(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष) |
संदर्भ
बॉम्बे उच्च न्यायालय में बदलापुर यौन उत्पीड़न मामले में प्रस्तुत की गई जांच रिपोर्ट में आरोपी अक्षय शिंदे की अभिरक्षा में मौत (Custodial Death) के लिए पाँच पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया गया है।
क्या है अभिरक्षा में मौत
- यह पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए व्यक्ति (अपराधी) की पुलिस की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कार्रवाई (जैसे- यातना, थर्ड डिग्री टॉर्चर या अन्य) के कारण होने वाली मौत को संदर्भित करता है।
- इसके तहत जेल में, पुलिस या किसी अन्य वाहन पर, किसी निजी या किसी सार्वजनिक स्थान पर या चिकित्सा सुविधा में होने वाली मौत को शामिल किया जाता है।
- अभिरक्षा में मौत को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है :
- पुलिस अभिरक्षा में हुई मौत
- न्यायिक अभिरक्षा में हुई मौत
- सेना या अर्द्धसैनिक बलों की अभिरक्षा में हुई मौत
अभिरक्षा में मौत के लिए उत्तरदायी कारक
- संबंधित पुलिस अधिकारियों द्वारा किसी भी तरह की यातना, क्रूर तथा अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार
- अभिरक्षा में मौत स्वाभाविक रूप से भी हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, जब किसी आपराधिक प्रतिवादी या आरोपी व्यक्ति की मौत बीमारी से हो जाए।
भारत में पुलिस अभिरक्षा में मौत के मामले
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार 1 अप्रैल, 2017 से 31 मार्च, 2022 तक देशभर में पुलिस अभिरक्षा में कुल 669 मौत के मामले दर्ज किए गए।
- वर्ष 2017-22 में अभिरक्षा में मौतों की सर्वाधिक संख्या गुजरात में दर्ज की गई। इसके बाद महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु एवं बिहार का स्थान है।
पुलिस अभिरक्षा बनाम न्यायिक अभिरक्षा
पुलिस अभिरक्षा
- किसी पुलिस अधिकारी द्वारा जब एक व्यक्ति को संज्ञेय अपराध करने के संदेह में गिरफ्तार (Arrest) किया जाता है, तो उस व्यक्ति को अभिरक्षा या हिरासत (Custody) में लिया गया बताया जाता है।
- पुलिस अभिरक्षा का उद्देश्य :
- अपराध के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए संदिग्ध से पूछताछ करना
- साक्ष्यों को नष्ट करने व गवाहों को प्रभावित करने से बचाना
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 58 के अनुसार, मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना पुलिस अधिकारी बिना वारंट के गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक समय तक अभिरक्षा में नहीं रख सकता है।
- पुलिस अभिरक्षा में भेजे गए आरोपी को पुलिस स्टेशन में रखा जाता है ताकि पूछताछ के लिए पुलिस की पहुँच आरोपी तक हर समय हो।
न्यायिक अभिरक्षा
- न्यायिक अभिरक्षा में मजिस्ट्रेट से अनुमति के बाद आरोपी को हिरासत में लिया जाता है, इसलिए उसे पुलिस स्टेशन के बजाय ज़ेल भेजा जाता है।
- न्यायिक अभिरक्षा में रखे गए अभियुक्त से पूछताछ के लिए पुलिस को संबंधित मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होती है।
अभिरक्षा में मौत : मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
- पुलिस द्वारा यातना एवं हिंसक गतिविधि के कारण अभिरक्षा में मौत भारत के संविधान द्वारा गारंटीकृत विभिन्न मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- अनुच्छेद 20: यह किसी आरोपी व्यक्ति (नागरिक या विदेशी व्यक्ति या कानूनी व्यक्ति) को मनमानी और अत्यधिक सजा से संरक्षण प्रदान करता है। इसके तहत निम्नलिखित प्रावधान हैं :
- भूतलक्षी प्रभाव का लागू न होना : कोई भी विधि भूतलक्षी प्रभाव से लागू नहीं होगी अर्थात व्यक्ति पर उस कानून के अनुसार ही मुकदमा चलाया जा सकता है जो अपराध करते समय लागू था।
- दोहरे दंड से संरक्षण : किसी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए एक से अधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है और न ही उसे एक से अधिक बार दंडित किया जा सकता है।
