(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राजनीतिक व्यवस्था) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय व चुनौतियाँ)
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संदर्भ
- धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के प्रयोग एवं अनियंत्रित ध्वनि प्रदूषण से संबंधित मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि लाउडस्पीकर के प्रयोग की अनुमति न देने पर कोई भी धार्मिक संस्था या व्यक्ति धार्मिक अधिकार के उल्लंघन का दावा नहीं कर सकता है।
- हालिया मामला मुंबई के कुर्ला एवं चूनाभट्टी क्षेत्र के दो रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों द्वारा दायर याचिका से संबंधित हैं। इसमें मस्जिदों एवं मदरसों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ कार्रवाई करने में शहर की पुलिस की उदासीनता को उजागर किया गया।
न्यायालय द्वारा पारित निर्णय के प्रमुख बिंदु
- ध्वनि प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए कई मायनों में बड़ा खतरा है।
- लाउडस्पीकर एवं सार्वजनिक संबोधन प्रणालियों का उपयोग किसी भी धर्म में ‘आवश्यक धार्मिक प्रथा’ की श्रेणी में नहीं आता है।
- जनहित में धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के प्रयोग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
- ऐसी अनुमति न देने से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) (वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) या 25 (धर्म की स्वतंत्रता) के तहत अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है।
पुलिस के लिए निर्देश
- न्यायालय ने मुंबई पुलिस को ध्वनि प्रदूषण नियम, 2000 को कठोरता से लागू करने और यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि कोई भी धार्मिक स्थल लाउडस्पीकर का उपयोग करके ध्वनि प्रदूषण न करे।
- पुलिस अधिकारी उल्लंघनों की जांच के लिए डेसिबल स्तर मापने वाले मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करें।
- पुलिस शिकायतकर्ता की पहचान की मांग किए बिना या पहचान सत्यापित किए बिना कार्यवाही करेगी और यदि पहचान पत्र मिल गया है तो शिकायतकर्ता की पहचान अपराधी के साथ साझा नहीं की जाएगी।
- अपराधी के विरुद्ध निम्नलिखित कदम उठाए जाएंगे :
- पहली बार शिकायत प्राप्त होने पर कथित अपराधी को सावधान करना
- दूसरी बार संबंधित धार्मिक संरचना पर जुर्माना लगाना और ट्रस्टियों एवं प्रबंधकों को अधिक कठोर कार्रवाई की चेतावनी देना
- इसके बाद भी शिकायत प्राप्त होने पर संबंधित धार्मिक संरचना के पक्ष में जारी लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई करना
सरकार के लिए निर्देश
न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को सभी धार्मिक संस्थानों को ऑटो डेसिबल सीमा के साथ कैलिब्रेटेड साउंड सिस्टम सहित शोर के स्तर को नियंत्रित करने के लिए एक तंत्र की स्थापना का निर्देश दिया।
वर्तमान में ध्वनि संबंधी नियम
- ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण) नियम, 2000 के अनुसार, आवासीय क्षेत्रों में ध्वनि का स्तर दिन में 55 डेसिबल और रात्रि में 45 डेसिबल होना चाहिए।
- न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि जब पुलिस डेसिबल स्तर रिकॉर्ड करेगी तो वह केवल एक लाउडस्पीकर से निकलने वाले शोर के स्तर का मापन नहीं करेगी, बल्कि किसी निश्चित समय एवं निश्चित स्थान पर सभी लाउडस्पीकरों के कुल ध्वनि स्तर का मापन होना चाहिए।
- ध्वनि प्रदूषण नियमों का उल्लंघन करने वालों पर प्रति दिन 5,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान हैं।
इसे भी जानिए!
लाउड स्पीकर प्रयोग पर बॉम्बे उच्च न्यायालय का पूर्व में निर्णय
- संबंधित मामला : डॉ. महेश विजय बेडेकर बनाम महाराष्ट्र राज्य (2016)
जारी दिशा-निर्देश
- आवासीय स्थलों पर रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
- शांत क्षेत्रों और रिहायशी इलाकों में रात के समय हॉर्न के इस्तेमाल पर भी रोक।
- राज्य सरकार कैलेंडर वर्ष में 15 दिनों के लिए, शांति क्षेत्रों को छोड़कर, सांस्कृतिक या धार्मिक अवसरों के दौरान रात 10 बजे से मध्य रात्रि तक लाउडस्पीकर के उपयोग की अनुमति दे सकती है।
- स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, धार्मिक स्थल एवं अदालतों के आसपास 100 मीटर तक शांत क्षेत्र है।
- सार्वजनिक आपातकाल की स्थिति तथा रात्रि के समय बंद परिसरों, जैसे-सभागारों, सम्मेलन कक्षों, सामुदायिक हॉलों तथा बैंक्वेट हॉलों में भी समय-सीमा में छूट दी जा सकती है।
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संबंधित मुद्दे
- स्वास्थ्य पर प्रभाव : नींद में किसी भी तरह का व्यवधान व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। कानों के लिए उच्च ध्वनि मानसिक व्यवधान पैदा कर सकती है।
- प्रतिष्ठा का प्रतीक : ध्रुवीकृत समाज में लाउडस्पीकरों का अनियांत्रित शोर प्रतिष्ठा का मुद्दा बन जाता है।
- हिंसा की आशंका : लोग इसलिये भी शिकायत नहीं करते हैं ताकि कोई धार्मिक टकराव न हो। ऐसे में हिंसा की आशंका बनी रहती है।
- प्रशासन की निष्क्रियता : नियामक एजेंसियां भी स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई नहीं करती हैं।
- पुलिस उदासीनता : पुलिस ऐसे मामलों में इसलिए भी उदासीन रहती है कि कहीं उन पर धार्मिक भावनाएं आहत होने का आक्षेप न लगा दिया जाए।
आगे की राह
- गोपनीयता : शिकायतकर्ता की सुरक्षा के मद्देनजर उसकी पहचान गोपनीय रखने का मुद्दा अत्यधिक संवेदनशील होता है।
- सामाजिक सौहार्द : राज्य सरकार द्वारा धार्मिक स्थलों से होने वाले शोर पर नियंत्रण के लिये कानून एवं सामाजिक सौहार्द के मध्य संतुलन बनाने की आवश्यकता है।
- प्रभावी नियमन : दो दशक पहले बनाए गए ध्वनि प्रदूषण विनियमन एवं नियंत्रण नियमों को बदलते वक्त के साथ प्रभावी बनाने की जरूरत है।
- तकनीक प्रयोग : सरकार द्वारा ऐसे स्थलों पर निगरानी के लिए अत्याधुनिक तकनीक, जैसे- कृत्रिम बुद्धिमत्ता चालित निगरानी प्रणाली, विशेष ऐप आदि के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।