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भारत में जनगणना से सम्बंधित मुद्दे

प्रारंभिक परीक्षा 

(समसामयिक घटनाक्रम)

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व; केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा व बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय)

संदर्भ 

भारत में पिछली जनगणना वर्ष 2011 में की गई थी। इसका अगला चरण वर्ष 2021 में शुरू होना था किंतु कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण इसमें देरी हो गई। वर्तमान में नवीनतम जनगणना के डाटा रिकॉर्ड करने की प्रक्रिया वर्ष 2025 में शुरू होगी और वर्ष 2026 में रिपोर्ट प्रकाशित की जाएगी।

जनगणना के बारे में

  • परिभाषा : जनगणना को ‘एक निर्दिष्ट समय पर किसी देश या देश के किसी सुस्पष्ट भाग में सभी व्यक्तियों से संबंधित जनसांख्यिकीय, आर्थिक एवं सामाजिक डाटा संकलित करने, मूल्यांकन करने, विश्लेषण करने व प्रकाशित करने की कुल प्रक्रिया’ के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • उद्देश्य : जनसंख्या के आकार, वितरण, संरचना एवं अन्य सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं के बारे में मानक जानकारी प्रदान करना।
    • यह जानकारी नीतियों व कार्यक्रमों की नियोजन, राष्ट्रीय व वैश्विक विकास एजेंडे के कार्यान्वयन की निगरानी और अनुसंधान के लिए आवश्यक होती है।
  • दशकीय आधार : संयुक्त राष्ट्र की सिफारिश के अनुसार, हर देश को प्रत्येक 10 साल में जनगणना करानी चाहिए।

भारत में जनगणना का इतिहास 

  • भारतीय इतिहास में सबसे प्राचीन साहित्य ‘ऋग्वेद’ से पता चलता है कि 800-600 ईसा पूर्व के दौरान किसी तरह की जनसंख्या गणना की जाती थी।
  • 321-296 ईसा पूर्व के आसपास लिखे गए कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कराधान के उद्देश्य से राज्य की नीति के उपाय के रूप में जनगणना पर जोर दिया गया था।
  • मुगल सम्राट अकबर के शासन के दौरान, प्रशासनिक रिपोर्ट ‘आइने-अकबरी’ में जनसंख्या, उद्योग, धन व कई अन्य विशेषताओं से संबंधित व्यापक डाटा शामिल था।
  • ब्रिटिश काल में सर्वप्रथम 1824 ई. में इलाहाबाद शहर में और 1827-28 में जेम्स प्रिंसेप द्वारा बनारस शहर में जनगणना की गई थी।
  • किसी भारतीय शहर की पहली पूर्ण जनगणना 1830 ई. में हेनरी वाल्टर द्वारा ढाका में की गई थी।
  • ब्रिटिश भारत की पहली पूर्ण जनगणना 1872 ई. में वायसराय लार्ड मेयो के काल में हुई थी।
  • इसके बाद 1881 ई. की जनगणना 17 फरवरी, 1881 को भारत के जनगणना आयुक्त डब्ल्यू. सी. प्लोडेन द्वारा की गई थी।
  • स्वतंत्रता के बाद पहली जनगणना वर्ष 1951 में और अंतिम जनगणना वर्ष 2011 में दर्ज की गई थी।
  • वर्ष 2011 तक भारत की जनगणना 15 बार की जा चुकी है और वर्ष 2025 में भारत की 16वीं जनगणना दर्ज की जाएगी। 

जनगणना 2011 के प्रमुख तथ्य 

  • जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ थी, लिंगानुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 940 महिलाएं, साक्षरता दर 74.04% और 2001 से 2011 तक जनसंख्या वृद्धि 17.64% थी।
  • कुल 68.84% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में, 31.16% शहरी क्षेत्रों में रहती थी।
  • उत्तर प्रदेश सर्वाधिक आबादी (लगभग 20 करोड़) वाला राज्य था, जबकि सबसे कम आबादी वाला केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप था जिसकी जनसंख्या 64,429 थी। 
  • भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान सबसे बड़ा राज्य (क्षेत्रफल 342,239 वर्ग किमी.) था और गोवा सबसे छोटा राज्य (क्षेत्रफल 3,702 वर्ग किमी.) था।

भारत में जनगणना प्रक्रिया 

  • भारत में जनसंख्या जनगणना की योजना और अधिसूचना भारत सरकार द्वारा ‘जनगणना अधिनियम 1948’ के प्रावधानों के तहत बनाई जाती है।
  • यह संविधान के अनुच्छेद 246 के अनुसार संघ का विषय है और संविधान की सातवीं अनुसूची के क्रम संख्या 69 में सूचीबद्ध है। 
  • भारत की जनगणना की पूरी गतिविधियाँ गृह मंत्रालय के अधीन भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त के निर्देशों और मार्गदर्शन के तहत निष्पादित की जाती हैं।
  • यह कार्य सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन के प्रशासनिक समर्थन और सहयोग से किया जाता है। 
  • प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में जनगणना संचालन निदेशकों के नेतृत्व में क्षेत्रीय कार्यालय हैं, जो अपने संबंधित क्षेत्राधिकार में जनगणना गतिविधियों के संचालन के लिए जिम्मेदार हैं। 
  • जिला कलेक्टरों/नगर निगम आयुक्तों को प्रधान जनगणना अधिकारी के रूप में नामित किया जाता है जो संबंधित जिलों/नगर निगमों में जनगणना के संचालन के लिए जिम्मेदार होते हैं।