- स्वयं के विरुद्ध गवाही देने से संरक्षण : किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 21: यह आरोपी व्यक्ति को जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। इसमें शामिल हैं :
- जमानत का अधिकार
- एकांत कारावास के विरुद्ध अधिकार
- अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध अधिकार
- अवैध हिरासत के ख़िलाफ़ अधिकार
- शीघ्र एवं निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार
- अधिवक्ता से सलाह लेने का अधिकार
- अनुच्छेद 22: यह कुछ मामलों में गिरफ्तारी एवं अभिरक्षा के खिलाफ सुरक्षा की गारंटी देता है। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार की जानकारी दिए बिना अभिरक्षा में नहीं लिया जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश : डी. के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले में, न्यायालय ने माना कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त दोषियों, विचाराधीन कैदियों या अभिरक्षा में अन्य कैदियों के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अधिकारों को समाप्त नहीं किया सकता है।
भारत में अभिरक्षा में मौत के विरुद्ध कानूनी उपाय
भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023
- यदि कोई पुलिस अधिकारी अभिरक्षा के दौरान किसी संदिग्ध की मौत के लिए उत्तरदायी है, तो उस पर हत्या का आरोप लगाया जाएगा और BNS की धारा 101 के तहत दंडित किया जाएगा।
- बी.एन.एस. की धारा 103 के तहत पुलिस अधिकारी को ‘गैर इरादतन हत्या’ के लिए दंडित किया जा सकता है।
- बी.एन.एस. की धारा 106 आत्महत्या के लिए उकसाने से संबंधित सजा से संबंधित है। यदि यह पाया जाता है कि संदिग्ध ने हिरासत में आत्महत्या कर ली है और यदि पुलिसकर्मी ने आत्महत्या के लिए उकसाया है; तो उसे बी.एन.एस. की धारा 106 के तहत सजा दी जाएगी।
- यदि पुलिस अधिकारी आरोपी को अपराध स्वीकार कराने के लिए हिंसा एवं यातना का सहारा लेते हैं तो इस कृत्य को बी.एन.एस. की धारा 120 तहत दंडनीय अपराध माना जाता है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023
बी.एन.एस.एस. की धारा 196 मजिस्ट्रेट को मौत के कारण से संबंधित जांच करने का अधिकार देती है; जब मौत हिरासत के दौरान हुई हो।
भारतीय पुलिस अधिनियम, 1861
- भारतीय पुलिस अधिनियम की धारा 7 वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को किसी पुलिस अधिकारी को बर्खास्त करने या निलंबित करने का अधिकार देती है यदि अधिकारी कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही करता है।
- इस अधिनियम की धारा 29 में पुलिस कर्मियों को अपने कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही करने पर दंडित करने का कानूनी प्रावधान है।
मानवाधिकार आयोग के दिशानिर्देश
- कैद या अभिरक्षा में लिए गए व्यक्ति से ऐसे स्थान पर ही पूछताछ की जानी चाहिए जिसे सरकार द्वारा इस उद्देश्य के लिए अधिसूचित किया गया है।
- ऐसा स्थान पहुंच योग्य होना चाहिए और गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के संबंधियों या मित्रों या अधिवक्ता को पूछताछ के स्थान के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।
- पूछताछ के तरीके जीवन, गरिमा एवं स्वतंत्रता के मान्यता प्राप्त अधिकारों और यातना व अपमानजनक उपचार के खिलाफ अधिकार के अनुरूप होने चाहिए।
अभिरक्षा में यातना के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय कानून
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून, 1948
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर, 1945
- संयुक्त राष्ट्र अत्याचार रोधी अभिसमय, 1984
- मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा, 1948
- मानवाधिकारों एवं मौलिक स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए यूरोपीय अभिसमय, 1950
- नेल्सन मंडेला नियम, 2015
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अभिरक्षा में मौत संबंधी चिंताएँ
- मूल अधिकारों का उल्लंघन : पुलिस द्वारा यातना एवं हिंसा के कारण अभिरक्षा में मौत मूल अधिकार का उल्लंघन है।
- यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20, 21 एवं 22 का उल्लंघन है।
