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भूमि अधिग्रहण से संबंधित मुद्दे

(प्रारंभिक परीक्षा, सामान्य अध्ययन 3: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन,रेलवे आदि।) 

चर्चा में क्यों ?

  • वर्ष 2024 के शुरुआत से ही पंजाब के किसान आंदोलनरत हैं। उनकी प्रमुख मांगों में से एक भूमि अधिग्रहण कानून 2013 को लागू करना भी है।
  • किसानों का तर्क है कि कानून को ठीक से लागू नहीं किया जा रहा है।

भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के बारे में 

  • भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 ने पूर्व के भूमि अधिग्रहण अधिनियम,1894 का स्थान लिया था। 
    • पुराने कानून में कई खामियाँ थीं, जैसे पारदर्शिता की कमी, भूमि मालिकों के लिए अपर्याप्त मुआवज़ा तथा उन परिवारों के पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन के लिए अपर्याप्त प्रावधान जिनकी ज़मीन विकास परियोजनाओं के लिए अधिग्रहित की गई थी।
  • वर्ष 2013 का अधिनियम भूमि अधिग्रहण के लिए अधिक न्यायसंगत और पारदर्शी ढाँचा  प्रदान करने के लिए पेश किया गया था। 
    • यह 1 जनवरी, 2014 को लागू हुआ, जिसमें वर्ष 2015 में कुछ संशोधन किए गए। 
  • इसका मुख्य लक्ष्य उचित मुआवज़ा सुनिश्चित करना, विस्थापित परिवारों के लिए पुनर्वास प्रदान करना और एक ऐसा ढांचा तैयार करना था जो सामाजिक रूप से अधिक समावेशी हो।

भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 की मुख्य विशेषताएं

  • उचित मुआवजा : इस अधिनियम के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में भूमि के बाज़ार मूल्य से दोगुना और ग्रामीण क्षेत्रों में बाज़ार मूल्य से चार गुना मुआवज़ा दिया जाता है।
    • यदि कोई व्यक्ति अधिनियम के तहत प्राप्त मुआवजे से असंतुष्ट है, तो वे निवारण के लिए भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन (LARR) प्राधिकरण से संपर्क कर सकते हैं।
  • सहमति की आवश्यकता : भूमि को कुछ परियोजनाओं के लिए अधिग्रहित करने के लिए भूमि मालिक की सहमति आवश्यक है।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) परियोजनाओं से प्रभावित परिवारों से 70% सहमति आवश्यक है तथा निजी कंपनियों द्वारा भूमि अधिग्रहण के मामले में 80% सहमति आवश्यक है।
  • उपजाऊ भूमि अधिग्रहण पर सीमाएँ : यह अधिनियम सिंचित, बहु-फसलीय भूमि के अधिग्रहण पर कुछ सीमाएँ आरोपित करता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि खाद्य उत्पादन के लिए आवश्यक उपजाऊ भूमि का उपयोग विकास परियोजनाओं के लिए न अधिग्रहीत की जाए।
    • यदि ऐसी उपजाऊ भूमि अधिग्रहित की जाती है तो सरकार को उत्पादक भूमि के नुकसान की भरपाई के लिए कृषि प्रयोजनों के लिए समान आकार की बंजर भूमि को कृषि योग्य भूमि में विकसित करनी होगा।
  • पुनर्वास और पुनर्स्थापन (R & R) प्रावधान : अधिनियम में विस्थापित परिवारों के पुनर्वास का भी प्रावधान है । इन प्रावधानों में शामिल हैं-
    • भूमि अधिग्रहण के कारण विस्थापित परिवारों के लिए एक मकान।
    • पुनर्वास अवधि के दौरान आजीविका की हानि के लिए वित्तीय सहायता।
    • भूमि पर निर्भर परिवारों के लिए रोजगार या वार्षिकी-आधारित आय।
    • पुनर्वास क्षेत्रों में सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य सेवा और अन्य आवश्यक सेवाओं सहित बुनियादी ढाँचे का विकास।
  • सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA) : SIA सुनिश्चित करता है कि सरकार भूमि अधिग्रहण से पहले उसके सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक प्रभावों का मूल्यांकन करे। यह आकलन संभावित समस्याओं की पहचान करने और स्थानीय समुदायों पर किसी भी प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए बनाया गया है। 

