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इसरो का अंतरिक्ष मलबा प्रबंधन

(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव।)

संदर्भ

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा निम्न पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit) में बढ़ते निष्क्रिय उपग्रहों, छोड़े गए रॉकेट चरणों सहित अंतरिक्ष मलबे के प्रबंधन के लिये कई महत्त्वपूर्ण प्रयास किये जा रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • इसरो अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति (Inter-Agency Space Debris Coordination Committee : IADC) का एक सक्रिय सदस्य है। आई.ए.डी.सी. का उद्देश्य सदस्य अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच अंतरिक्ष मलबे अनुसंधान गतिविधियों के बारे में जानकारी का आदान-प्रदान करना, अंतरिक्ष मलबे अनुसंधान में सहयोग के अवसरों को सुविधाजनक बनाना, सहकारी गतिविधियों की प्रगति की समीक्षा करना और मलबे को कम करने के विकल्पों की पहचान करना है।
  • अंतरिक्ष पर्यावरणीय खतरों से भारतीय अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये ‘इसरो सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टेनेबल स्पेस ऑपरेशंस मैनेजमेंट’ (IS4OM) को लॉन्च किया गया है।  

अंतरिक्ष मलबे के निपटान के प्रयास

  • इसरो ने सक्रिय मलबे को हटाने (Active Debris Removal : ADR) के लिये आवश्यक व्यवहार्यता और प्रौद्योगिकियों का अध्ययन करने हेतु कई अनुसंधान गतिविधियाँ शुरू की हैं।
  • अंतरिक्ष मलबे से संबंधित गतिविधियों को क्रियान्वित करने और अंतरिक्ष मलबे के टक्कर के खतरों से अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा के लिये बेंगलुरु में एक समर्पित अंतरिक्ष स्थिति जागरूकता नियंत्रण केंद्र (Space Situational Awareness Control Centre) स्थापित किया गया है।
  • इसरो ने अंतरिक्ष मलबे से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिये अपने मुख्यालय में निदेशालय अंतरिक्ष स्थिति जागरूकता और प्रबंधन (Directorate Space Situational Awareness and Management) स्थापित किया है।
  • इसरो अंतरिक्ष मलबे को कम करने के लिये सेल्फ-ईटिंग रॉकेट और सेल्फ-वैनिंशिंग सैटेलाइट जैसी भविष्य की तकनीकों पर भी कार्य कर रहा है। 

सेल्फ-ईटिंग-रॉकेट और वैनिशिंग सैटेलाइट

सेल्फ-ईटिंग-रॉकेट  : वर्तमान में इसरो के रॉकेट के कुछ हिस्से लॉन्च के बाद समुद्र में गिर जाते हैं या अंतरिक्ष मलबे बन जाते हैं। अंतरिक्ष मलबे में कमी के उद्देश्य से इसरो एक ऐसी तकनीक पर कार्य कर रहा है जिसमें रॉकेट प्रभावी रूप से 'स्वयं को नष्ट कर देंगे' ताकि समुद्र में कोई कचरा न गिरे और न ही अंतरिक्ष में कोई मलबा बचे। 

वैनिशिंग सैटेलाइट : अंतरिक्ष मलबे को और कम करने के लिये इसरो वैनिशिंग सैटेलाइट पर भी कार्य कर रहा है। इस तकनीक में उपग्रह को उसके जीवनकाल के पश्चात् एक 'किल-बटन' के माध्यम से उसकी कक्षा में जलाकर नष्ट कर दिया जाएगा।

