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इस्लामोफोबिया और भारत

चर्चा में क्यों 

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिये 15 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित करने के लिये एक प्रस्ताव पारित किया है। इस संदर्भ में भारत ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि धार्मिक भय (Religiophobia) के समकालीन रूप में अन्य धर्म विरोधी (विशेष रूप से हिंदू, बौद्ध और सिख) फोबिया में भी वृद्धि हो रही है।  

प्रस्ताव

यह प्रस्ताव पाकिस्तान के राजदूत मुनीर अकरम द्वारा ‘कल्चर ऑफ पीस एजेंडा’ के तहत लाया गया था। इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) द्वारा पेश किया गया यह प्रस्ताव अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, चीन, मिस्र, इंडोनेशिया, ईरान, इराक, जॉर्डन, कज़ाकिस्तान, कुवैत, किर्गिस्तान, लेबनान, लीबिया, मलेशिया, मालदीव, माली, पाकिस्तान, कतर, सऊदी अरब, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, युगांडा, संयुक्त अरब अमीरात, उज्बेकिस्तान और यमन द्वारा सह-प्रायोजित था।

विभिन्न राष्ट्रों की प्रतिक्रिया

  • भारत ने ऐसी आशा व्यक्त की है कि यह संकल्प कोई गलत मिसाल प्रस्तुत नहीं करेगा, जिससे चुनिंदा धर्मों के आधार पर फोबिया आधारित अन्य प्रस्तावों का जन्म हो और संयुक्त राष्ट्र कई धार्मिक शिविरों में विभाजित हो। इसके अतिरिक्त, भारत ने यहूदी-विरोधी, ईसाई-विरोधी या इस्लामोफोबिया से प्रेरित सभी कृत्यों की निंदा भी की है।
  • फ्रांस का मानना है कि इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस निर्धारित कर संकल्प इस चिंता का जवाब नहीं देता है कि ‘सभी देश भेदभाव के सभी रूपों के विरुद्ध लड़ने के लिये एक मंच साझा करें’। प्रस्तुत संकल्प ने धर्म या विश्वास के आधार पर भेदभाव के खिलाफ लड़ने के दृढ़ संकल्प के संबंध में कई कठिनाइयाँ उजागर कर दी हैं।

इस्लामोफोबिया

  • इस्लामोफोबिया सामान्य रूप से इस्लाम या मुस्लिम धर्म के प्रति भय, घृणा या पूर्वाग्रह है, खासकर जब इसे भू-राजनीतिक बल या आतंकवाद के स्रोत के रूप में देखा जाता है।
  • विदित है कि ‘इस्लामोफोबिया’ शब्द की अंतर्राष्ट्रीय कानून में कोई सहमत परिभाषा नहीं दी गई है, जबकि धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता को परिभाषित किया गया है।
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