(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारतीय राज्यतंत्र और शासन)
(मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र- 2: संघीय ढाँचे से सम्बंधित विषय एवं चुनौतियाँ, केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति सम्वेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति सम्वेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय)
पृष्ठभूमि
हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति के एक आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है, जिसके अंतर्गत असम के जिलों में इनर लाइन परमिट (ILP) प्रणाली को लागू करने की माँग की गई थी। यह याचिका असम के छात्र संगठनों ने दायर की थी। विगत वर्ष राष्ट्रपति के एक आदेश के जरिये बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर नियमन,1873 में संशोधन किया गया था जिसके तहत मणिपुर में इनर लाइन परमिट लागू कर दिया गया था लेकिन असम में इसे लागू नहीं किया गया था। जिसकी वजह से असम को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सी.ए.ए.) से संरक्षण नहीं मिल सका था।
इनर लाइन परमिट
- ‘इनर लाइन परमिट’ की अवधारणा भारत में औपनिवेशिक शासकों द्वारा विकसित की गई थी। इस व्यवस्था द्वारा पूर्वोत्तर में जनजातीय आबादी वाले पहाड़ी क्षेत्रों को मैदानी क्षेत्रों से अलग किया गया है।
- इन क्षेत्रों में प्रवेश करने और किसी भी समयावधि तक ठहरने के लिये भारत के अन्य क्षेत्रों के नागरिकों सहित बाहरी लोगों को भी एक विशेष परमिट की आवश्यकता होती है। इसी को ‘इनर लाइन परमिट’ (ILP) व्यवस्था कहा जाता है। साथ ही, भूमि, रोज़गार और अन्य सुविधाओं के सम्बंध में स्थानीय लोगों को संरक्षण और अन्य सुविधाएँ मिलती हैं।
- आई.एल.पी. व्यवस्था अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम राज्यों में लागू होती है और पिछले वर्ष ही इस व्यवस्था में मणिपुर राज्य को जोड़ा गया है। दिसम्बर 2019 में ही आई.एल.पी. व्यवस्था को नागालैंड के दीमापुर में भी लागू किया गया था। नागालैंड में वाणिज्यिक केंद्र के रूप में जाना जाने वाला दीमापुर ही केवल एक ऐसा जिला था, जो आई.एल.पी. व्यवस्था के अंतर्गत नहीं आता था।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम,2019
- नागरिकता (संशोधन) विधेयक द्वारा नागरिकता अधिनियम,1955 में संशोधन किया गया है। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम,2019 के अनुसार, 31 दिसम्बर, 2014 या उससे पहले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों एवं ईसाइयों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा और उनके द्वारा आवेदन किये जाने पर भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी।
- असम, मेघालय और त्रिपुरा का एक बड़ा हिस्सा छठवीं अनुसूची के क्षेत्रों के अंतर्गत होने के कारण विवादास्पद बिल के दायरे से बाहर हो जाएंगे।
- मौजूदा अधिनियम किसी अप्रवासी को नागरिकता के लिये आवेदन करने की अनुमति तभी देता है यदि वह आवेदन करने से ठीक पहले 12 महीने के लिये भारत में रहा हो। साथ ही, पिछले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में रहा हो।
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आई.एल.पी. का विकास
- यह अवधारणा बंगाल पूर्वी सीमांत नियमन अधिनियम (Bengal Eastern Frontier Regulation Act (BEFR)),1873 की देन है।
- संजीब बरुआ की पुस्तक ‘इंडिया अगेंस्ट इटसेल्फ: असम एंड द पॉलिटिक्स ऑफ नेशनैलिटी’ के अनुसार, इस प्रकार पहली बार किसी क्षेत्र में ‘निषेध की नीति’ ब्रिटिश उद्यमियों द्वारा की गई नई भूमियों में बेतरतीब विस्तार की प्रतिक्रिया का परिणाम थी, जिसने पहाड़ी जनजातियों के ब्रिटिशों के साथ राजनीतिक सम्बंध को खतरे में डाल दिया था।
- बी.ई.एफ.आर. किसी बाहरी व्यक्ति (ब्रिटिशों के अधीन प्रजा या विदेशी नागरिक) को बिना पास के इनर लाइन से परे क्षेत्र में प्रवेश करने और वहाँ जमीन की खरीद करने को प्रतिबंधित करता था।
- दूसरी ओर, इनर लाइन व्यवस्था का उद्देश्य आदिवासी समुदायों से अंग्रेजों के व्यावसायिक हितों को सुरक्षित करना भी था।
स्वतंत्रता के बाद बदलाव और वर्तमान स्थिति
- स्वतंत्रता के बाद, भारत सरकार ने ‘ब्रिटिश प्रजा’ को ‘भारत के नागरिक’ शब्द से प्रतिस्थापित कर दिया है।
- गृह मंत्रालय द्वारा राज्य सभा में बताया गया है कि इनर लाइन परमिट प्रणाली का मुख्य उद्देश्य उन राज्यों में अन्य भारतीय नागरिकों को बसने (Settlement) से रोकना है, ताकि स्थानीय/आदिवासी आबादी की सुरक्षा की जा सके।
सी.ए.ए. और आई.एल.पी.
