(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय) |
संदर्भ
मध्य प्रदेश में इंदौर के बाद भोपाल प्रशासन ने भी सभी सार्वजनिक स्थानों पर भीख मांगने (भिक्षावृत्ति) पर प्रतिबंध लगा दिया है।
क्या है भिक्षावृत्ति
भिक्षावृत्ति में प्राय: सार्वजनिक स्थानों पर प्राय: अपरिचितों से धन या अन्य प्रकार की सहायता मांगना शामिल है। भिक्षावृत्ति में सड़क, पार्क, चौराहे, धार्मिक स्थल से लेकर सामान्य स्थलों तक बच्चे, वृद्ध, दिव्यांग, महिला एवं पुरुष शामिल हैं।
भिक्षावृत्ति का कारण
आर्थिक तंगी
गरीबी, बेरोजगारी, निम्न मजदूरी एवं आय की हानि के कारण लोग भिक्षावृत्ति की ओर आकृष्ट होते हैं।
सामाजिक कारक
शिक्षा की कमी, सामाजिक सेवाओं तक सीमित पहुँच और सामाजिक बहिष्कार के कारण लोग भिक्षा मांगने के लिए मजबूर होते हैं।
दिव्यांगता
शारीरिक या मानसिक दिव्यांगता के कारण कार्य करने की अक्षमता भी लोगों को भिक्षावृत्ति के लिए मजबूर करती है।
प्राकृतिक आपदाएँ
बाढ़, भूकंप या सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं तथा क्षेत्रीय एवं नृजातीय संघर्ष के कारण लोगों को अपने मूल स्थान से विस्थापित होना पड़ता है तथा अपनी बुनियादी ज़रूरतों के लिए वे भिक्षावृत्ति के लिए मजबूर हो जाते हैं।
सांस्कृतिक पहलू
कुछ संस्कृतियों में भीख माँगना धार्मिक प्रथाओं का हिस्सा है जहाँ भिक्षु या भिक्षुणियाँ पारंपरिक रूप से भिक्षावृत्ति करते हैं।
मनोवैज्ञानिक कारक
- समाजशास्त्रीय अध्ययनों के अनुसार आलस्य एवं श्रम से विमुखता जैसे मनोवैज्ञानिक कारक भी कुछ व्यक्तियों को भीख मांगने के लिए प्रेरित करते हैं।
- आलोचकों का तर्क है कि सार्वजनिक रूप से भिक्षा देने से यह चक्र जारी रहता है जिससे सशक्तिकरण के बजाय निर्भरता की मानसिकता उत्पन्न होती है।
- उदाहरण के लिए, मुंबई के भारत जैन दुनिया के सबसे धनी भिखारी के रूप में पहचाने जाते हैं। कथित तौर पर वे प्रतिदिन लगभग ₹2,500 ($30) कमाते हैं और उन्होंने लगभग ₹7.5 करोड़ ($890,000) की कुल संपत्ति अर्जित की है।
भारत में भिक्षावृत्ति की स्थिति
- भारत में 400,000 से ज़्यादा नियमित भिखारी हैं। संगठित भिक्षावृत्ति गिरोहों ने इनके अभाव को एक आकर्षक व्यवसाय में बदल दिया है। ये गिरोह समाज के सबसे कमज़ोर लोगों को अपना शिकार बनाते हैं।
- भारत में भिखारियों की सर्वाधिक संख्या पश्चिम बंगाल में है। इसके बाद उत्तर प्रदेश एवं आंध्र प्रदेश का स्थान है।
- इन क्षेत्रों में भिखारियों का अधिक केंद्रित होना सामाजिक-आर्थिक कारकों के मिश्रण को दर्शाती है जिसमें गरीबी, ग्रामीण-शहरी प्रवास और सुलभ सहायता प्रणालियों की कमी शामिल है।
भारत में भिक्षावृत्ति से संबंधित मुद्दे
संगठित कार्टेल
भीख मांगने वाले गिरोह निर्धारित क्षेत्रों में काम करते हैं और अपने नियंत्रण वाले व्यक्तियों से दैनिक आय एकत्र करते हैं। इन कार्यों को जारी रखने के लिए प्राय: हिंसा एवं जबरदस्ती का सहारा लिया जाता है।
बाल शोषण
- भीख मांगने वाले बच्चे सर्वाधिक असुरक्षित होते हैं। वे स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होते हैं जिससे उनके बेहतर भविष्य की कोई उम्मीद नहीं रहती है। शिशुओं को प्राय: बीमार दिखाने के लिए नशीला पदार्थ दिया जाता है जबकि छोटे बच्चों को किराए पर दिया जाता है या उनका अपहरण कर लिया जाता है।
- ये संगठित प्रणालियाँ गरीबी के चक्र को जारी रखने के साथ-साथ बच्चों के लिए शिक्षा एवं अवसरों की कमी का भी कारक बनती हैं जिससे वे अभावग्रस्त जीवन में फँस जाते हैं।
भारत में भिक्षावृत्ति की समाप्ति के लिए प्रावधान
विधिक प्रावधान
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
- इंदौर एवं भोपाल में सार्वजनिक स्थानों पर भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध संबंधी आदेश भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 163 के तहत जारी किया गया है।
- इस आदेश ने सार्वजनिक स्थानों पर भीख मांगने (भिक्षावृत्ति) पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- यह कानून जिला मजिस्ट्रेट, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट या किसी अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट सहित अधिकारियों को ‘उपद्रव या आशंका वाले खतरे’ के त्वरित मामलों में आदेश जारी करने की शक्ति देता है।
