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टाइफाइड एवं विडाल परीक्षण से जुड़े मुद्दे

(प्रारम्भिक परीक्षा- सामान्य विज्ञान)

विडाल परीक्षण में गलत परिणाम देने की संभावना भारत के टाइफाइड के बोझ को अस्पष्ट कर रही है। साथ ही, खर्च और रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) को भी बढ़ा रही है।

टाइफाइड के बारे में 

  • क्या है: एक जीवाणु संक्रमण है, जिसे ‘आंत्र ज्वर’ के रूप में भी जाना जाता है।
  • संक्रमण: साल्मोनेला टाइफी नामक जीवाणु के कारण। 
  • प्रसार: दूषित भोजन और पानी से।
  • अत्यधिक जोखिम: बच्चों और साफ-सफाई की कमी वाले क्षेत्रों के लोगों को। 
  • उच्चतम दर वाले क्षेत्र: भारतीय उपमहाद्वीप, अफ़्रीका, दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशिया तथा दक्षिण अमेरिका। 
  • लक्षण: तेज बुखार, सिरदर्द, सामान्य दर्द, पेट दर्द, कमजोरी, उल्टी, दस्त या कब्ज और दाने जैसे अन्य लक्षण।
  • परीक्षण: विडाल परीक्षण (जॉर्जेस फर्नांड इसिडोर विडाल द्वारा वर्ष 1896 में विकसित)। 
  • उपचार: एंटीबायोटिक दवाओं द्वारा।
  • आँकड़ा: विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया भर में प्रतिवर्ष 90 लाख लोगों में टाइफाइड का पता चलता है  जिसमें से लगभग 1.1 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है।

विडाल परीक्षण से जुड़े मुद्दे

  • गलत परिणाम देने की संभावना 
  • रक्त का नमूना लेने के उचित समय के बारे में जागरूकता की कमी
  • परीक्षण किटों के मानकीकरण की कमी
  • खराब गुणवत्ता-नियंत्रण
  • अनुचित परीक्षण व उपचार लागत 
  • विडाल परीक्षण का निरंतर अतार्किक उपयोग फलतः एंटीबायोटिक दवाओं के अनावश्यक उपयोग को बढ़ावा।

सुझाव:

  • बेहतर नैदानिक परीक्षणों तक पहुँच में सुधार जरूरी है।
  • परीक्षण के लिए 'हब और स्पोक' मॉडल को अपनाया जा सकता है।
  • विडाल परीक्षण के अत्यधिक उपयोग और एंटीबायोटिक दवाओं के अनावश्यक उपयोग को विनियमित किए जाने की आवश्यकता है।
  • निरंतर पर्यावरणीय सतर्कता और डाटा-साझाकरण अत्यावश्यक है।
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