अधिनियम की अन्य विशेषताएँ

  • "सार्वजनिक उद्देश्य" की संकीर्ण परिभाषा : अधिनियम भूमि अधिग्रहण के उपयोग को केवल विशिष्ट सार्वजनिक उद्देश्यों जैसे- बुनियादी ढाँचे के विकास, शहरीकरण या औद्योगिक परियोजनाओं के लिए सीमित करता है। 
    • यदि सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए अधिग्रहीत भूमि का उपयोग पाँच वर्षों के भीतर नहीं किया जाता है तो उसे मूल मालिकों को वापस कर दिया जाना चाहिए या भूमि बैंक को हस्तांतरित कर दिया जाना चाहिए। 
  • कुछ परियोजनाओं के लिए छूट : रक्षा, रेलवे और परमाणु ऊर्जा से संबंधित कुछ परियोजनाओं को अधिनियम के कुछ प्रावधानों से छूट दी गई है। 
    • हालाँकि, इन मामलों में भी, मुआवज़ा और पुनर्वास प्रावधानों का पालन किया जाना चाहिए।
  • पारदर्शिता और सार्वजनिक सुनवाई : अधिनियम सार्वजनिक सुनवाई और SIA रिपोर्ट का प्रावधान सुनिश्चित करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया पारदर्शी हो और इसमें सार्वजनिक परामर्श शामिल हो।
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष प्रावधान : अधिनियम में अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) की आवश्यकताओं एवं अधिकारों पर विशेष ध्यान दिया गया है तथा यह सुनिश्चित किया गया है कि भूमि अधिग्रहण के दौरान उन्हें अतिरिक्त लाभ व परामर्श प्राप्त हो।

भूमि अधिग्रहण

  • भूमि अधिग्रहण से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा सरकार या प्राधिकरण सार्वजनिक उपयोग के लिए निजी भूमि को अपने अधिकार में लेता है। इस प्रक्रिया में सामान्यतः भूमि मालिक को मुआवज़ा देना शामिल होता है। 
  • सामान्यत: यह बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं (सड़क, रेलवे, हवाई अड्डे), शहरी विकास, सार्वजनिक उपयोगिताओं या संरक्षण जैसे उद्देश्यों के लिए होता है।
  • भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में आम तौर पर निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं-
  • अधिसूचना : सरकार इच्छित अधिग्रहण के बारे में भूमि मालिकों को अधिसूचित करती है।
  • मूल्यांकन : मुआवजा निर्धारित करने के लिए भूमि और संपत्ति के मूल्य का आकलन किया जाता है।
  • मुआवजा : भूस्वामी को उनकी भूमि के लिए मुआवजा दिया जाता है, सामान्यतः धन के रूप में, हालांकि कभी-कभी वैकल्पिक भूमि या अन्य लाभ की भी पेशकश की जाती है।
  • कानूनी प्रक्रिया : यदि मुआवजे की राशि या भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता पर विवाद उत्पन्न होता है तो इस प्रक्रिया में कानूनी कार्यवाही शामिल हो सकती है। 
  • हालांकि, कुछ देशों में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया विशिष्ट कानूनों द्वारा संचालित होती है। कानून परिस्थितियों को परिभाषित करते हैं जिनके तहत भूमि का अधिग्रहण किया जा सकता है। 

किसानों की चिंताएँ

  • अपर्याप्त मुआवज़ा : यमुना एक्सप्रेसवे जैसी परियोजनाओं के लिए ली गई ज़मीन के लिए बेहतर मुआवज़े की मांग करने पर 160 किसानों को गिरफ़्तार किया गया; परिणामस्वरूप किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया।
  • राज्यों द्वारा संशोधन : कुछ राज्यों ने अधिनियम- में संशोधन पेश किए हैं, जो इसके कुछ प्रावधानों को कमजोर करते हैं। उदाहरण के लिए, कई राज्यों ने विशेषकर PPP परियोजनाओं के लिए सहमति खंड में ढील दी है। 
  • मुख्य प्रावधानों का क्रियान्वयन न होना : किसानों का दावा है कि कुछ मामलों में, प्रभावित परिवारों को पर्याप्त पुनर्वास या उचित मुआवज़ा प्रदान नहीं किया जाता है।

