(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि) (मुख्य परीक्षा, समान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 : महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ, सामाजिक सशक्तीकरण) |
संदर्भ
दिल्ली पुलिस ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से तीन बच्चों का अपहरण कर उनकी तस्करी करने के आरोप में तीन महिलाओं समेत चार लोगों को गिरफ्तार किया है।
क्या है बाल तस्करी
- यूनिसेफ के अनुसार, 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति की तस्करी को बाल तस्करी के रूप में संदर्भित किया जाता है।
- इसमें शोषण के उद्देश्य से बच्चों को देश के भीतर या बाहर भर्ती करना, स्थानांतरित करना या शरण देना शामिल है।
- लड़कियों की तस्करी विवाह, यौन-कार्य, आपराधिक गतिविधि, गोद लेने एवं अंग व्यापार के लिए की जाती है जबकि लड़कों की तस्करी मुख्यत: श्रम एवं भिखारी के रूप में शोषण के लिए की जाती है।
- कभी-कभी तस्करी किए गए बच्चों की भर्ती सशस्त्र समूहों या आपराधिक गतिविधि के लिए भी की जाती है।
बाल तस्करी का कारण
- ग़रीबी
- भुखमरी
- रोज़गार की कमी
- जाति एवं समुदाय आधारित भेदभाव
- महामारी का प्रसार
- सशस्त्र संघर्ष
- जलवायु परिवर्तन
भारत में बाल तस्करी की स्थिति
- बाल तस्करी घरेलू श्रम, उद्योगों में जबरन बाल श्रम, भीख मांगने, अंग व्यापार और व्यावसायिक यौन उद्देश्यों जैसी अवैध गतिविधियों के रूप में प्रकट होती है।
- कई रिपोर्टों के अनुसार, कोविड-19 महामारी से बाल तस्करी का संकट बढ़ गया है जिसने बच्चों को निराशा, बीमारी एवं मौत के भंवर में धकेल दिया है।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 में भारत में हर दिन आठ बच्चे तस्करी के शिकार हुए। वर्ष 2019 में रिपोर्ट किए गए 95% मामले आंतरिक तस्करी के थे।
- वर्ष 2020 में तस्करी किए गए कुल 4,700 लोगों में से 1,377 नाबालिग लड़के एवं 845 नाबालिग लड़कियां थीं।
- बच्चों की बिक्री सीमा पार भी होती है जिसमें भारत से खाड़ी देशों एवं दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों तक के प्रमुख मार्ग शामिल हैं।
- ऐसी ही एक प्रथा ‘खादामा’ है जहाँ लड़कियाँ खाड़ी देशों में घरेलू नौकर के रूप में काम करने जाती हैं।
- इस डाटा में केवल तस्करी की पुष्टि वाले मामले ही शामिल हैं जो वास्तविकता से ‘बहुत कम’ आकलन हैं क्योंकि NCRB डाटा में केवल प्रत्येक राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश की मानव तस्करी रोधी इकाई को रिपोर्ट किए गए मामले शामिल हैं।
- बाल तस्करी के सर्वाधिक मामले वाले राज्य/केंद्रशासित प्रदेश हैं : ओडिशा > दिल्ली > राजस्थान > बिहार > तेलंगाना।
भारत में बाल तस्करी से निपटने के प्रयास
विधिक प्रावधान
- अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 : इस अधिनियम का लक्ष्य अनैतिक तस्करी एवं यौन उत्पीड़न को रोकना है। इसमें 1978 एवं 1986 में दो संशोधन किए गए।
- हालाँकि, विशेषज्ञों ने उक्त अधिनियम की इस गलत धारणा के लिए आलोचना की है कि सभी तस्करी केवल यौन उत्पीड़न के लिए की जाती है।
- इनके अनुसार, यह अधिनियम यौनकर्मियों को पर्याप्त कानूनी उपाय या पुनर्वास की सुरक्षा प्रदान किए बिना उन्हें अपराधी की श्रेणी में ला देता है।
- बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 : यह अधिनियम श्रम की ऐसी प्रणालियों पर प्रतिबंध लगाता है जहाँ लोग (जिनमें बच्चे भी शामिल हैं) ऋण चुकाने के लिए दासता की परिस्थितियों में काम करते हैं।
