(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1 : भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ, भारत की विविधता, महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय)
संदर्भ
हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से मौजूदा पत्नी या पत्नियों की पूर्व सहमति के बिना किसी मुस्लिम पति द्वारा द्विविवाह या बहुविवाह को अवैध घोषित करने वाली याचिका पर जवाब देने को कहा है।
हालिया घटनाक्रम
- इस याचिका में मुस्लिमों के बीच द्विविवाह या बहुविवाह को विनियमित करने के लिये केंद्र सरकार से कानून बनाने एवं इस संबंध में दिशा-निर्देश देने की मांग की गई है।
- याचिकाकर्ता ने मुस्लिम विवाह के अनिवार्य पंजीकरण के लिये कानून बनाने की भी मांग की। साथ ही, यह भी कहा की मुस्लिम पतियों द्वारा द्वि-विवाह या बहुविवाह की अनुमति केवल असाधारण परिस्थितियों में ही शरीयत कानूनों के तहत दी जानी चाहिये और इस तरह के विवाह को कड़ाई से विनियमित किया जाना चाहिये।
- शरिया कानून में भी दूसरे विवाह की अनुमति विशेष परिस्थितियों में ही दी जाती है और मौजूदा पत्नी की सहमति के बाद पुरुष दोबारा विवाह कर सकता है।
- याची का तर्क है कि बहुविवाह की अनुमति केवल एक सामाजिक कर्तव्य एवं धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये ही दी गई थी। कुरान के अनुसार बहुविवाह करने वाले पुरुषों पर प्रत्येक पत्नी के साथ समान व्यवहार करने का दायित्व है।
भारत में बहुविवाह
- बहुविवाह एक ऐसी प्रथा है, जिसमें कोई व्यक्ति एक से अधिक विवाह (पति या पत्नी) करता है। प्राचीन भारत में बहुविवाह कुलीन वर्गों एवं सम्राटों के मध्य प्रचलित एक सामान्य प्रथा थी।
- भारतीय समाज में बहुविवाह लंबे समय से प्रचलित है। कुछ अपवादों को छोड़कर वर्तमान में भारत में बहुविवाह गैरकानूनी है।
- वर्तमान में भारत में मुस्लिम समुदाय को छोड़कर सभी धर्मों में बहुविवाह प्रतिबंधित है। मुस्लिम समुदाय में 4 पत्नियों की सीमा तक बहुविवाह प्रचलित है जबकि भारत में बहुपतित्व प्रथा कानूनी तौर पर पूरी तरह से प्रतिबंधित है।
वैधानिक प्रावधान
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत बहुविवाह को अवैध घोषित करते हुए इसे अपराध की श्रेणी में शामिल किया गया है।
- इसके तहत हिंदू समुदाय में पहले पति/पत्नी के जीवित रहते हुए यदि कोई दूसरा विवाह करता/करती है तो उसे अपराध माना जाएगा।
- ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा व्याख्यायित मुस्लिम पर्सनल लॉ, 1937 के तहत बहुविवाह निषिद्ध नहीं है क्योंकि इसे एक धार्मिक प्रथा के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस कारण वर्तमान में भी यह मुस्लिम समुदाय में प्रचलित है।
- ‘गोवा नागरिक संहिता’ में मुस्लिम समुदाय सहित किसी धर्म या सुमदाय को ‘द्विविवाह’ या ‘बहुविवाह’ की मान्यता नहीं प्रदान की गयी है। हालाँकि, किसी हिंदू पुरुष की पत्नी द्वारा 21 वर्ष की आयु तक गर्भधारण न कर पाने या 30 वर्ष की आयु तक किसी नर-संतान को जन्म न दे पाने की स्थिति में उस हिंदू पुरुष को एक बार पुन: विवाह की अनुमति दी गयी है।
बहुविवाह का सामाजिक प्रभाव
- यह प्रथा अधिकाशत: महिलाओं के लिये अपमानजनक है, जो उनके मूल अधिकारों को भी सीमित करती है।
- इसके कारण महिलाओं को घरेलू हिंसा एवं भेदभाव का सामना करना पड़ता है। साथ ही, इसके माध्यम से संपत्ति संबंधी विवाद उत्पन्न होता है।
- इससे विभिन्न संक्रामक रोगों (जैसे एड्स आदि) का भी खतरा बढ़ जाता है। बहुविवाह के कारण उत्पन्न विवाद का प्रभाव बच्चों की शिक्षा और जीवन पर पड़ता है।
निष्कर्ष
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहाँ सभी धर्मों को एकसमान दृष्टि से देखा जाता है। चूँकि बहुविवाह की प्रथा बड़े पैमाने पर महिलाओं के शोषण का कारण बनती है और समाज में नकारात्मकता का प्रसार करती है अत: संवैधानिक नैतिकता की भावना के विरुद्ध इसे किसी भी धार्मिक प्रथा की आड़ में संरक्षित नहीं किया जा सकता है।