किसानों के लिए अधिनियम का महत्व

  • उचित मुआवजा : अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें खोई हुई भूमि के लिए पर्याप्त मुआवजा मिले, जो महत्वपूर्ण है क्योंकि भूमि उनकी आय का प्राथमिक स्रोत है।
  • सहमति और सशक्तीकरण : सहमति खंड किसानों को यह अधिकार देता है कि वे यह निर्णय ले सकें कि उनकी भूमि अधिग्रहित की जा सकती है या नहीं। इस प्रकार यह  इस बलपूर्वक अधिग्रहण पर रोक लगाता है।
  • मनमाने अधिग्रहण के विरुद्ध संरक्षण : यह अधिनियम निजी प्रयोजनों या कॉर्पोरेट हितों के लिए भूमि के मनमाने अधिग्रहण को रोकता है तथा किसानों की आजीविका और सम्मान की रक्षा करता है।
  • पुनर्वास और आजीविका सुरक्षा : पुनर्वास और आजीविका सहायता के माध्यम से, अधिनियम विस्थापित परिवारों को सुरक्षा व स्थिरता की भावना बनाए रखने में मदद करता है।

पूर्ण कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • प्रक्रियागत देरी : अधिनियम के तहत भूमि अधिग्रहण से पहले व्यापक दस्तावेजीकरण और मूल्यांकन की आवश्यकता होती है, जिससे विकास परियोजनाओं में देरी हो सकती है। 
    • यह सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों की परियोजनाओं के लिए बाधा बन जाता है।
  • लागत का बोझ : उचित मुआवजे और पुनर्वास से जुड़ी उच्च लागत, बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण में शामिल सार्वजनिक प्राधिकरणों एवं निजी कंपनियों दोनों के बजट पर दबाव डाल सकती है।
  • विकास और सामाजिक न्याय में संतुलन : विकास की आवश्यकता और किसानों तथा प्रभावित समुदायों के अधिकारों के बीच निरंतर तनाव बना रहता है। 
    • इन प्रतिस्पर्धी हितों के बीच संतुलन बनाना अधिनियम की सफलता सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।

सुझाव 

  • मुआवजा प्रावधानों का सख्ती से प्रवर्तन : सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवज़ा समय पर और अधिनियम के अनुसार पूर्ण रूप से दिया जाए। 
    • इसके लिए नियमित निगरानी प्रणाली विकसित की जानी चाहिए, जिससे सभी प्रभावित परिवारों को बिना किसी देरी या विसंगति के उचित मुआवज़ा मिल सके।
  • प्रमुख प्रावधानों को कमजोर करने वाले संशोधनों की समीक्षा और निरसन : राज्यों को उन संशोधनों की समीक्षा करनी चाहिए और उन्हें वापस लेना चाहिए जो अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों को कमजोर करते हैं
  • बेहतर पुनर्वास और पुनर्स्थापन प्रक्रियाएँ : सरकारों को पुनर्वास प्रावधानों को मजबूत करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विस्थापित परिवारों को पर्याप्त सहायता मिले। 
    • पुनर्वास क्षेत्रों में वादा किए गए बुनियादी ढाँचे के विकास, जैसे कि सड़क, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए एवं उनकी निगरानी की जानी चाहिए।
  • पारदर्शिता और सार्वजनिक भागीदारी बढ़ाना : सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA) प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाया जाना चाहिए और SIA रिपोर्ट के निष्कर्षों को समय पर सार्वजनिक रूप से सुलभ बनाया जाना चाहिए। 
    • प्रभावित समुदायों को अपनी चिंताओं को व्यक्त करने और निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति देने के लिए नियमित सार्वजनिक सुनवाई आयोजित की जानी चाहिए।
  • भूमि अधिग्रहण विवादों का त्वरित समाधान : भूमि अधिग्रहण, मुआवज़ा और पुनर्वास से जुड़े विवादों को निपटाने के लिए फास्ट-ट्रैक ट्रिब्यूनल या विवाद समाधान तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए।
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