- नैतिक मूल्यों के विरुद्ध होना : कभी-कभी पुलिस अधिकारी औपचारिक गिरफ्तारी से पूर्व भी दोषी के साथ दुर्व्यवहार करते हैं और दावा करते हैं कि चोट अभिरक्षा से पहले की हैं।
- पुलिस द्वारा अभिरक्षा का दुरुपयोग : पुलिस प्राय: अभिरक्षा का दुरुपयोग कर पीड़ितों पर अत्याचार करती है।
- अभिरक्षा में बलात्कार : पुलिस अभिरक्षा में बलात्कार यातना के सबसे जघन्य रूपों में से एक है। वर्ष 1972 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में हिरासत में बलात्कार की घटना एक उल्लेखनीय उदाहरण है, जिसमें मथुरा नाम की एक आदिवासी बालिका के साथ पुलिस थाने में दो पुलिसकर्मियों ने कथित तौर पर बलात्कार किया गया था।
- उत्पीड़न : पुलिस बल द्वारा आरोपी व्यक्तियों का कई रूपों में उत्पीड़न किया जाता है। नीलाबती बेहरा बनाम उड़ीसा राज्य मामले में न्यायालय ने पीड़ित की मौत के लिए पुलिस द्वारा उत्पीड़न व हिंसा को जिम्मेदार माना था।
- अवैध अभिरक्षा : कई बार विधिक प्रक्रिया का पालन किए बिना ही पुलिस द्वारा कथित आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है कि एक बार विशेष न्यायालय द्वारा धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत किसी शिकायत का संज्ञान लेने के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) को किसी आरोपी की हिरासत के लिए विशेष न्यायालय से अनुमति लेनी होगी।
- फर्जी मुठभेड़ : यह भी एक प्रकार की हिरासत में मौत है। उत्तर प्रदेश में भी ऐसे कई मामले आए हैं।
अभिरक्षा में मौत को रोकने के लिए सुझाव
तकनीक का प्रभावी प्रयोग
- बॉडी कैमरा एवं अन्य उपकरण : बॉडी कैमरा और ऑटोमेटेड एक्सटर्नल डीफिब्रिलेटर आदि जैसे तकनीकी समाधान का उपयोग इसमें अत्यधिक प्रभावी हो सकता है।
- उदाहरण के लिए, बॉडी कैमरे के उपयोग से अधिकारियों में उत्तरदायित्व की भावना में वृद्धि होगी।
- ब्रेन फ़िंगरप्रिंटिंग सिस्टम (BFS) : ब्रेन फ़िंगरप्रिंटिंग सिस्टम एक नवीन तकनीक है। इसे कई पुलिस बलों के खोजी उपकरणों से संबद्ध करने पर विचार किया जा रहा हैं। यह तकनीक जटिल अपराधों को सुलझाने, अपराधियों की पहचान करने और निर्दोष संदिग्धों को बरी कराने में सहायक सिद्ध हुई है।
- रोबोट का उपयोग : कई विभाग अब संदिग्धों से रोबोटिक पूछताछ की अनुमति चाहते हैं। कई विशेषज्ञों का मानना हैं कि रोबोट, मानव पूछताछकर्ता की क्षमताओं को पूरा कर सकते है।
- ए.आई. एवं सेंसर तकनीक से लैस रोबोट मानवीय भावनाओं व बॉडी लैंग्वेज जैसी प्रेरक तकनीकों का उपयोग कर संदिग्धों से सरलता से पूछताछ कर सकते हैं।
पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार
- पुलिस प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ाने की आवश्यकता
- पुलिस के अशिष्ट रवैये को बदलने और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के भीतर जवाबदेही, पेशेवरता एवं सहानुभूति की संस्कृति को बढ़ावा देने की तत्काल आवश्यकता
- ‘प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ’ मामले में अनुशंसित दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन की आवश्यकता
- इस मामले में निम्नलिखित निर्देश जारी किए गए थे :
- राज्य सुरक्षा आयोग का गठन
- पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति के लिए योग्यता आधारित व्यवस्था
- एस.पी. व स्टेशन हाउस अधिकारियों के लिए दो वर्ष का न्यूनतम कार्यकाल
- पुलिस की जांच और कानून व्यवस्था के कार्यों को अलग करना
- पुलिस स्थापना बोर्ड की गठन
- पुलिस शिकायत प्राधिकरण का गठन
- राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग का गठन
नागरिक संगठनों एवं मानवाधिकार आयोग की भूमिका
- नागरिक समाज संगठनों को अभिरक्षा में यातना के पीड़ितों की सक्रिय रूप से पक्षसमर्थन के लिए प्रोत्साहित करना
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को कथित मानवाधिकार उल्लंघन की तिथि से एक वर्ष के बाद भी किसी भी मामले की जांच करने की अनुमति देना
- साथ ही, सशस्त्र बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन पर उचित उपायों के साथ इसके अधिकार क्षेत्र का विस्तार किया जाना चाहिए।