जनगणना से संबंधित प्रमुख कानून 

  • जनगणना अधिनियम, 1948
  • नागरिकता अधिनियम, 1955
  • जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969
  • जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) अधिनियम, 2023

जनगणना 2025 से संबंधित मुद्दे 

  • जनगणना 2025 का एक प्रमुख उद्देश्य भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (National Register of Indian Citizens : NRIC) स्थापित करना है।
  • NRIC की स्थापना के प्रथम चरण में जनगणना प्रक्रिया में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register : NPR) को अपडेट करना भी शामिल है।
  • इस जनगणना के बाद जनगणना चक्र भी बदलने वाला है, वर्ष 2025 के बाद वर्ष 2035 और फिर वर्ष 2045, वर्ष 2055 में जनगणना होगी।
  • जनगणना पूरी होने के बाद लोकसभा सीटों का परिसीमन शुरू होगा। परिसीमन की प्रक्रिया 2028 तक पूरी होने की उम्मीद है। 
  • सरकार ने अभी तक जाति जनगणना पर फैसला नहीं लिया है, जिसकी मांग कई विपक्षी दल कर रहे हैं। 
  • जनगणना में धर्म और वर्ग को ध्यान में रखा जाता है, लेकिन इस बार लोगों से यह भी पूछा जा सकता है कि वे किस संप्रदाय को मानते हैं।

NRIC के बारे में

  • क्या है : NRIC से तात्पर्य सभी भारतीय नागरिकों की नागरिकता के सत्यापित दस्तावेज/रजिस्टर से है।
  • उद्देश्य : इसका उद्देश्य भारत के सभी कानूनी नागरिकों का दस्तावेजीकरण करना है ताकि अवैध अप्रवासियों की पहचान की जा सके और उन्हें निर्वासित किया जा सके।
  • अधिदेश : नागरिकता अधिनियम 1955 द्वारा।
  • अनिवार्य : इसे नागरिकता अधिनियम, 1955 में वर्ष 2003 के संशोधन द्वारा अनिवार्य किया गया।
  • सुब्रह्मण्यम समिति : 1951 की जनगणना के बाद संकल्पित, NRIC ने कारगिल युद्ध (1999) के बाद गठित सुब्रह्मण्यम समिति की सिफारिशों द्वारा नया महत्व प्राप्त किया।
    • इस समिति की सिफारिशों में नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों को शामिल करने वाले एक मजबूत डाटाबेस की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया। 
    • इन सिफारिशों के कारण अंततः अधिनियम में धारा 14A को जोड़ा गया, जिसमें सभी भारतीय नागरिकों के अनिवार्य पंजीकरण को अनिवार्य किया गया और उनकी नागरिकता की स्थिति को आधिकारिक रूप से प्रमाणित करने के लिए पहचान पत्र जारी करने को अधिकृत किया गया। 
    • तब से बहुउद्देश्यीय राष्ट्रीय पहचान पत्र (MNIC) और मछुआरे पहचान पत्र जैसी कई पायलट परियोजनाओं को अलग-अलग सफलता के साथ लागू किया गया है।

NRIC के लाभ 

  • सत्यापित नागरिक रजिस्ट्री बनाए रखकर राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाना। 
  • पहचान सत्यापन को सुव्यवस्थित करना।
  • पहचान धोखाधड़ी और दोहराव को कम करना, और। 
  • लक्षित कल्याण कार्यक्रमों को सक्षम करना जो यह सुनिश्चित करते हैं कि लाभ केवल पात्र प्राप्तकर्ताओं तक पहुँचें।

NPR का महत्त्व  

  • NPR एक बहु-चरणीय प्रक्रिया के माध्यम से नागरिकों को गैर-नागरिकों से अलग करता है जो सभी सामान्य निवासियों पर जनसांख्यिकीय और बायोमेट्रिक डाटा एकत्र करता है।
  • प्रक्रिया के महत्वपूर्ण चरण :
    • सबसे पहले, जनगणना में हाउसलिस्टिंग संचालन के दौरान जनसांख्यिकीय डाटा संकलित करके एक व्यापक डाटाबेस बनाया जाता है। 
    • इसके बाद डुप्लिकेट रिकॉर्ड को खत्म करने के लिए बायोमेट्रिक डाटा एकत्र किया जाता है। 
    • फिर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक दावे और आपत्तियाँ आमंत्रित की जाती हैं, उसके बाद सत्यापन और अपील प्रक्रिया होती है, जिससे निवासियों को रिकॉर्ड को चुनौती देने की अनुमति मिलती है, जिससे सटीकता और प्रामाणिकता बढ़ती है। 