- यह आदेश किसी भी व्यक्ति को किसी निश्चित कार्य से विरत रहने का निर्देश दे सकता है। यह किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों या किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में आने-जाने वाले लोगों पर लागू हो सकता है।
- इस आदेश के अनुसार लोक सेवक द्वारा घोषित आदेश की अवहेलना करने पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 223 के तहत कार्रवाई की जाएगी।
- BNSS कि धारा 163 के तहत कोई आदेश दो महीने से अधिक समय तक लागू नहीं रहता है, बशर्ते राज्य सरकार यह आवश्यक समझे कि आदेश छह महीने से अधिक अवधि तक लागू रहे।
बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगरी एक्ट, 1959
- भिक्षावृत्ति के खिलाफ पहला कानून बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगरी एक्ट, 1959 था। इसका प्रमुख आधार बंगाल वैग्रेंसी एक्ट, 1943 और कोचीन वैग्रेंसी एक्ट, 1945 था।
- इस अधिनियम को तत्कालीन बॉम्बे में बेसहारा व्यक्तियों, कुष्ठ रोगियों या मानसिक बीमारियों वाले लोगों को सार्वजनिक स्थानों से दूर रखने के लिए तैयार किया गया था।
- इस अधिनियम की धारा 10 एक मुख्य आयुक्त को ‘असाध्य रूप से असहाय भिखारियों’ को हिरासत में लेने का आदेश देने की शक्ति देती है जिसे ‘अनिश्चित काल तक’ हिरासत में रखा जा सकता है।
- मुंबई में भिखारी होने के संदेह में पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए लोगों के लिए हिरासत केंद्र बने हुए हैं।
- भारत में भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध आरोपित करने वाला कोई केंद्रीय अधिनियम नहीं है लेकिन महाराष्ट्र सहित कई राज्य उक्त अधिनियम के तहत भिक्षावृत्ति को अपराध मानते हैं।
नीतिगत प्रयास
- निराश्रित व्यक्ति (संरक्षण, देखभाल एवं पुनर्वास) मॉडल विधेयक, 2016 भिक्षावृत्ति को समाप्त करने और प्रत्येक जिले में निराश्रित व्यक्तियों के लिए पुनर्वास केंद्र स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित करता है। हालाँकि, बाद में इस विधेयक पर चर्चा रुक गई।
- कई राज्यों ने शहरों को ‘भिक्षावृत्ति मुक्त’ बनाने के लिए नीतियों की घोषणा की है।
- वर्ष 2020 में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने भिक्षावृत्ति को अपराध मानने के बजाय पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था।
स्माइल योजना
- आजीविका एवं उद्यम के लिए हाशिए पर स्थित व्यक्तियों के लिए सहायता (Support for Marginalised Individuals for Livelihood and Enterprise: SMILE) योजना केंद्र सरकार की एक पहल है जिसका उद्देश्य भिखारियों को चिकित्सा देखभाल, शिक्षा एवं कौशल प्रशिक्षण प्रदान करके उनका पुनर्वास करना है।
- दिसंबर 2022 में लॉन्च की गई इस योजना का लक्ष्य वर्ष 2026 तक भारतीय शहरों को ‘भिखारी-मुक्त’ बनाना है।
इंदौर : केस अध्ययन
- इंदौर प्रशासन ने 1 जनवरी, 2025 से भिक्षा देने पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा करके एक अग्रणी दृष्टिकोण अपनाया है। प्रशासन ने भिखारियों को भिक्षा देने वाले निवासियों पर जुर्माना लगाने की घोषणा की है।
- जागरूकता अभियान : दिसंबर 2024 के दौरान इंदौर प्रशासन ने नागरिकों को सड़क पर भीख मांगने के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूक किया है और इसके बजाय पुनर्वास केंद्रों का समर्थन करने का आग्रह किया है।
- पुनर्वास प्रयास : इंदौर प्रशासन ने भिखारियों को स्माइल योजना के तहत आश्रयों में स्थानांतरित किया जा रहा है जहाँ उन्हें परामर्श, स्वास्थ्य सेवा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण मिलता है।
राजस्थान : केस अध्ययन
- राजस्थान ने प्रोजेक्ट भोर और भिखारी पुनर्वास अधिनियम, 2012 के माध्यम से भीख मांगने की समस्या से निपटने के लिए कुछ रचनात्मक कदम उठाए हैं।
- ये पहल कौशल संवर्धन, व्यावसायिक गतिविधियों एवं भिखारियों, बेघरों व दिव्यागों के सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देते हुए सजा के बजाय सशक्तिकरण पर बल देती हैं।
- प्रोजेक्ट भोर (भिक्षु अभिविन्यास एवं पुनर्वास) : राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम (RSLDC) के तहत व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम।
