत में कोयला खनन क्षेत्र पर अत्यधिक आबादी निर्भर है और कोयला क्षेत्र देश की जी.डी.पी. में 2% का योगदान देता है और 12 लाख रोज़गार उपलब्ध कराता है।
- ऐसे में स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर परिवर्तन बड़ी संख्या में लोगों का रोजगार प्रभावित कर सकता है।
- हरित ऊर्जा की तरफ जाने के लिए ‘न्यायसंगत परिवर्तन’ फ्रेमवर्क की ज़रूरत है, ताकि इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को कम किया जा सके।
वैकल्पिक ईंधन संबंधी चुनौतियाँ
- भारत में इथेनॉल उत्पादन में कच्चे माल की उपलब्धता और ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी चुनौतियां शामिल हैं
- मेथनॉल उत्पादन में होने वाला भारी-भरकम ख़र्च और वाहनों में बदलाव करने की अधिक लागत इसके उपयोग को बढ़ावा देने में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है।
- दूसरे वैकल्पिक ईंधनों अर्थात बिजली एवं हाइड्रोजन के समक्ष भी कई तकनीकी व इंफ्रास्ट्रक्चर से संबंधित एवं आर्थिक चुनौतियां निम्नवत हैं :
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- इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EVs) की चार्जिंग से संबंधित सुविधाओं के बुनियादी ढांचे का आभाव
- हाइड्रोजन से चलने वाली गाड़ियों के लिए व्यापक स्तर पर ईंधन भरने से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता
- हाइड्रोजन उत्पादन, वितरण एवं भंडारण से संबंधित चुनौतियां
बुनियादी ढांचा एवं वित्त से जुड़ी चुनौतियां
- भारत में कार्बन मुक्त उत्सर्जन वाले सड़क परिवहन को बुनियादी ढांचे की कमी एवं वित्तीय बाधाएं और ज़्यादा मुश्किल बनाती हैं।
- भारत में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों और बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता होगी।
- भूमि अधिग्रहण के मामलों में पेचीदा विनियामक ढांचा और प्रशासन की तरफ से उत्पन्न होने वाली समस्याओं की वजह से प्राय: परियोजनाओं के क्रियान्वयन में देरी होती है।
नीतिगत, संस्थागत एवं विनियामक समर्थन
भारत में हरित ऊर्जा की ओर परिवर्तन को लेकर स्पष्ट प्रशासनिक व्यवस्था और विनियामक ढाँचा मौज़ूद नहीं हैं। इसकी वजह से समन्वित नीतिगत प्रयासों एवं संस्थागत सहयोग में रुकावटें पैदा होती हैं। इसके लिए स्पष्ट नीतियां एवं क़ानूनी फ्रेमवर्क की स्थापना आवश्यक हैं।
परिवहन क्षेत्र को कार्बन उत्सर्जन मुक्त करने के लिए आवश्यक क़दम
- आंकड़ों की उपलब्धता और उनका विश्लेषण
- अलग-अलग क्षेत्रों की सस्याओं की पहचान एवं समाधान
- नीतिगत, संस्थागत एवं क़ानूनी समाधान
- सफल पहलों से सबक लेना
- क्षमता निर्माण और संस्थागत फ्रेमवर्क
- तकनीक़ी कौशल को बढ़ाव देना
- निवेश को बढ़ावा देना
- निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन
- विनियामक ढांचे को स्पष्ट एवं मजबूत करना
- ईंधन मानकों का बेहतर क्रियान्वयन
- सरकारी ख़रीद में इलेक्ट्रिक वाहनों को प्राथमिकता
- ऊर्जा परिवर्तन, परिवहन एवं ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी नीतियों के मध्य एकीकरण