- सी.ए.ए. द्वारा भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के इच्छुक तीन पड़ोसी देशों के प्रवासियों को पात्रता मानदंडों में कुछ छूट प्रदान की गई है, परंतु इनर लाइन परमिट प्रणाली द्वारा संरक्षित क्षेत्रों में सी.ए.ए. सम्बंधी प्रावधान लागू नहीं होते हैं।
- इस अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के बीच राष्ट्रपति द्वारा जारी किये गए ‘कानूनों के अनुकूलन (संशोधन) आदेश,2019’ द्वारा बी.ई.एफ़.आर,1873 में संशोधन करके आई.एल.पी. को मणिपुर के कुछ हिस्सों और नागालैंड में विस्तारित कर दिया गया है।
- असम समझौते में 24 मार्च 1971 की तारीख को कट ऑफ माना गया था और तय किया गया था कि इस समय तक असम में आए हुए लोग ही यहाँ के नागरिक माने जाएंगे।
- बीते वर्ष पूर्ण हुई एन.आर.सी. की प्रक्रिया का मुख्य बिंदु भी यही कट ऑफ दिनांक है। इसके बाद राज्य में आए लोगों को ‘विदेशी’ माना जाएगा। नागरिकता कानून पर हो रहा विरोध भी इसी बात को लेकर है।
- असम में आई.एल.पी. व्यवस्था लागू करने की माँग लम्बे समय से चली आ रही है। नागरिकता संशोधन कानून से संरक्षण के लिये छात्र संगठन राज्य में आई.एल.पी. व्यवस्था लागू करने की माँग पुनः करने लगे हैं।
- इसके विरोध में तर्क दिया गया कि यह अधिनियम अन्य देशों के अवैध प्रवासियों को यहाँ बसाकर मूल लोगों और उनकी भाषा को विलुप्तप्राय बना देगा, साथ ही उनकी आजीविका पर भी संकट खड़ा हो जाएगा
याचिका के प्रमुख बिंदु और तर्क
- असम के दो छात्र संगठनों ने राष्ट्रपति के आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी।
- यह माँग की गई कि इस आदेश के द्वारा असम के जिलों में भी इनर लाइन परमिट प्रणाली को लागू किया जाए तथा सी.ए.ए. के माध्यम से असम में नए लोगों को नागरिकता न प्रदान की जाए।
- बी.ई.एफ़.आर. के मूल प्रावधानों में तत्कालीन असम के कामरूप, दारांग, नौगांव (तत्कालीन नगांव), सिबसागर, लखीमपुर और कछार जिले शामिल थे। याचिका में कहा गया है कि इस आदेश के द्वारा आई.एल.पी. को लागू करने के लिये असम सरकार को प्राप्त अनुमति की शक्ति (Permissive Power) को छीन लिया गया है।
- याचिकाकर्त्ताओं के अनुसार, राष्ट्रपति ने संशोधन का यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 372 (2) के तहत जारी किया है जबकि अनुच्छेद 372 (3) के तहत संविधान लागू होने की तारीख से तीन वर्ष तक अर्थात सन् 1953 तक ही उन्हें यह शक्ति प्राप्त थी।
- ज्ञातव्य है कि असम में स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा दशकों से प्रभावी रहा है, जिसके लिये 80 के दशक में कई वर्षों तक चले असम आंदोलन के परिणामस्वरूप असम समझौता हुआ था।