- यह रिहा किए गए मजदूरों के पुनर्वास के लिए एक रूपरेखा भी प्रदान करता है।
- बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 : यह अधिनियम बच्चों को कुछ रोजगारों में भाग लेने से रोकता है तथा अन्य क्षेत्रों में बच्चों के लिए कार्य की स्थितियों को नियंत्रित करता है।
- वर्ष 2016 में एक संशोधन ने 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के रोजगार पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया।
- 14-18 वर्ष की आयु के किशोरों को परिवार से संबंधित व्यवसायों में कार्य करने की अनुमति है लेकिन उन क्षेत्रों में नहीं जहाँ ‘खतरनाक’ कार्य स्थितियाँ मौज़ूद हैं।
- मानव अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 : इसके तहत मानव अंगों के वाणिज्यिक लेनदेन को दंडनीय अपराध बनाया गया है।
- बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 : यह अधिनियम बाल विवाह के कृत्य को प्रतिबंधित एवं दंडित करता है। अगस्त 2021 में सेव द चिल्ड्रन नामक एन.जी.ओ. ने कोविड-19 महामारी के दौरान बाल विवाह एवं यौन शोषण में वृद्धि की चेतावनी दी थी।
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम, 2012 : इस अधिनियम का उद्देश्य बच्चों के व्यावसायिक यौन शोषण को रोकना है।
- किशोर न्याय (बाल देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 : यह अधिनियम कथित रूप से कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों से संबंधित कानूनों को नियंत्रित करता है।
नीतिगत उपाय
- मानव तस्करी रोधी इकाइयाँ : भारत ने वर्ष 2007 में मानव तस्करी रोधी इकाइयाँ (AHTU) स्थापित कीं। इसे तस्करी से संबंधित लोगों का डाटाबेस विकसित करने का कार्य सौंपा गया है।
- वर्ष 2022 तक देश में 768 AHTU कार्यरत हैं।
- 36 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में से 20 ने सभी जिलों में यह इकाइयाँ स्थापित करने का लक्ष्य पूरा कर लिया है।
- महिलाओं एवं बच्चों की तस्करी एवं व्यावसायिक यौन शोषण से निपटने के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना, 1998 को तस्करी के पीड़ितों को मुख्यधारा में लाने और पुनः एकीकृत करने के उद्देश्य से तैयार की गई थी।
- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय जन सहयोग व बाल विकास संस्थान और यूनिसेफ के साथ मिलकर तीन मैनुअल तैयार किए हैं, जिनमें शामिल हैं :
- व्यावसायिक यौन शोषण के लिए महिलाओं एवं बच्चों की तस्करी से निपटने के लिए न्यायिक पुस्तिका
- तस्करी एवं वाणिज्यिक यौन शोषण के शिकार बच्चों से निपटने के लिए चिकित्सा अधिकारियों के लिए मैनुअल
- तस्करी से बचे बच्चों के लिए परामर्श सेवाएँ
- तस्करी रोकथाम के लिए गृह मंत्रालय में एक समर्पित नोडल सेल की स्थापना की गई है। यह सेल राज्य सरकारों को आवश्यक शोध, अध्ययन एवं जानकारी प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है।
- सभी हितधारकों, जैसे- पुलिस, सरकारी अधिकारियों आदि को स्थिति को बेहतर ढंग से समझने तथा संदिग्ध गतिविधि या व्यक्ति पर उचित प्रतिक्रिया देने के लिए प्रशिक्षण देना भी आवश्यक है।
- ऑपरेशन नन्हें फ़रिश्ते : यह रेलवे सुरक्षा बल (RPF) की एक पहल है जिसका उद्देश्य रेलवे स्टेशनों एवं ट्रेनों में खतरे में फंसे बच्चों को बचाना है। RPF ने वर्ष 2018 में इस ऑपरेशन की शुरुआत की थी।