- खाना पकाने, सिलाई, प्लंबिंग, बिजली के काम और सुरक्षा सेवाओं में प्रशिक्षण
- स्नातकों ने अक्षय पात्र और फोर्टिस अस्पताल जैसे संगठनों में नौकरी प्राप्त की है।
- राजस्थान भिखारी पुनर्वास अधिनियम, 2012 : यह भीख मांगने के लिए सज़ा के बजाय पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करता है।
- यह कौशल निर्माण एवं सामाजिक एकीकरण सहायता प्रदान करने वाले पुनर्वास गृहों की स्थापना करता है।
- बेघर उत्थान एवं पुनर्वास नीति, 2022 : यह बेघर व्यक्तियों, खानाबदोश जनजातियों एवं दिव्यांगों को लक्षित करता है।
- पुनः एकीकरण के लिए कल्याणकारी योजनाओं, कानूनी अधिकारों व कौशल प्रशिक्षण तक पहुँच सुनिश्चित करता है।
न्यायिक निर्णय
- वर्ष 2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 1959 के अधिनियम की कुछ धाराओं को असंवैधानिक करार देते हुए भिक्षावृत्ति को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है।
- यह देश का पहला ऐसा न्यायालय था जिसने 1959 के अधिनियम के प्रावधानों को रद्द कर दिया, जिसमें अधिकारियों को बिना वारंट के किसी भी व्यक्ति को भीख मांगते हुए गिरफ्तार करने की अनुमति शामिल थी।
- न्यायालय ने टिप्पणी की कि सभी नागरिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा तथा बुनियादी सुविधाएँ सुनिश्चित करना राज्य का दायित्व है जबकि भिखारियों की उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि राज्य अपने सभी नागरिकों को बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने में सफल नहीं हुआ है।
आगे की राह
भारत में भिक्षावृत्ति की जटिल समस्या को संबोधित करने के लिए प्रणालीगत बदलाव एवं सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता है।
केंद्रीकृत पुनर्वास ढांचा
भिखारियों के लिए स्थायी विकल्प प्रदान करने के लिए केंद्रीकृत आश्रय एवं पुनर्वास कार्यक्रम महत्वपूर्ण है। फुलोरा फाउंडेशन का भिखारी मुक्त मिशन भिखारियों को प्रशिक्षण, पहचान एवं स्वरोजगार के अवसर प्रदान करके उनके पूर्ण पुनर्वास पर केंद्रित है।
बच्चों के लिए केंद्रित समर्थन
- बच्चों द्वारा भीख मांगना एक जटिल मुद्दा है। इस चक्र को तोड़ने के लिए इन बच्चों की सुरक्षा एवं शिक्षा आवश्यक है।
- लहर पहल : लहर सड़कों से बच्चों को बचाने, पुनर्वास कार्यक्रम और उन्हें मुख्यधारा में फिर से शामिल करने के लिए प्रेरणा जैसे संगठनों के साथ सहयोग करता है।
- यूनिसेफ इंडिया : यूनिसेफ शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करके और कानूनी व सामाजिक सहायता प्रणाली प्रदान करके बाल श्रम तथा भीख मांगने सहित बाल शोषण को रोकने के लिए काम करता है।
भीख मांगने वाले सिंडिकेट को समाप्त करना
- संगठित भिक्षावृत्ति वाले गिरोह संवेदनशील लोगों, विशेषकर बच्चों एवं दिव्यांग व्यक्तियों का शोषण करते हैं। इन सिंडिकेट को लक्षित करना मूल कारणों को संबोधित करने के लिए आवश्यक है।
- कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन (KSCF) : नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित यह फाउंडेशन बाल तस्करी और श्रम सहित उन नेटवर्क को समाप्त करने के लिए प्रयासरत है जो भिक्षावृत्ति के लिए बच्चों का शोषण करते हैं।
दान पर सांस्कृतिक मानदंडों में बदलाव
- भिक्षा देने के सांस्कृतिक मानदंड प्राय: भिक्षावृत्ति को बढ़ावा देते हैं। अधिक सार्थक दान को प्रोत्साहित करने के लिए सार्वजनिक शिक्षा अभियानों की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC): इसने भिखारियों की सुरक्षा एवं पुनर्वास के लिए सलाह जारी किया है।
- साथ ही, नागरिकों को संरचित कार्यक्रमों की ओर दान को पुनर्निर्देशित करने के बारे में शिक्षित किया है।
- मानसिक स्वास्थ्य एवं दिव्यांगता सहायता को प्राथमिकता देना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भिखारियों का एक बड़ा हिस्सा अनुपचारित मानसिक बीमारियों या शारीरिक दिव्यांगता से पीड़ित है।
आर्थिक असमानता को संबोधित करना
आर्थिक असमानता को लक्षित करने से भिक्षा पर निर्भरता कम हो सकती है। वाराणसी स्थित ‘कॉमन मैन ट्रस्ट बैगर कॉर्पोरेशन’ कार्यक्रम भिखारियों को उद्यमियों में बदलता है।