NRIC प्रक्रिया का अंतिम चरण

  • NRIC को अंतिम रूप देने के लिए नागरिकता की स्थिति के बारे में विस्तृत पूछताछ की जाती है, जो नागरिकों को गैर-नागरिकों से अलग करती है। 
  • यह प्रक्रिया नागरिकता अधिनियम द्वारा अनिवार्य रूप से पहचान पत्र जारी करने के साथ समाप्त होती है।
  • 2011 की जनगणना में व्यक्तियों के बारे में विवरण एकत्र किए गए थे, जिनमें नाम, लिंग, जन्म तिथि, वैवाहिक स्थिति, जन्म स्थान, राष्ट्रीयता, पारिवारिक संबंध, निवास और सामाजिक-आर्थिक संकेतक शामिल थे। 
  • 2025 की जनगणना में भी इसी तरह के पैटर्न का पालन करने की उम्मीद है। हालाँकि, बायोमेट्रिक डाटा संग्रह को संभवतः बाहर रखा जाएगा, क्योंकि यह जानकारी पहले से ही आधार डाटाबेस में उपलब्ध है।

आधार एवं NRIC में अंतर

  • आधार और NRIC अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं।
    • आधार पहचान सत्यापन पर केंद्रित है और इसे कोई भी निवासी रख सकता है, जबकि NRIC एक नागरिकता सत्यापन प्रणाली है, जो नागरिकता का प्रमाण अनिवार्य करती है।
  • इस प्रकार, आधार मोटे तौर पर सभी निवासियों के लिए समावेशी है, जबकि NRIC नागरिकों के लिए एक निश्चित रिकॉर्ड के रूप में कार्य करता है।
  • आधार : आधार एक 12 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या है, जो भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) द्वारा भारत के निवासियों को नागरिकता की परवाह किए बिना जारी की जाती है।
    • यह मुख्य रूप से बायोमेट्रिक-आधारित पहचान सत्यापन उपकरण के रूप में कार्य करता है, जो निवासियों को बैंकिंग, सब्सिडी और डिजिटल पहचान जैसी सेवाओं से जोड़ता है।

असम में NRC प्रक्रिया 

  • असम एकमात्र ऐसा राज्य है जहां वर्ष 2019 में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को अपडेट किया गया है।
  • अवैध अप्रवासियों, विशेष रूप से बांग्लादेश से आने वाले लोगों की पहचान करने के उद्देश्य से, इस प्रक्रिया ने सख्त दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताओं के कारण इसकी सटीकता और निष्पक्षता पर चिंताएँ पैदा कीं, जिससे कई ग्रामीण और कम शिक्षित निवासी मानदंडों को पूरा करने में असमर्थ हो गए।
  • प्रस्तावित राष्ट्रीय NRIC के विपरीत, असम का NRC असम समझौते द्वारा निर्देशित था, जिसने अनूठी शर्तें लगाई थीं।
  • असम का अनुभव उन महत्वपूर्ण मानवीय और प्रशासनिक चुनौतियों को उजागर करता है जो एक राष्ट्रव्यापी NRIC को लागू करने से उत्पन्न हो सकती हैं।

सम्बंधित चुनौतियां 

  • गोपनीयता : इस मामले में डाटा गोपनीयता व जनसांख्यिकीय तथा बायोमेट्रिक जानकारी के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ हैं।
  • डाटा सुरक्षा : इसीलिए NRIC में मज़बूत डाटा सुरक्षा की आवश्यकता महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
  • बहिष्करण की आशंका : सीमित दस्तावेज़ों वाले समुदायों के लिए, बहिष्करण की आशंकाओं को भी संबोधित किया जाना चाहिए।
  • प्रशासनिक चुनौतियां : इतने बड़े पैमाने पर नागरिकता का सत्यापन महत्वपूर्ण प्रशासनिक चुनौतियों का सामना भी करता है, जो सुव्यवस्थित प्रक्रियाओं और लक्षित जन जागरूकता अभियानों के महत्व को रेखांकित करता है।

आगे की राह 

  • नागरिकों को पूरी NRIC प्रक्रिया के दौरान सतर्क रहने और सक्रिय रूप से शामिल होने की आवश्यकता है।
  • NRIC की पारदर्शिता और निष्पक्षता नागरिकों पर निर्भर करती है कि वे अपने रिकॉर्ड को सत्यापित करने में अच्छी तरह से सूचित, सक्रिय और मेहनती हों।
  • अपने अधिकारों को समझकर, सटीक जानकारी प्रदान करके और चिंताओं को व्यक्त करके, नागरिक यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं कि NRIC समावेशी, न्यायसंगत और प्रभावी हो।
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