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ईरान का परमाणु कार्यक्रम एवं भारत का दृष्टिकोण

(प्रारंभिक परीक्षा: अंतर्राष्ट्रीय समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र- 3: भारत के हितों पर विकसित एवं विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय)

सन्दर्भ 

9 अप्रैल, 2025 को अमेरिका ने ईरान के साथ होने वाली परमाणु वार्ता से पहले ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर नए प्रतिबंध लगा दिए हैं। ईरान द्वारा परमाणु हथियारों का विकास मध्य पूर्व के साथ-साथ समग्र वैश्विक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बन सकता है।

ईरान के परमाणु विकास कार्यक्रम के बारे में

शुरुआत 

वर्ष 1957 में ईरान एवं अमेरिका ने एक परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किया, जिसके तहत ईरान को परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकी प्राप्त करने का अवसर मिला।

ऐतिहासिक विकास क्रम

  • वर्ष 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान ने परमाणु ऊर्जा को राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में देखा। 
  • 2000 के दशक के प्रारंभ में ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम में यूरेनियम संवर्धन (Enrichment) को प्रमुखता दी। 
  • वर्ष 2006 में ईरान ने पुष्टि की कि उसने नतांज़ स्थित संयंत्र में यूरेनियम संवर्धन कार्य शुरू कर दिया है।

ईरान पर प्रतिबंध

  • ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर वैश्विक चिंताएँ व विवाद तब और बढ़ गए जब ईरान ने संयुक्त राष्ट्र के परमाणु निगरानी संस्थान ‘अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी’ (IAEA) के निरीक्षण को अस्वीकार कर दिया।
  • पश्चिमी देशों एवं संयुक्त राष्ट्र ने ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाए, ताकि वह अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करे।

ईरान का रुख

ईरान ने इन प्रतिबंधों को नकारते हुए अपने कार्यक्रम को जारी रखा, जबकि पश्चिमी देशों ने कड़ा दबाव बनाने की कोशिश की कि ईरान केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु प्रौद्योगिकी का उपयोग करें।

2015 का परमाणु समझौता (JCPOA) 

  • वर्ष 2015 में ईरान और P5+1 देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन एवं जर्मनी) के बीच एक महत्वपूर्ण परमाणु समझौता हुआ, जिसे जॉइंट कॉम्प्रिहेन्सिव एक्शन प्लान (JCPOA) कहा गया।
  • इस समझौते के तहत ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने और यूरेनियम संवर्धन की गतिविधियों को घटाने पर सहमति दी, जिसके बदले में आर्थिक प्रतिबंधों में ढील दी गई।
  • हालाँकि, वर्ष 2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एकतरफा तरीके से इस समझौते से अमेरिका को बाहर कर लिया, जिसके बाद ईरान ने फिर से अपनी परमाणु गतिविधियाँ बढ़ानी शुरू कर दीं।

खतरे की स्थिति 

  • वर्ष 2020 एवं 2021 में ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम में तेजी से वृद्धि की और यूरेनियम संवर्धन स्तर को 20% से 60% तक बढ़ा दिया जो परमाणु हथियार बनाने के लिए आवश्यक संवर्धन स्तर से काफी करीब था। 
  • यह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए एक बड़ा आघात था और ईरान पर कड़े आर्थिक एवं कूटनीतिक दबाव बनाने के प्रयास तेज़ हो गए।

ईरान के परमाणु हथियार कार्यक्रम से खतरें

  • पारंपरिक शक्ति संतुलन में बदलाव : ईरान के परमाणु हथियार प्राप्त करने से वह मध्य पूर्व में एक प्रमुख सैन्य शक्ति बन जाएगा, जिससे क्षेत्रीय शक्ति संतुलन बदल जाएगा। 
  • ईरान के प्रॉक्सी युद्धों का जोखिम : इससे ईरान प्रॉक्सी समूहों (जैसे- हिज़बुल्लाह, हौती विद्रोही) को अधिक प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे अमेरिका एवं उसके सहयोगियों (जैसे- इजराइल) के लिए सुरक्षा खतरे बढ़ सकते हैं।
  • परमाणु प्रसार का खतरा : ईरान का परमाणु हथियार प्राप्त करना न केवल मध्य पूर्व में बल्कि पूरी दुनिया में परमाणु प्रसार को बढ़ावा दे सकता है।
  • एन.पी.टी. (न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफरेशन ट्रीटी) पर प्रभाव : ईरान के परमाणु हथियारों के विकास से एन.पी.टी. की ताकत कमजोर हो सकती है क्योंकि यह परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के वैश्विक प्रयासों के खिलाफ होगा।

भारत का दृष्टिकोण

  • भारत के पश्चिमी पड़ोसी देश में स्थित होने और दोनों देशों के बीच ऊर्जा सहयोग एवं व्यापारिक संबंध मजबूत होने के कारण भारत के लिए ईरान का परमाणु कार्यक्रम गंभीर चिंता का विषय है।
  • अगर ईरान के पास परमाणु हथियार होते हैं तो यह भारत के लिए सुरक्षा एवं कूटनीतिक दृष्टिकोण से एक नई चुनौती हो सकती है।
  • भारत को इस पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कठोर रुख अपनाना होगा और ईरान को यह समझाना होगा कि परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का पालन करना ही वैश्विक शांति व सुरक्षा के लिए सर्वोत्तम है।
  • भारत को इस मुद्दे पर संयम के साथ कूटनीतिक प्रयास करने होंगे और यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी परिस्थिति में परमाणु हथियारों का प्रसार ना हो।

निष्कर्ष

ईरान का परमाणु विकास कार्यक्रम एक संवेदनशील और विवादास्पद मुद्दा है, जो न केवल मध्य-पूर्व बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए भी खतरे का कारण बन सकता है। वैश्विक समुदाय को ईरान के परमाणु हथियारों के विकास पर निगरानी रखनी चाहिए और इसे रोकने के लिए कूटनीतिक, आर्थिक और अन्य उपायों का पालन करना चाहिए।

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