भारत की नेत्र परियोजना

  • वर्ष 2019 में इसरो द्वारा भारतीय उपग्रहों को मलबे एवं अन्य खतरों से सुरक्षित रखने के उद्देश्य से ‘नेत्र परियोजना’ (Network for Space Objects Tracking and Analysis : NETRA Project) को लॉन्च किया गया। यह एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning System) है।
  • इस परियोजना के अंतर्गत भारत के विभिन्न स्थानों पर रडार, टेलीस्कोप, नियंत्रण केंद्र एवं डाटा प्रोसेसिंग इकाइयों को स्थापित किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य छोट-से-छोटे मलबे की ट्रैकिंग सुविधाओं को पर्याप्त शक्तिशाली बनाना है। इन्हें स्वदेशी रूप से डिजाइन एवं निर्मित किया जा रहा है।
  • इसी संदर्भ में, प्रभावी निगरानी एवं ट्रैकिंग नेटवर्क स्थापित करने के भाग के रूप में 1,500 किमी. दूरी के साथ अंतरिक्ष मलबे पर नज़र रखने वाला एक रडार और एक ऑप्टिकल टेलीस्कोप स्थापित किया जा रहा है। यह 10 सेमी. या उससे अधिक आकार की वस्तुओं का पता लगाने और उन पर निगरानी रखने में सक्षम होगा।

क्या है अंतरिक्ष मलबा 

  • अंतरिक्ष मलबा, पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली उन कृत्रिम सामग्रियों को कहते है, जो वर्तमान में कार्यात्मक स्थिति में नहीं हैं। इसे अंतरिक्ष कबाड़ या कक्षीय मलबा या स्पेस जंक भी कहा जाता है। अधिकांश अंतरिक्ष मलबें निम्न पृथ्वी कक्षा में पाए जाते हैं। 
  • मानव द्वारा पृथ्वी की कक्षा में भेजे गए उपग्रह निष्क्रिय स्थिति में छोटे-छोटे टुकड़ों में परिवर्तित होकर पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगाते रहते हैं। नासा के अनुसार, निम्न पृथ्वी कक्षा में 15,700 मील प्रति घंटे की गति से 27,000 से अधिक मलबे के टुकड़े चक्कर लगा रहे हैं। 

विभिन्न देशों का अंतरिक्ष मलबा

  • अमेरिका के पास सक्रिय और निष्क्रिय 4,144 अंतरिक्ष यान और 5,126 अंतरिक्ष मलबे की वस्तुएं हैं।
  • चीन के पास सक्रिय और निष्क्रिय 517 अंतरिक्ष यान और 3,854 अंतरिक्ष मलबे की वस्तुएं हैं।
  • भारत के पास 103 सक्रिय या निष्क्रिय अंतरिक्ष यान एवं 114 अंतरिक्ष मलबे की वस्तुएं हैं। इस प्रकार, भारत के कुल 217 अंतरिक्ष पिंड पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं। 

अंतरिक्ष मलबे से खतरा

  • अंतरिक्ष में अत्यधिक तीव्र गति से घूमने वाले ये टुकड़े अन्य अंतरिक्ष संपत्तियों और कार्यात्मक उपग्रहों के लिये खतरा माने जाते हैं। विदित है कि मिलीमीटर आकार के मलबे से होने वाली टक्कर भी उपग्रहों को नष्ट कर सकती है। 
  • मुक्त अवस्था में अंतरिक्ष मलबा परिचालन एवं संचार उपग्रहों के लिये खतरा उत्पन्न कर सकता है। इसके टकराने से उपग्रह निष्क्रिय हो सकते हैं। इसे ‘केसलर सिंड्रोम’ के रूप में जाना जाता है।
  • अंतरिक्ष में घूम रहा यह मलबा न केवल उपग्रहों की कक्षा में बल्कि हमारे वातावरण के लिये भी बहुत खतरनाक हो सकते हैं। यदि कोई बड़ा टुकड़ा पूरी तरह से नष्ट हुए बिना हमारे वायुमंडल में प्रवेश कर जाए तो यह पृथ्वी को क्षति पहुँचा सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रयास

अंतरिक्ष मलबों से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिये यू.के. की ‘टेकडेमोसैट प्रणाली’ का प्रक्षेपण, जापान द्वारा ‘एंड ऑफ लाइफ सर्विसेज बाई एस्ट्रोस्केल डिमोंस्ट्रेशन’ (Elsa-D) का परीक्षण’, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की ‘क्लियरस्पेस-1 परियोजना’, ‘नेट कैप्चर’ और ‘हार्पून कैप्चर’ इत्यादि शामिल हैं।

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